आर्थिक मामलों के पूर्व सचिव और वित्त आयोग के मौजूदा सदस्य शशिकांत दास को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का नया गवर्नर बनाया गया है। उर्जित पटेल ने व्यक्तिगत कारणों से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में इस्तीफा दे दिया था। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि सरकार और रिजर्व बैंक अधिकारियों के बीच मतभेदों के कारण उर्जित ने इस्तीफा दिया है।
2015 से 2017 तक आर्थिक मामलों के सचिव के रूप में शशिकांत दास ने केंद्रीय बैंक के साथ मिलकर काम किया है। वर्तमान में वह 20 समिट ग्रुप में सरकार के प्रतिनिधि भी हैं।
1980 के तमिलनाडु बैच से आईएएस अधिकारी शशिकांत दास ने जून 2014 में केंद्रीय राजस्व सचिव के रूप में प्रभारी पदभार संभाला था। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार के आने के बाद वे पहले ऐसे ब्यूरोक्रेट थे जिन्हें फाइनेंस मिनिस्ट्री में अपोइंट किया था, जिससे पता चलता है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के काफी करीबी हैं।
आर्थिक मामलों के सचिव के रूप में वे शशिकांत दास ही थे जिन्होंने नोदबदी में सरकार का साथ दिया। उसकी प्लानिंग शशिकांत द्वारा ही की गई थी। जितने भी स्टेटमेंट नोटबंदी के लिए दिए गए थे उनके पीछे शशिकांत ही थे। जिससे लोगों को लगा कि आरबीआई के बजाय सरकार नोटबंदी के लिए ज्यादा आगे थी। अक्टूबर 2015 में शशिकांत दास को आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल में नामित किया गया था।
जाहिर है, दास वही व्यक्ति है जिसने आर्थिक शासन, सरकार और आरबीआई दोनों पक्षों को देखा है। जीएसटी के पीछे भी शशिकांत दास का ही दिमाग माना जाता है। मोदी सरकार के तुरंत बाद जीएसटी को अप्लाई करने में दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। राजस्व सचिव के रूप में उन्होंने वित्त मंत्री जेटली और राज्य वित्त मंत्रियों की सशक्त समिति के साथ मिलकर काम किया।
दास तमिलनाडु के सफल एसईजेड और औद्योगिक नीति के लिए जिम्मेदार भी थे। उन्होंने बाइंडिंग प्रोसेस के बिना तमिलनाडु में निजी आईटी कंपनियों को सरकारी भूमि आवंटित करने के लिए राजनीतिक दबाव को रोका था।
आरबीआई का गर्वनर दास का बनने से से केंद्रीय बैंक को सरकार के दृष्टिकोण की ओर ले जाने के लिए एक कदम के रूप में देखा जा सकता है। आरबीआई के नए प्रमुख के रूप में दास को सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच के मुद्दों का सामना करना पड़ेगा जिन्हें पूरी तरह से हल नहीं किया गया है।