घर की मुंडेर पर बैठने वाली यह ​छोटी सी ​चिड़िया आज रेड लिस्ट में है…

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बचपन से हम अपने घर के बाहर, पेड़, पौधों या दरवाजों पर एक नन्हीं सी इठलाती चिड़िया देखते आए हैं, जिसका नाम गौरेया है, इंग्लिश नाम स्पैरो है। (शायद यह बात साल 2005 तक पैदा हुए बच्चों के लिए ज्यादा सही हो, हालांकि उसके बाद जन्में बच्चों ने भी इसे देखा होगा लेकिन फिर वह लक और लोकेशन पर डिपेंड करता है।) वैसे अभी भी यह चिड़िया कंक्रीट के जंगलों से दूर खुले वातावरण में नज़र आ जाती है। यह भी हमारी खुशकिस्मती ही है कि यह यह नन्हीं सी जान खुद को बचाए रखने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन कब यह फुदकते फुदकते कहीं खो जाए, कह नहीं सकते। शायद यही कारण है कि आज यानी 20 मार्च को नेचर फोरेवर सोसाइटी (भारत) और इको-सिस एक्शन फ़ाउंडेशन (फ्रांस) की ओर से विश्व गौरेया दिवस मनाया जाता है जो कि मेरे हिसाब से नहीं  मनाया जाना चाहिए। ऐसी नौबत ही क्यों आने दी जाए कि इस प्यारे से पक्षी को बचाए रखने या याद रखने के लिए दिन बनाया जाए। खैर, मेरे सोचने या कहने से कुछ नहीं होगा।

आपको यह बताते हैं कि यह ​खास दिन क्यों मनाया जाता है। दरअसल गौरेया की घटती संख्या के प्रति चिंता व्यक्त करने के लिए 2010 में इस दिवस की शुरुआत हुई। विशेषज्ञों के अनुसार इस प्यारी सी चिड़िया की संख्या में पिछले कुछ समय में 60 फीसदी तक गिरावट आई है। राजधानी दिल्ली के हाल तो और भी बदतर हैं। वहां ढूंढने से भी यह चिड़िया दिखाई नहीं देती, अमूूमन सभी बड़े शहरों के यही हाल हैं। दिल्ली में साल 2012 में सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया था।

गौरेया से जुड़ी कुछ बातें जानना चाहेंगे?

— गौरेया ‘पासेराडेई’ परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे ‘वीवर फिंच’ परिवार की सदस्य मानते हैं।
— इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है।

— वैज्ञानिको की माने तो गौरेया की 43 प्रकार की प्रजातियां धतरी पर मौजूद हैं।

— पिछले कुछ सालों में गौरेया की संख्या में कुछ 60 से 80 फीसदी की कमी आयी है।

— केवल नर गौरेया ही घोंसला बनाते हैं। इसके अलावा वे घर बनाते हुए मादा गौरेया को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास भी करता है।

— गौरैया के बच्चे अपने जन्म स्थान के लगभग 2 किलोमीटर के दायरे में ही उड़ते हैं।

— अमूमन देखा गया है कि मादा गौरेया साल में करीब 3 से 5 अंडे देती है।

— अंडे से बच्चे निकलने में 12 से 15 दिन का समय लगता है।

— गौरेया का बच्चा जन्म लेने के बाद 15 दिन के बाद ही उड़ने के काबिल हो जाता है।

— गौरेया एक अच्छी तैराक भी है।

— एक रिपोर्ट के अनुसार गौरैया को किसी प्रकार का तनाव होता है या दुखी होती है तो अपनी पूंछ बार बार झटकती है।

ये तो हुई जानकारी की बात, अब यह सोचें कि आप अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं। कभी सोचा है? यदि नहीं तो आज विशेष दिन है थोड़ा सा सोच लीजिए, गौरेया भी खुश होगी। आप ज्यादा कुछ म​त करिए अपने आस—पास एक हरा भरा वातावरण तैयार कर लीजिए। घर में स्पैरो हट टांग लीजिए, पार्क या छांव वाली जगह पर परिंडा बांध दीजिए। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि एक ऐसा वातावरण तैयार कर दीजिए जहां यह नन्हीं सी जान सहज महसूस कर सके और अपना चहकना जारी रख सके…।

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