“नाथूराम गोडसे देशभक्त था”….ऐसे बयान क्यों दिए जाते हैं, यहां पूरा खेल समझिए

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भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों का मानना ​​है कि, अगले सप्ताह तक, उन्हें दूसरी बार भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना जाएगा। ये सही होने की संभावना है। लेकिन मोदी को चुनावी फायदा देने वाली बेदाग और मजबूत आदमी होने वाली छवि इस चुनावी मौसम में पूरी तरह से चौंकाने वाली बनकर रह गई है।

मोदी और उनकी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, भारत के चुनावों में कभी-कभार दिखाई देने वाली कुछ ऐसी बयानबाजी पर उतर आए हैं जो संभवतः अब तक की सबसे बदतर बयानबाजी है।

गुरुवार को, बीजेपी उम्मीदवार, प्रज्ञा सिंह ठाकुर जिस पर 2008 में मालेगांव ब्लास्ट के आरोप हैं जिसमें कम से कम 6 लोग, सभी मुसलमान मारे गए थे ने उस व्यक्ति का बचाव किया जिसने महात्मा गांधी की हत्या की थी। प्रज्ञा ने नाथूराम गोडसे को “देशभक्त” कहा।

भाजपा ने इस बयान से तुरंत खुद को अलग कर लिया। लेकिन यह देखते हुए कि खुद मोदी ने कितनी गंभीरता से उनकी उम्मीदवारी का बचाव किया है। अगर मोदी उनकी उम्मीदवारी वापस नहीं लेते हैं तो यह उनकी प्रतिष्ठा को भी दागदार करेगा।

ठाकुर का विवादास्पद बयान अभिनेता-राजनेता कमल हासन के एक बयान के बाद आय़ा, जिसमें उन्होंने गांधी के हत्यारे का जिक्र किया और कहा, “स्वतंत्र भारत का पहला चरमपंथी हिंदू था। उसका नाम नाथूराम गोडसे था। ”जवाब में, हासन को धमकी मिली, उस पर चप्पल फेंकी गई और उन्हें अदालत में घसीटा गया।

यह समझने के लिए इस तरह की बयानबाजी बीजेपी की तरफ से बार-बार क्यों होती रहती है इसे समझने के लिए आपको यह समझने की आवश्यकता है कि भाजपा ने 2019 का चुनावी अभियान किस तरह से चलाया है। मोदी ने चुनावों में हिंदुत्ववाद के साथ लोकलुभावन राष्ट्रवाद को गढ़ा है।

उन्होंने विपक्षी की आलोचना को इन सब में लपेट कर लोगों को परोसा है। प्रधान मंत्री ने साध्वी प्रज्ञा को उस पीड़िता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है जिसे फंसाया गया था और जिसके नाम पर हिंदुत्व को विपक्षी दलों ने बदनाम किया है।

यह सब भारत के हिंदू समुदाय में अन्याय की भावना को पैदा करने के लिए भाजपा की सबसे बड़ी लोकलुभावन रणनीति को ध्यान में रखते हुए किया गया है। यह देखते हुए कि हिंदू देश की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा हैं जहां लगभग 200 मिलियन मुस्लिम जिन्हें इस चुनाव के दौरान हाशिये पर धकेल दिया गया है।

लेकिन जैसे-जैसे इस तरह की मैसेजिंग चलती है, असर होने लगता है। भारत की आवाम पहले से ही ध्रुवीकृत है और ठाकुर जैसे उम्मीदवार इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं।

गांधी पर अपनी अपमानजनक टिप्पणियों से पहले, ठाकुर ने पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे का अपमान किया, जो 2008 के मुंबई हमलों के दौरान आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व करते हुए शहीद हुए। ठाकुर पर लगे बम धमाके की जांच के दौरान, करकरे ने उन हमलों में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल का पता लगाया।

ठाकुर ने उस समय कहा था कि करकरे को उन्होंने “श्राप” दिया था। अब एक बार फिर पार्टी ने खुद को साध्वी के बयान का बचाव किया है। लेकिन ये भी काफी विरोधाभास लगता है विशेष रूप से यह देखते हुए कि पार्टी के नेतृत्व ने बार-बार उनका बचाव किया है।

कुछ मोदी समर्थक ठाकुर के बयान को “फ्रिंज” बताकर खारिज कर रहे हैं लेकिन यह एक बेहुदा तर्क है। योगी आदित्यनाथ के लिए एक ऐसा ही विशेषण इस्तेमाल हुआ करता था, जो अब भारत के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।

तो क्या मोदी इन नफरत करने वालों का बचाव करते रहेंगे? यह सवाल तब भी मान्य रहेगा, जब परिणाम मोदी को भारी चुनावी जीत दिलाएंगे। वास्तव में, यह सवाल अब और भी अधिक प्रासंगिक होगा।

क्या भारत गांधी की भूमि रहेगा? या फिर महात्मा को देशद्रोही करार दिया जाएगा और उनके हत्यारे को देशभक्त बनाया जाएगा?

(लेख में व्यक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त के हैं।)

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