“बेटी बचाओ” फंड का आधे से ज्यादा पैसा पब्लिसिटी पर क्यों खर्च कर दिया गया?

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beti bachao

बेटी बचाओ योजना की घोषणा के चार साल बाद सरकार ने कहा कि इस योजना का 55 प्रतिशत से अधिक धन केवल विज्ञापनों और प्रचार पर खर्च किया गया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो मुद्दों से निपटने के लिए 2015 में बेटी बचाओ कार्यक्रम शुरू किया था। पहला, गिरता चाइल्ड सेक्स रेशियो। भारत में पैदा होने वाले हर 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या कम है। और दूसरा बेटियों के बारे में मानसिकता बदलने के लिए।

ऐसा करने के लिए सरकार ने इस योजना को 644 करोड़ रुपए का बजट दिया था। कितनी सही स्कीम थी। सच कहें तो नहीं। 4 जनवरी को लोकसभा में केंद्रीय महिला और बाल विकास राज्य मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार द्वारा इस पर कुछ कहा गया है।

उनकी मानें तो इस स्कीम की लगभग 56 प्रतिशत राशि “मीडिया गतिविधियों” यानी विज्ञापन और प्रचार पर खर्च की गई है।

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इसका मतलब यही है कि सरकार ने स्कीम को दिया आधे से ज्यादा फंड को केवल प्रचार प्रसार पर ही उड़ा दिया।

लगभग 19 प्रतिशत फंड तो रीलीज ही नहीं किया गया। यह लगभग 124 करोड़ रु है जो कि मामूली रकम नहीं है।

इसके बाद लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा बचता है और यही 25 प्रतिशत स्कीम के अंतर्गत जिलों में पहुंचे।

इनमें हरियाणा, यूपी, पंजाब, महाराष्ट्र और राजस्थान के कई हिस्से शामिल हैं। इस समय इस योजना में कुल 161 जिलों को शामिल किया जाना है। उन्हें मिलने वाले 25 प्रतिशत में लगभग 160 करोड़ रुपये हैं।

तो, 161 जिले और 160 करोड़ रु होते हैं। आइए थोड़ा हिसाब लगा ही लेते हैं। प्रत्येक जिले को स्कीम के तहत 1 करोड़ रुपये से कम मिला और पूरे चार साल में दिया गया तो यह एक वर्ष में 25 लाख रुपये से कम था।

भारत में लड़कियों के लिए जीवन को बेहतर बनाने की तुलना में ‘बेटी बचाओ’ के विज्ञापन पर अधिक पैसा खर्च किया गया है। लेकिन इन जिलों को जो राशि भेजी गई थी, हालाँकि रकम बहुत कम थी, लेकिन क्या इससे कोई फर्क पड़ा होगा? वास्तव में नहीं।

BBBP योजना के तहत 161 जिलों में से 53 जिलों में बाल लिंग अनुपात वास्तव में कम हुआ है। कुछ उदाहरण भी आपके सामने रखे जा सकते हैं। निकोबार में अनुपात 2014-15 में प्रति 1,000 लड़कों पर 985 लड़कियों से गिर गया और प्रति 1,000 लड़कों पर 839 लड़कियां हो गया।

यह एक बड़ी गिरावट है। पुदुचेरी में भी ऐसा ही कुछ दिखा। वहां हालत ऐसी है कि लिंगानुपात पहले से और ज्यादा गिर गया।

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एक ब्लॉग में, अर्थशास्त्री मिताली निकोरे ने यह समझाया कि फंड का केवल एक छोटा हिस्सा, लगभग पांच प्रतिशत, वास्तव में शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया गया है। और पांच प्रतिशत जिला स्तर पर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए जाता है। केंद्रीय स्तर पर प्रशिक्षण के लिए केवल एक प्रतिशत फंड मिलता है। फंडा का एक बड़ा हिस्सा पब्लिसिटी पर ही खर्च किया जाता है।

इससे पता चलता है कि बेटी बचाओ अभियान ने मोदी सरकार को कई पोइंट दिलाए होंगे लेकिन फर्क इस चीज से पड़ना चाहिए कि कितना हुआ है और अब भी बहुत ज्यादा होने की जरूरत है।

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