पांच बार कोलकाता के मेयर रहे थे यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त

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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और मजदूर हितों के लिए लड़ने वाले यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त की आज 22 जुलाई को 86वीं पुण्यतिथि है। उन्होंने बैरिस्टरी करने के बाद वकालत की और मजदूरों के हित के लिए सदैव कार्य करते रहे। वह कोलकाता के मेयर पद पर पांच बार चुने गए थे। उनकी मृत्यु रांची जेल में हुई थी।

जीवन परिचय और शिक्षा

स्वतंत्रता सेनानी यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म 22 फ़रवरी, 1885 ई. को चटगांव (अब बांग्लादेश) के बारामा में हुआ था। उनके पिता जात्र मोहन सेनगुप्त एक प्रसिद्ध वकील और बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे।

यतीन्द्र ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा बंगाल में पूरी की और बाद में लॉ की पढ़ाई के लिए वर्ष 1904 में इंग्लैंड चले गए। उनकी वर्ष 1909 में बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी हुई और वह वापस देश लौट आए। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात एडिथ एलेन ग्रे से हुई और उससे शादी कर ली, ग्रे बाद में श्रीमती नेली सेनगुप्त के नाम प्रसिद्ध हुई। नेली ने देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अपने पति के साथ जेल की यातनाएं भी भोगी थी।

स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

यतीन्द्र मोहन ने कानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपने कॅरियर की शुरूआत की। वर्ष 1911 में उन्होंने फरीदपुर में बंगाल प्रांतीय सम्मेलन में चटगांव का प्रतिनिधित्व किया। यही से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई और बाद में इसी वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्ष 1920 की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मज़दूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था।

उन्होंने अपने राजनीतिक कार्यों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण और महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए सरकार का असहयोग करते हुए उन्होंने वकालत छोड़ दी। वर्ष 1923 में, उन्हें बंगाल विधान परिषद के सदस्य के रूप में चुना गया। वर्ष 1925 में चितरंजन दास की मृत्यु होने के बाद यतीन्द्र को स्वराज पार्टी का अध्यक्ष चुना गया। वे बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने। वह 10 अप्रैल 1929 से 29 अप्रैल 1930 तक कलकत्ता के मेयर रहे। उन्हें सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और भारत-बर्मा अलगाव का विरोध करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

स्वराज पार्टी के सदस्य बने यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वह इतने लोकप्रिय हुए कि वहां की जनता ने उन्हें पांच बार कोलकाता का मेयर पद के लिए चुना।

वर्ष 1930 में कांग्रेस को ब्रिटिश सरकार ने गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेली सेनगुप्त भी गिरफ़्तार की गईं।

वर्ष 1931 में यतीन्द्र का नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने सरदार पटेल के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। सेनगुप्त वर्ष 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थिति का समर्थन करते हुए गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए इंग्लैंड गए। वह जनवरी, 1932 में बन्दी बना लिए गए तथा उन्हें पूना, दार्जिलिंग व रांची में कैद रखा गया।

मजदूरों के हित में गए कई बार जेल

वर्ष 1921 में यतीन्द्र मोहन ने सिलहट में चाय बागानों के मज़दूरों के शोषण के विरुद्ध आवजा उठाई और उनके प्रयत्न से बागानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल शुरू हो गई। उन्हें मजदूरों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

निधन

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त की 48 वर्ष की अल्पायु में 22 जुलाई, 1933 में रांची की जेल में अस्वस्थ होने के कारण मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवनभर देश की स्वतंत्रता आंदोलन के लिए संघर्ष किया। यतीन्द्र ‘देशप्रिय’ उपनाम से विख्यात हैं।

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