अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए इतने उतावले क्यों हो रहे हैं?

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस से बार-बार मनमुटाव के बावजूद आम आदमी पार्टी (आप) राजधानी की सात लोकसभा सीटों के लिए चुनाव पूर्व गठबंधन के लिए उत्सुक है।

बुधवार को जामा मस्जिद के पास एक रैली में केजरीवाल ने कहा कि हम (AAP) कांग्रेस को मना मना कर थक गए कि गठबंधन कर लो, गतबंधन कर लो। और निराशा व्यक्त की कि कांग्रेस ने जवाब नहीं दिया था।

2015 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में इतना अच्छा प्रदर्शन करने के बाद आम आदमी पार्टी को बीजेपी से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस की जरूरत क्यों है?

केजरीवाल ने कहा कि मेरा मानना है कि भाजपा के खिलाफ हर जगह केवल एक ही विपक्षी उम्मीदवार होना चाहिए> अगर कोई व्यवस्था होती है (कांग्रेस और AAP के बीच) तो भाजपा दिल्ली में जरूर हारेगी।

आप कांग्रेस को लेकर कह रही है कि वह अपने दम पर तीन-कोस की लड़ाई में कुछ भी नहीं जीतेगी। और अगर वह AAP के साथ हाथ मिलाने के लिए सहमत हो जाती है तो बीजेपी को हराया जा सकता है।

आगे आप का मानना है कि अगर दिल्ली की सातों सीटों पर कांग्रेस जीत दर्ज करने का दम रखती तो आम आदमी पार्टी सभी सीटें छोड़ने के लिए तैयार है लेकिन ऐसा है नहीं।

इस तरह का बयान केजरीवाल के लिए नैतिक उच्च आधार का दावा करता है कि भाजपा को हराने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं। और साथ दिल्ली में अपनी कमजोर स्थिति पर कांग्रेस को एक संदेश भी भेज रहे हैं।

केजरीवाल भाजपा विरोधी मतदाताओं को भी समझ रहे हैं कि अगर वे कांग्रेस और AAP के बीच अपने वोटों को विभाजित कर बैठेंगे तो संभावित रूप से जो वे चाहते हैं उसके विपरीत है भाजपा की जीत होगी। AAP के लिए वोटिंग दो विपक्षी दलों की ताकत है, इसलिए, उनके लिए यह अधिक स्मार्ट और अधिक तार्किक बात है।

2014 में, जब तीनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा तो कांग्रेस और AAP के वोट शेयर कुल मिलाकर लगभग 49% तक बढ़ गए और 45% से अधिक वोट भाजपा को मिले।


AAP और कांग्रेस के उम्मीदवारों के वोट सात में से छह सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार से ज्यादा थे। एकमात्र अपवाद पश्चिम दिल्ली रहा जहां पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे परवेश साहिब सिंह ने कांग्रेस के महाबल मिश्रा और AAP के जरनैल सिंह दोनों को मिलाकर भी ज्यादा वोट खींचे।

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