जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में गुरुवार को कम से कम 37 सीआरपीएफ कर्मी जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के आतंकवादी हमले में मारे गए। विस्फोटक से लदी एक कार को सीआरपीएफ बस में घुसा दिया गया था। जैश ने आत्मघाती हमलावर की पहचान पुलवामा के गुंडीबाग निवासी आदिल अहमद के रूप में की है।
कैसे हुआ हमला?
14 फरवरी 2019 गुरूवार को 78 गाड़ियों में सीआरपीएफ जवानों का काफिला जिसमें 2547 जवान सवार थे, श्रीनगर की ओर जा रहा था। दोपहर बाद काफिला अवंतिपोरा पहुंचा था। यहां से श्रीनगर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर तक बताई जा रही है।
यहीं पर बगल से जा रही एक SUV ने सीआरपीएफ की गाड़ियों को ओवरटेक किया और काफिले की एक गाड़ी में जा घुसी। SUV में विस्फोटक भरा था और ब्लास्ट हुआ जिससे टक्कर लगी गाड़ी के परखच्चे तक उड़ गए। पीछे आ रही दूसरी गाड़ी पर भी इसका असर हुआ।
सीआरपीएफ कश्मीर घाटी में मौजूद सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल है। उनकी मूल भूमिका कानून और व्यवस्था का रखरखाव, खुफिया जानकारी के आधार पर संचालन करना और सेना के संचालन को कानून और व्यवस्था का समर्थन प्रदान करना है। एक ऑपरेशन के पूरा होने के बाद, गुस्सा, पथराव करने वाली भीड़ को मेनेज करना सीआरपीएफ का काम है। घाटी के पुलवामा में जो आतंकी हमला सामने आया है उसमें कम से कम 37 जवान मारे गए।
अकेले कश्मीर राज्य भर में 60,000 से अधिक सीआरपीएफ जवान तैनात हैं। वे लगातार कश्मीर के सभी जिलों में तैनात हैं।
2005 से पहले, कानून और व्यवस्था प्रदान करने का काम बीएसएफ के पास था। लेकिन बीएसएफ अब केवल सीमाओं पर तैनात है। सीमा-सुरक्षा ड्यूटी पर उनकी तैनाती की जाती है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने में उनकी कोई भूमिका नहीं होती।
आखिरी हमला जिसमें सीआरपीएफ के जवानों पर हमला हुआ था वह पिछले साल जुलाई में था जब अनंतनाग में आतंकवादियों द्वारा एक पिकेट पर हमला किया गया था। इसमें सीआरपीएफ के दो जवान मारे गए और एक घायल हो गया था। इससे पहले फरवरी 2018 में श्रीनगर में एक सीआरपीएफ कैंप पर आतंकवादियों द्वारा हमला किया गया था। 30 घंटे की गोलीबारी के बाद आतंकवादियों पर काबू पा लिया गया था।
पुलिस सूत्रों ने कहा है कि गुरुवार को पुलवामा में हमला एक अकेले जैश-ए-मुहम्मद आत्मघाती हमलावर ने किया था, जिसने विस्फोटकों से भरी कार को सीआरपीएफ की बस में टक्कर मार दी थी। हालांकि, अभी तक कोई आधिकारिक सूचना सामने नहीं आई है कि हमले को कैसे अंजाम दिया गया।
हाल के वर्षों में घाटी में IED हमले कम हुए हैं जो 1990 के दशक में बहुत ज्यादा हुआ करते थे। 2017 में केवल एक IED हमला था और 2018 में, 10 से कम थे।