भारत में पीने का पानी कम क्यों हो रहा है ? हर किसी की जिंदगी से जुड़ा सवाल !

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भारत में चेन्नई और बेंगलुरु के साथ लगभग आधा हिस्से में पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। मानसून में देरी इस समस्या को और बढ़ा सकती है। पिछले साल जारी की गई नीति आयोग की रिपोर्ट में अगले साल भारत के 21 शहरों में ‘डे जीरो’ की भविष्यवाणी की गई है। डे जीरो का मतलब जब किसी स्थान पर पीने के पानी की संभावना एकदम खत्म हो जाती है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और हैदराबाद सबसे ज्यादा संवेदनशील शहर हैं। सरकार ने पानी के संकट से उबरने के लिए एक नया जल शक्ति मंत्रालय बनाया है।

लेकिन फिर भी आइए समझते हैं कि भारत आज क्यों भारी जल संकट का सामना कर रहा है ?

भूजल (ग्राउंडवाटर) का अधिक इस्तेमाल

भारत में सबसे ज्यादा भूजल का इस्तेमाल किया जाता है। यहां जमीन से चीन और अमेरिका की तुलना सबसे ज्यादा पानी निकाला जाता है। देश की आधी से अधिक आबादी के लिए पानी की आपूर्ति भूजल से ही की जाती है।

2015 में, जल संसाधनों पर काम करने वाली एक कमेटी ने बताया कि भूजल भारत की खेती और पेयजल आपूर्ति का सबसे बड़ा हिस्सा है। भारत में निकाले जाने वाले भूजल का लगभग 89 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है।

कुल मिलाकर, शहरी जल की आवश्यकता का 50 प्रतिशत और ग्रामीण घरेलू पानी की करीब 80 प्रतिशत जरूरत भूजल द्वारा ही पूरी होती है। पिछले साल लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के अनुसार, 2007 और 2017 के बीच भारत में भूजल स्तर में 61 प्रतिशत की कमी आई है।

जल संसाधन मंत्रालय के तहत तैयार की गई रिपोर्ट में देश में बढ़ती जनसंख्या, तेजी से होता शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कम बारिश के कारण भूजल स्तर में तेजी से गिरावट हो रही है।

असमान वितरण और उपलब्धता

एक अनुमान है कि 81 प्रतिशत घरों में किसी न किसी स्रोत के जरिए हर दिन 40 लीटर पानी का उपयोग होता है और भारत में लगभग 18 से 20 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में पाइप से पानी की सप्लाई के लिए कनेक्शन हैं। इससे पानी की उपलब्धता और सप्लाई में इतना अंतर पैदा हो गया।

नीति आयोग के अनुसार, 75 प्रतिशत घरों में पीने का पानी नहीं है और लगभग 84 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पाइप से पानी नहीं पहुंच पाता है।

जहां पाइप के जरिए पानी पहुंचाया जाता है, वहां पानी का वितरण ठीक से नहीं किया जाता है। दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो सिटी को 150 लीटर प्रति व्यक्ति पानी हर रोज मिलता है जबकि अन्य को 40-50 एलपीसीडी मिलता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि एक व्यक्ति को एक दिन की सभी बुनियादी जरूरतों और खाने की जरूरतों को पूरा करने के लिए 25 लीटर पानी दिया जाना चाहिए।

इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में पाइप लाइन के पानी के रिसाव को रोकना एक और चुनौती होगी। एक अनुमान ये भी है कि भारत में लगभग 40 प्रतिशत पाइपों से रिसाव हो जाता है।

पानी की बर्बादी

भारत अभी भी एक अरब से अधिक लोगों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बारिश के पानी पर निर्भर रहता है। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत को एक साल में अधिकतम 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि उसे 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर बारिश से मिलता है।

भारत के दूसरी तरफ इजरायल है, जिसने रेगिस्तान में होकर भी जल संकट की स्थिति से निपटना सीखा है। इज़राइल में इस्तेमाल किए गए पानी का 100 प्रतिशत रिसाइकल करता है और 94 प्रतिशत पानी वापस घरों में पहुंचाया जाता है।

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