महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा लागू करने की अधिसूचना जारी की। सरकार ने स्पष्ट किया कि नया कोटा जो 1 फरवरी से लागू होगा उसे राजनीतिक रूप से प्रभावी मराठा समुदाय तक नहीं बढ़ाया जाएगा।
मंगलवार को 10% कोटा के रोलआउट से पहले राज्य की लगभग 85% आबादी पहले से ही आरक्षण के तहत थी। इसमें 13% अनुसूचित जाति, 7% अनुसूचित जनजाति, 30% अन्य पिछड़ा वर्ग (विमुक्त जाति घुमंतू जनजाति या VJNTs सहित), 2% विशेष पिछड़ा वर्ग और 33% मराठा शामिल थे।
पिछले साल नवंबर में पूरे राज्य में विरोध के बाद देवेंद्र फड़णवीस सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय के लिए 16% कोटा की घोषणा की थी। मराठों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की हाल ही में शुरू की गई श्रेणी के तहत लाया गया था। हालांकि इस कोटे के विधेयक को न्यायिक जांच को पास करना होगा।
बॉम्बे हाईकोर्ट में कई याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। फडणवीस सरकार ने स्पष्ठ किया है कि मराठों पर 10% ईडब्ल्यूएस कोटा लागू नहीं होगा। सेंट्रल के फार्मूले का हिसाब उन श्रेणियों के बीच गरीब वर्गों को शामिल नहीं करेगा जो पहले से ही कुछ आरक्षणों के अंतर्गत आते हैं। इसलिए मराठा समुदाय को नए कोटे से लाभ नहीं होगा।
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 10% कोटा का फैसले कैसे देखा जाए?
राजनीतिक रूप से लोकसभा चुनावों से पहले सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपनी जाति के अंकगणित को ठीक करने की कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी दोनों में ही मराठों का ही प्रभुत्व है इसलिए विपक्ष भी मराठों के लिए एक कोटे का समर्थन कर रहा है।
वास्तव में पिछले कांग्रेस-एनसीपी के शासन में ही 2014 के विधानसभा चुनावों से पहले मराठों के लिए 16% आरक्षण की घोषणा की थी। हालांकि इस कदम पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। दिलचस्प बात यह है कि इसके बाद हुए चुनावों में ओबीसी वोटों का झुकाव बीजेपी की ओर दिखा।
ईडब्ल्यूएस के लिए नए कोटे के तहत मराठों को शामिल नहीं करने का राज्य सरकार का फैसला इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि मराठों के लिए 16% आरक्षण का बिल अभी तक न्यायिक जांच से पास नहीं हुआ है। हालांकि सरकार ने अब तक कोटा पर रोक नहीं लगाई है। लेकिन उसने अदालत में एक प्रस्ताव पेश किया है जिसमें कहा गया है कि यह केस की पेंडेंसी के दौरान लागू नहीं किया जाएगा।
इसके अलावा, इस वर्ष जनवरी में महाराष्ट्र के पिछड़े वर्ग आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में मराठों को कुनबियों के बराबर बताया गया, जो पहले से ही ओबीसी में शामिल हैं। इसके बाद, ओबीसी के बीच एक वर्ग इस बात से सावधान है कि उच्च न्यायालय ने मराठों के लिए एक स्वतंत्र कोटा न लगाने की परिस्थिति में उन्हें ओबीसी में शामिल किया जाएगा।