जैसा कि आप सभी को पता ही होगा भारत ने देश के दो प्रमुख शहरों के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना की शुरूआत की है।
जापान के साथ 2015 में इस समझौते को लेकर हस्ताक्षर किए गए थे जो बुलेट ट्रेन के इस प्रोजेक्ट को फाइनेंस कर रहा है यानि पैसा लगा रहा है।
165 साल से भारत में ट्रेन टल रही हैं और ये प्रोजेक्ट भारत में इस रेल नेटवर्क को एक नई दिशा देने के लिए शुरू किया गया है।
ये प्रोजेक्ट अपने आप में एक बड़ा प्रोजेक्ट है और कई तरह के दावे राजनीतिक पार्टियों द्वारा इसके लिए किए जा रहे हैं। तो उनके दावों में कितनी सच्चाई है इसका भी पता हम सभी को होना ही चाहिए।
दावा किया जा रहा है कि भारत में 2022 अगस्त तक बुलेट ट्रेन तैयार हो जाएगी और पश्चिमी तट से नीचे चलेगी जो मुंबई और अहमदाबाद शहरों को जोड़ती है।
लेकिन यात्रियों को 2022 तक इस लाइन का एक छोटा सा हिस्सा ही बुलेट ट्रेन के अंडर आ पाएगा। ऐसा लगता है कि जो वादा सरकार ने किया है वो 2022 तो क्या उसके अगले साल तक भी पूरी नहीं हो पाएगी।
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट को आधिकारिक तौर पर सितंबर 2017 में एक समारोह में लॉन्च किया गया था, जिसमें जापानी प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने भाग लिया था।
उस वर्ष भारतीय रेल मंत्रालय ने कहा कि 15 अगस्त 2022 तक हाई स्पीड रेल परियोजना को पूरा करने के लिए “ऑल-आउट प्रयास” किए जाएंगे।
हालांकि, योजना से जुड़े अधिकारियों का अब अनुमान है कि इस मार्ग का एक छोटा हिस्सा इस समय तक पूरा हो जाएगा बाकी 2023 में पूरा होगा।
कांग्रेस के विपक्षी नेता राहुल गांधी ने इसे एक “जादुई ट्रेन” बताया है जो कभी पूरी नहीं होगी।
बुलेट ट्रेन की जरूरत क्यों है?
भारत का विशाल रेल नेटवर्क लगभग 9,000 ट्रेनों में एक दिन में 22 मिलियन लोगों के लिए सस्ती और महत्वपूर्ण परिवहन सेवा प्रदान करता है। लेकिन यात्रियों को लगता है कि लंबे समय से खराब सेवाएं रेल में मिल रही हैं और आधुनिकीकरण में निवेश की कमी भी दिखाई देती है।
वर्तमान में भारत की सबसे तेज़ ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस है जो टेस्ट के दौरान 180 किमी / घंटा (110 मील प्रति घंटे) तक पहुँच गई थी।
जापानी बुलेट ट्रेन लगभग दोगुनी तेज़ है, 320km / h (200mph) तक की गति वाली है। एक बार पूरा हो जाने के बाद, $ 15bn (£ 11bn) हाई-स्पीड रेल मार्ग यानि बुलेट ट्रेन गुजरात के सूरत और अहमदाबाद जैसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों के साथ भारत के प्रमुख व्यापार और मुंबई के वित्तीय केंद्र को जोड़ेगा। फिलहाल 500 किमी लंबी यात्रा में अब लगभग आठ घंटे लगते हैं।
तो इसके बाद तीन घंटे में ये सफर किया जा सकेगा और अगर हाई स्पीड मानी जाए तो यह 2 घंटे और 7 मिनट में पूरा किया जा सकता है।
यह कब खत्म होगा?
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यहां तक कि अधिकारियों द्वारा दी गई मौजूदा समय सीमा यानि दिसंबर 2023 तक भी इसको पूरा कर पाना मुश्किल लगता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स की एसोसिएट प्रोफेसर देबोलीना कुंडू का मानना है कि काम बहुत धीरे हो रहा है और इसमें कई नौकरशाही बाधाएं भी हैं।
मुख्य बाधा भूमि अधिग्रहण है। ट्रेन परियोजना को 1,400 हेक्टेयर (14 वर्ग किमी) से अधिक भूमि का अधिग्रहण करने की आवश्यकता है इसमें से अधिकांश निजी स्वामित्व में है।
नेशनल हाई स्पीड रेल कॉरपोरेशन पिछले साल के अंत तक इस प्रक्रिया को पूरा करने का लक्ष्य रखता था, लेकिन हाल ही में उसने कहा है कि यह 2019 के मध्य तक जारी रहेगा।
फरवरी में इनका कहना था कि अब 1,000 से अधिक जमीन मालिकों के साथ समझौते हुए हैं और अनुमानित 6000 लोगों से समझौते करने थे।
इस संबंध में सबसे बड़ी समस्या है भूमि के लिए दी जा रही राशि। लोगों का कहना है कि उनकी जमीन के लिए उन्हें बहुत ही कम रकम दी जा रही है।
भूमि अधिग्रहण की योजनाओं को लेकर कुछ क्षेत्रों में विरोध हुआ है और अदालतों में कई याचिकाएं भी दायर की गई हैं।
जैसा कि आप सभी को पता ही होगी कि भारत में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले अदालतों के मामले सालों तक खींच सकते हैं।
लेकिन परियोजना चलाने वालों का कहना है कि वे कानूनी आवश्यकता के ऊपर 25% का मुआवजा दे रहे हैं।
समस्या यहीं खत्म नहीं होती। वन्यजीव और अन्य पर्यावरणीय मंजूरी भी बड़ी रूकावट है क्योंकि ट्रेन तीन वन्यजीव क्षेत्रों और तटीय क्षेत्रों से होकर गुजरेगी।
यह वन के रूप में वर्गीकृत क्षेत्रों को भी पार करेगा और इस भूमि को केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन पूरा हो गया हो और पुनर्वितरण योजना तैयार की गई हो।