आपने वो भजन तो सुना ही होगा जिसमें एक लाइन है “दुनिया चले ना श्री राम के बिना, राम जी चले ना हनुमान के बिना, अब हम तो सालों से यह ही सुनते आ रहे हैं कि राम का कोई भी काम हनुमान के बिना नहीं होता था। ऐसे ही देश की राजनीति में भी भगवान राम सालों से हैं लेकिन हनुमान कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। अब वो कमी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी कर दी है।
योगी आदित्यनाथ ने हाल में राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान दिए एक भाषण में हनुमान जी को वनवासी, आदिवासी और दलित बताकर उन्हें भी चुनावी जंग में शामिल करके बहस का रूख अलग दिशा में मोड़ दिया है।
योगी आदित्यनाथ ने कोई नई बात नहीं बोली है, जहां बीजेपी पर पिछले कुछ सालों से धर्म और जाति की सियासत करने के आरोप लगते रहे हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर हर छोटे-बड़े नेता कुछ ना कुछ बयान आए दिन देते रहते हैं। अब जब हनुमान को राजनीति में शामिल कर ही लिया गया है तो राजनीति के हनुमान के बारे में चर्चा होनी चाहिए।
कैसे थे रामायण के हनुमान ?
हमनें रामानंद सागर की रामायण से ही हनुमान को देखा है। टेलीविजन के इस दौर में ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम हर घर पहुंचे और राम और हनुमान की जोड़ी को लोगों ने खूब पसंद किया। हमने हनुमान को राम की हर मुश्किल दूर करते देखा है। दारा सिंह आज भी हनुमान के किरदार में भूले नहीं जाते हैं।
उस समय के बजरंगबली को ताकत के तौर पर देखा जाता था उसमें किसी भी तरह का धार्मिक आडंबर नहीं था।
सोशल मीडिया वाले हनुमान
पिछले कुछ समय से आप देख रहे होंगे कि हम सोशल मीडिया हों या कहीं लगे पोस्टर हों उनमें एक अलग तरह का हनुमान देख रहे हैं जो बड़ी-बड़ी आंखों से घूरता है। ये आज के दौर के हनुमान है जिसे सोशल मीडिया ने हम तक पहुंचाया है। रामायण वाले हनुमान जैसी सादगी, होशियार अंदाज जैसा इसमें कुछ नहीं झलकता है।
परंपराओं वाले हनुमान
इन सब के बीच हमनें वाल्मीकि की रामायण वाले हनुमान भी देखे। तुलसीदास ने भी अपने अंदाज में हनुमान का चित्रण किया और हनुमान के अंदर एक अलग तरह का चंचलपन और ताकतवर इंसान दिखाया। तुलसी का हनुमान वो था जो बचपन में गुस्से में जलते सूरज को निगल लेता है, पहाड़ों को हाथ पर उठा लेता है।
इसके अलावा वर्तमान में हमारे देश के हर हिस्से में हनुमान के कई मंदिर हैं। लेटे हनुमान, बड़े हनुमान, बूढ़े हनुमान, करंट हनुमान, वीजा वाले हनुमान जैसे कुछ मजेदार नामों वाले मंदिर भी हैं। वहीं उत्तराखंड में द्रोण पर्वत के इलाके में एक ऐसा मंदिर भी है जहां हनुमान की पूजा करना मना है क्योंकि कहा जाता है कि वो वहीं से संजीवनी बूटी उठाकर ले गए थे।
अब इस बदलते दौर में बजरंगबली का आ जाना कोई नई बात नहीं है। राजनीति है, अवसरवादी होती है तो समय-समय पर नामों और किरदारों के आने का दौर चलता रहता है।