अमेरिकी कंपनी एप्पल दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में एक मानी जाती है। लेकिन आपको हैरानी होगी कि अमेरिका एप्पल के आईफोन के पार्ट्स अमेरिका में नहीं बना पा रहा है और इनको चीन में मेन्यूफेक्चर किया जा रहा है। आई फोन के साथ साथ मैकबुक के भी यही हाल हैं।
सवाल उठता है कि इतना बड़ा देश फिर भी एप्पल के पार्ट्स अमेरिका में ही क्यों नहीं बन पा रहे? इसके पीछे कई तरह की वजहें बताई जा रही हैं। संसाधनों की कमी से भी ऐसा किया जा रहा है।
स्किल की कमी, लेबर कोस्ट भी रहा बड़ा फैक्टर-
अमेरिका में स्किल्ड लोगों की कमी के कारण आई फोन के पार्ट्स चीन में जाकर बनते हैं। इसके अलावा देखा जाए तो लेबर कोस्ट भी अमेरिका में ज्यादा है। इसी लिए एप्पल ने पार्ट्स के काम के लिए 11 लाख करोड़ का बिजनेस चीन को सौंप दिया।
स्क्रू की की कमी के कारण एप्पल की बिक्री एक बार बहुच ज्यादा प्रभावित हुई थी और इससे बचने के लिए एप्पल ने चीन में अपना कारोबार बढ़ाया। कहा जा रहा है कि एप्पल की नजर भारत पर भी है। मैन्यूफेक्चरिंग के लिए कई तरह के प्रोजेक्ट चीन में शुरू किए गए थे और रोजगार भी दिया गया।
कंपनी को लग रहा है बड़ा झटका, कीमतें भी गिर सकती हैं
कंपनी ने हालही चीन में आईफोन की कीमतों को कम कर दिया है और कहा जा रहा है भारत में भी आईफोन सस्ते हो सकते हैं। आईफोन की सेल में कमी आई है। सेल नहीं बढ़ने के कारण आई फोन को बड़ा झटका लग रहा है। बताया जा रहा है कि आईफोन का रेवेन्यू पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी कम हुआ है।
कंपनी द्वारा इसके कई कारण बताए जा रहे हैं। कंपनी के ceo टिम कुक का कहना है कि इसके डॉलर का मजबूत होना हो सकता है। उनका मानना है कि दुनिया भर में डॉलर मजबूत हो रहा है और इसके कारण आई फोन की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
चीन में कैसा रहा कारोबार?
कंपनी की मानें को एपल का बाजार चीन में भी प्रभावित रहा। चीन को एपल के लिए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मार्केट माना जाता है। लेकिन साल 2018 के दूसरे हाफ में चीन की अर्थव्यवस्था में कमी आई थी। इस पर कंपनी के कुक ने कहा कि 25 सालों में सबसे कम जीडीपी ग्रोथ का सामना करना पड़ा जिसके कारण चीनी रिटेल स्टोर्स को भी झटका झेलना पड़ा।
भारत में हालत गिरी
अगर बात इंडिया की करें तो काउंटर प्वाइंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के मुकाबले 2018 में एप्पल की भारत में शिपमेंट 50 फीसदी तक कम हो गई है। 2017 में शिपमेंट 32 करोड़ यूनिट तक थी जो कि घटकर 2018 में 17 करोड़ यूनिट रह गई।