हमने बहुत सी फिल्मों में काल्पनिक दुनिया देखी है। जहां सब कुछ वैसा होता है जैसा हम चाहते हैं और अगर नहीं भी होता, तो अपनी इच्छाशक्ति से हम सब कुछ वैसा बना देना चाहते हैं। वैसे सही मायनों में देखा जाए तो ये 21वीं सदी भी कुछ उस काल्पनिक दुनिया जैसी ही है। आप और मैं उस दुनिया में जी रहे हैं, जहां हमें आदत सी हो गई है परफेक्ट चीजों की। हमें सब कुछ वैसा चाहिए जैसा हमारी सोच कहती है। उसके परे सोचने से भी हम डरने लगे हैं।
आज के दौर में गोलू, बंटी और पिंकी की जगह लाइक्स, फॉलो और स्टोरीज़ ने ले ली है। ‘सोशल मीडिया’, ये एक ऐसी खतरनाक दुनिया है, जो एक कदम पर हमें इतना कुछ दे जाती है, वहीें दो कदम आगे बढ़ते ही हम से हमारे अपनों को ही पीछे खींच ले जाती है। जलन, कॉम्पिटिशन और परफेक्शन की रेस में भागती इस काल्पनिक दुनिया में हम कहीं सच्चाई को खो तो नहीं बैठे हैं? या फिर हम हकीकत को भी अपने आज के वजूद की तरह दिखावा बनाने में लगे हैं?
खुद सोच कर देखिए, याद कीजिए स्कूल में पढ़ने वाली आपकी उस खास दोस्त को, जिसके साथ घंटो बैठकर अपने दिल की बातें किया करती थीं। आज उसी की इंस्टा स्टोरीज़ देखकर जलन क्यों होती है? क्यों हमें ऐसा लगता है कि वो जो सोशल मीडिया पर दिन की पांच पिक्चर्स अपलोड कर रहे हैं, वो आप से बेहतर लाइफ एंजॉय कर रहे हैं। भले ही आप उनसे साल में एक बार मिल पाते हों और आपको पता ही नहीं है कि शायद वो भी आपको देखकर ऐसा ही सोचते हैं।
FOMO ( Fear Of Missing out ) :
यही है वो, जिसके बारे में हम भले ही बात ना करना चाहें, पर वो मौजूद है। हम सभी के दिल पर भले ही ना हो लेकिन दिमाग पर सिर्फ उसी का राज़ है। ‘FOMO’, आप तो सोशल मीडिया वाले हैं, ये टर्म तो आपने जरूर सुना होगा और शायद महसूस भी किया होगा। हां, मैंने भी किया है। ‘कहीं आज की कोई अपडेट छूट ना जाए’, ‘ अरे, ये तो वो बी सैक्शन वाले हैं ना, देखो कैसे सब साथ में एंजॉय कर रहे हैं’, ‘नेहा ने पार्टी दी थी, मुझे क्यों नहीं बुलाया’, ‘यार, आज तो मैंने एक भी पिक्चर अपलोड नहीं की’, कभी—कभी इस तरह की बातें हम सभी के दिमाग में आती है, उसी फोमो की वजह से।
पर आप ये क्यों नहीं सोचते कि आज जब आप अपने फोन को साइड में रखकर उस चाय की थड़ी पर बैठे थे, आस—पास के लोगों को देख रहे थे, वो पल कितना खास था। हां, आप अकेले थे, कोई नहीं था आपके साथ सैल्फी लेने के लिए, लेकिन फिर भी वो पल सबसे बेहतर था। क्योंकि आपको, आपका ही साथ मिलता था और वो किसी काल्पनिक दोस्त को इम्प्रसे करने के लिए नहीं था। वो याद है, जब आप अपने दोस्त को बस स्टैंड तक छोड़ने का कहकर उसके साथ बाइक में पीछे बैठकर कुछ दूर गए थे। उस 5 मिनट के पल में आपके बीच जो बातें थीं, वो किसी सोशल मीडिया स्टेटस के लिए नहीं थीं।
सच कहें तो जो पल किसी को दिखाने के लिए नहीं होते ना, वो भले ही बोरिंग हो लेकिन कुछ तो खासियत लिए होती हैं। वो पल जो ना आपके दिल के सोशल मीडिया से डिलीट किए जो सकते हैं और ना ही किसी की अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया से उन्हें कोई फर्क पड़ने वाला है। हां, ये नहीं कह रहे कि इन सब से दूर रहो, सोशल मीडिया छोड़ दो। बिल्कुल नहीं, क्योंकि हर मौजूदा का अपना एक महत्व है। लेकिन दूसरे क्या सोचते और क्या करते हैं, ये हम क्यों सोचने लगते हैं? जबकि हम सब ये बात जानते हैं कि इससे हमें परेशान होने के अलावा और कुछ नहीं मिलता। यकीन कीजिए कभी—कभी बोरिंग होना भी अच्छा होता है।