इतने मनमुटाव के बाद भी बीजेपी और शिव सेना क्यों साथ आ गए?

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BJP-Shiv-Sena

आज से लगभग 13 महीने पहले शिवसेना ने सभी चुनाव अकेले लड़ने का फरमान जारी किया था लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव आने को हैं तो पार्टी ने भाजपा के साथ हाथ मिला लिया है। गठबंधन की घोषणा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मुंबई में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की उपस्थिति में की।

फडणवीस ने कहा कि “शिवसेना और भाजपा पिछले 25 वर्षों से साथ हैं। कुछ मतभेद रहे हैं लेकिन दोनों पार्टियां वैचारिक रूप से हिंदुत्व के साथ खड़ी हैं और यही कारण है कि हम एक साथ आए हैं”। फडणवीस ने कहा कि कुछ दल भ्रम पैदा करने और राष्ट्रवादी सोच को चुनौती देने के लिए एक साथ आ रहे हैं और इसलिए जरूरी है कि राष्ट्रवादी दल एक साथ आएं”

fadnavis-thackeray
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लगभग आधी-आधी सीटें शेयर की गई हैं जिसमें भाजपा के लिए 25 और शिवसेना के लिए 23 सीटें रखी गई हैं। 1989 के बाद से शिव सेना और भाजपा एक साथ हैं। दोनों दलों ने हमेशा से ही राजनीतिक ताकत हासिल करने के लिए एक-दूसरे का साथ दिया। हालांकि शिवसेना ने वर्षों तक गठबंधन में प्रमुख भूमिका निभाने के बाद असुरक्षित महसूस करना शुरू कर दिया था क्योंकि 2014 में भाजपा विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी।

शिवसेना के पास और कोई विकल्प नहीं था और बीजेपी के साथ ही गठबंधन में रही। लेकिन शिव सेना भाजपा की हर संभव अवसर पर आलोचना करती नजर आ रही थी। फडणवीस ने कहा है कि एक समान सीट-बंटवारे का फार्मूला विधानसभा चुनावों के लिए भी लागू होगा। फडणवीस ने कहा कि दोनों पार्टियां अन्य सहयोगियों के साथ बातचीत करेंगी। अन्य सहयोगियों को आवश्यक सीटें बांटने के बाद, दोनों पार्टियां महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में समान सीटों पर लड़ेंगी।

shiv sena and bjp
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गठबंधन के माध्यम से सीटें शेयर करने से बीजेपी और शिवसेना दोंनों को ही फायदा होता आया है। शिव जहां बीजेपी की पूरे देश में लोकप्रियता का फायदा उठाती है वहीं महाराष्ट्र में बीजेपी शिव सेना के जरिए अपनी पैठ बढ़ाती आई है।

प्रारंभ में, विधानसभा चुनावों में शिव सेना को सीटों का बड़ा हिस्सा मिला जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा ज्यादा सीट लेती थीं। यह धीरे-धीरे बदल गया और 2014 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने 24 सीटों पर और शिवसेना ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा। उस वर्ष के विधानसभा चुनावों में पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, क्योंकि शिवसेना कैडर के बीच यह धारणा बढ़ गई कि गठबंधन से बीजेपी को ज्यादा फायदा मिल रहा है।

कांग्रेस और एनसीपी पहले ही गठबंधन की घोषणा कर चुके हैं ऐसे में कांग्रेस और एनसीपी को टक्कर देने के लिए बीजेपी और शिव सेना के पास एक साथ आने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

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