पाकिस्तान में लगी ‘पंजाब महाराजा’ रणजीत सिंह की मूर्ति लेकिन ये थे कौन?

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पाकिस्तान के लाहौर में 27 जून को एक मूर्ति का उद्घाटन किया गया और वो मूर्ति थी लगभग चार दशकों (1801-39) तक पंजाब पर शासन करने वाले रणजीत सिंह की। 27 जून को उनकी पुण्यतिथि आती है।

रणजीत सिंह का जन्म 13 नवंबर 1780 को गुजरांवाला में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उस समय, पंजाब पर शक्तिशाली सरदारों का शासन था जिन्होंने इस क्षेत्र को मिसलों में विभाजित किया था। रणजीत सिंह ने युद्ध कर मिसलों को उखाड़ फेंका और 1799 में लाहौर पर विजय प्राप्त करने के बाद एक एकीकृत सिख साम्राज्य की स्थापना की।

उन्हें शेर-ए-पंजाब कहा जाने लगा क्योंकि उन्होंने लाहौर में अफगान आक्रमणकारियों को रोका था। रणजीत सिंह की मौत तक लाहौर ही उनकी राजधानी रही। उनके जनरल हरि सिंह नलवा ने खैबर दर्रे के मुहाने पर जमरूद का किला बनवाया। खैबर दर्रे के रास्ते ही विदेशी शासकों ने भारत पर आक्रमण किया। उनकी मौत के समय भारत में इकलौते सबसे ज्यादा ताकतवर शासक बचे थे। बाकी जो भी थे वे किसी ना किसी तरीके से ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन थे।

उन्होंने उस समय एशिया की सबसे शक्तिशाली स्वदेशी सेना जुटाने के लिए पारंपरिक खालसा सेना के मजबूत टुकड़ियों को जोड़ा। उसने अपने सैनिकों को ट्रेनिंग देने के लिए बड़ी संख्या में यूरोपीय अधिकारियों विशेष रूप से फ्रांसीसी को भी नियुक्त किया। उसने अपनी सेना का आधुनिकीकरण करने के लिए फ्रांसीसी जनरल जीन फ्रैंक्विस एलार्ड को नियुक्त किया। 2016 में सेंट ट्रोपेज़ शहर ने महाराजा की कांस्य प्रतिमा का सम्मान के रूप में उद्घाटन किया।

पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्राध्यापक डॉ इंदु बंगा ने कहा कि रणजीत सिंह की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ आवाज उठा रही थी। बंगा ने आगे कहा कि चिलियानवाला की लड़ाई के दौरान रणजीत सिंह की सेना द्वारा अंग्रेजों को सबसे ज्यादा हताहत किया गया था।

रणजीत सिंह का साम्राज्य कई राज्यों में फैला हुआ है। उनके साम्राज्य में लाहौर और मुल्तान के पूर्व मुगल प्रांत के अलावा काबुल और पूरे पेशावर का हिस्सा भी शामिल था। उसके राज्य की सीमाएँ लद्दाख तक जाती थीं। जम्मू के एक सेनापति जोरावर सिंह ने रणजीत सिंह के नाम पर लद्दाख को जीत लिया था। उनके शासन के दौरान पंजाब छह नदियों का देश था।

महाराजा अपने न्याय और धर्मनिरपेक्ष शासन के लिए जाने जाते थे। उसके दरबार में हिंदू और मुसलमानों दोनों को शक्तिशाली स्थान दिया गया था। सिखों ने उस पर गर्व किया क्योंकि उसने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब को सोने से ढ़ककर स्वर्ण मंदिर में बदल दिया था। मंदिर में एक पट्टी है जिसमें बताया गया है कि कैसे 1830 ईस्वी में महाराजा ने 10 साल वहां सेवा की थी।

महाराष्ट्र के नांदेड़ में गुरु गोविंद सिंह के अंतिम विश्राम स्थल पर हज़ूर साहिब गुरुद्वारे की फंडिंग के लिए भी उन्हें जाना जाता है। आज, उनके सिंहासन को लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाता है। पिछले साल लंदन ने एक एग्जिबिशन को होस्ट किया जो सिख साम्राज्य के इतिहास और महाराजा रणजीत सिंह की विरासत पर आधारित था।

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