भारत में दो बड़े राजनीतिक दल है कांग्रेस और बीजेपी। पिछले दो दशक से देश की शासन सत्ता इन दोनों पार्टियों के गठबंधन के हाथों में ही रही है। देश का विकास करना ही इन दोनों गठबंधनों की प्राथमिकता है। जब विकास ही प्राथमिकता है तो एक—दूजे की टांग खिंचाई क्यों? विकास में त्रुटियां दिखे तो विरोध बनता है पर हमेशा आप सरकार के पीछे हाथ धोकर पड़ जाएं और हर कार्य को नकारात्मक रूप में जनता के सामने पेश करें या उन अच्छी योजनाओं में बेवजह खामियां ढूंढ़े तो कहां तक सही हैं? सरकार की कमियां ढूंढ़ना अच्छा है पर बाधक बनकर नहीं बल्कि उसे सही तरीके से अपने संसदीय क्षेत्र तक पहुंचाना बड़ी बात है।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस गठबंधन को देश की जनता ने एक बार फिर नकार दिया। वहीं पहली बार किसी गैर कांग्रेसी गठबंधन ने लगातार दूसरी बार सरकार बनाई है। दोबारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंधन ने देश की बागडोर संभाली है। हाल में कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री मोदी की विकासात्मक नीतियों को लेकर बंटती दिख रही है। कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य जयराम रमेश, वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की है। उन्होंने कहा हमेशा प्रधानमंत्री की नीतियों को गलत ठहराना उचित नहीं है। इस पर बाद में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने नाराजगी जताई है।
जरूरत है देश की पार्टियों को दलगत नीति से ऊपर उठने की
जब पार्टियां चुनाव जीतकर सरकार बनाती है तो पार्टियों को चाहिए कि वह सरकार को बिना किसी दबाव के कार्य करने दें। विपक्ष पार्टियों से प्रेरित होकर सरकार की टांग खिंचाई न करें बल्कि खामियां दिखें तो आलोचना और विरोध करना चाहिए ताकि सरकार अपनी नीतियों की खामियों पर मंथन कर सके। बाकी पार्टियों के सदस्यों को चाहिए कि वह सरकार की योजनाओं का लाभ अपने क्षेत्र में पहुंचाएं, जिनके लिए जनता ने आपको चुना है।
ऐसा ही कुछ प्रतीत होता है जयराम रमेश के हाल में कहे शब्दों से। उन्होंने गुरुवार को किसी पुस्तक विमोचन समारोह में कहा था, ‘वक्त आ गया है कि अब हम वर्ष 2014 से 2019 के बीच मोदी द्वारा किए गए काम को समझें, जिसकी वजह से वह मतदाताओं के 30 प्रतिशत से अधिक वोट से वापस सत्ता में लौटें।’ उनका अभिप्राय यह था कि हमें पीएम मोदी के काम के महत्व को स्वीकार करना होगा। उन्हें हमेशा खलनायक की तरह पेश करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। उनके गर्वनेंस मॉडल को पूरी तरह से नकारात्मक नहीं ठहराया जा सकता है।
एक सरकार के कार्यों का सही मायने में विश्लेषण करने और सरकार की नीतियों को जनता तक पहुंचाना भी एक प्रतिनिधि का कर्तव्य होता है। जनता के प्रति सरकार के कार्यों को समझे, साथ ही उन्हें अपने क्षेत्र के जरूरतमंदों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने में ज्यादा वक्त दें।
क्या मायने हैं पीएम मोदी के प्रति अभिषेक मनु सिंघवी के
वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने ट्वीट किया कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। विपक्ष ने सिर्फ उनके विरोध का रुख अपनाया हुआ है। इससे सही मायनों में मोदी को ही फायदा हो रहा है। किसी भी व्यक्ति के काम अच्छे, बुरे या कुछ अलग हो सकते हैं। इनका व्यक्ति नहीं बल्कि मुद्दों के आधार पर आंकलन किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से उज्ज्वला स्कीम उनके कई अच्छे कामों में से एक हैं।
पीएम मोदी की तारीफ पर नाराज हैं ये कांग्रेस नेता
जहां जयराम रमेश और सिंघवी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पीएम मोदी के कार्यों की तारीफ की है तो दूसरी ओर कांग्रेस के ही कई नेताओं ने उनके इस कदम से अपनी नाराजगी जाहिर की है। राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के उप नेता आनंद शर्मा ने कहा कि प्रधानमंत्री और सरकार के कामों की आलोचना करना विपक्ष का कर्त्तव्य हैं। इसे खलनायक की तरह पेश करना नहीं कहा जा सकता है। शर्मा ने कहा कि बिना सरकार की आलोचना के लोकतंत्र नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा कि विपक्ष से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए की वह सरकार जो भी करेगी, उसकी तारीफ करेगा। विपक्ष को यदि लगता है कि सरकार गलत कर रही है तो उसे सवाल करने, आलोचना करने और विरोध करने की उम्मीद की जाती है। दूसरी तरफ कांग्रेस कार्य समिति की अन्य नेता कुमार सैलजा ने रमेश के बयान की आलोचना की।
सकारात्मक रूप में स्वीकार करने की जरूरत
अगर इन नेताओं की बातों को हम एक दलगत नीति से उपर उठकर देखें तो इन कांग्रेस नेताओं द्वारा एक सरकार के कामों की तारीफ वाकई एक सकारात्मक राजनीति को जन्म दे सकती है। इन नेताओं का लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। यदि उन्होंने देश के पीएम की विकासात्मक नीतियों पर कुछ कहा है तो जरूर कुछ सोच कर ही कहा होगा। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो विपक्ष को सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार है, साथ ही उन जनप्रतिनिधियों को यह नहीं भूलाना चाहिए कि सरकार की योजनाओं का लाभ अपने क्षेत्र के लोगों तक पहुंचाना भी उनकी प्राथमिकता है। भारतीय राजनीति को दलगत नीति से ऊपर उठने की बेहद जरूरत है। अत: हमें इन नेताओं से नाराजगी की नहीं बल्कि उनके साहस पूर्ण कदम और विकासात्मक सोच का आदर करना चाहिए।