अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) जॉन बोल्टन को बर्खास्त कर दिया है। ट्रंप ने बोल्टन की बर्खास्तगी की सूचना अपने ट्विटर अकाउंट से दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ‘मैंने कल रात जॉन बोल्टन को सूचित किया था कि व्हाइट हाउस में उनकी सेवाओं की अब कोई जरूरत नहीं है। मैं उनके कई सुझावों से असहमत था।’ उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह जॉन बोल्टन की नीतियों से संतुष्ट नहीं है।
उसके बाद उन्होंने नए ट्वीट में नए एनएसए नियुक्त करने की बात लिखी, ‘मैंने जॉन से उनका इस्तीफा मांगा, जो आज सुबह उन्होंने मुझे दे दिया। मैं जॉन को उनकी सेवा के लिए बहुत धन्यवाद देता हूं। मैं अगले सप्ताह एक नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को नामित करूंगा।’
….I asked John for his resignation, which was given to me this morning. I thank John very much for his service. I will be naming a new National Security Advisor next week.
— Donald J. Trump (@realDonaldTrump) September 10, 2019
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन की गिनती अमेरिका के उन चुनिंदा नौकरशाहों में होती है, जो अपनी नीति को लागू करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। चाहे फिर युद्ध की ही बात क्यों न हो। हाल में अंतर्राष्ट्रीय विवादों जैसे ईरान, नॉर्थ कोरिया, अफगानिस्तान में अमेरिका का सख्त रुख उनकी ही देन है। इन ज्वलंत मुद्दों की वजह से डोनाल्ड ट्रंप उनसे संतुष्ट नहीं है। अंतत: उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
कौन हैं एनएसए जॉन बोल्टन
जॉन बोल्टन का जन्म 20 नवंबर, 1948 को मैरीलैंड के बाल्टीमोर में हुआ। उन्होंने येल यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की है। उन्होंने वर्ष 1970 में स्नातक की डिग्री हासिल की। वर्ष 1971 से लेकर 1974 तक वह येल लॉ स्कूल में रहे। जॉन बोल्टन मुस्लिम विरोधी गैस्टस्टोन इंस्टीट्यूट के अलावा कई रूढ़िवादी संगठनों के साथ जुड़े रहे हैं, जहां उन्होंने मार्च, 2018 तक संगठन अध्यक्ष के तौर पर काम किया।
बोल्टन 9 अप्रैल, 2018 को अमेरिका का 27वां राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया था। इससे पहले वह राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल में अगस्त, 2005 से दिसंबर, 2006 तक संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका के राजदूत पद पर रह चुके हैं। बोल्टन अमेरिकी अटॉर्नी, राजनीतिक टिप्पणीकार, रिपब्लिकन सलाहकार और पूर्व राजनयिक हैं।
जॉन बोल्टन की राजनीति में रूचि बचपन से ही थी, जिसकी वजह से वह 15 साल की उम्र से ही रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन करते रहे हैं और रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बैरी गोल्डवाटर (1964) के लिए उन्होंने स्कूल के दिनों में प्रचार किया था। तब से वह इस पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।
यूं रही जॉन बोल्टन की दूसरे देशों के प्रति आक्रामक नीति
बोल्टन की नीतियां प्रारंभ से ही आक्रामक रही है। वह किसी भी देश से हमेशा युद्ध के लिए तत्पर रहते हैं, यही नहीं वह कई देशों में तो सत्ता परिवर्तन के पक्ष में रहे हैं।
जॉन बोल्टन की आक्रामक नीति से जुड़े कुछ निर्णय इस प्रकार रहे हैं—
वर्ष 1998 में जब वह अमेरिका की एजेंसी न्यू अमेरिकन सेंचुरी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे हैं, उस दौरान उन्होंने ईरान के साथ युद्ध करने का समर्थन किया था।
उत्तरी कोरिया के साथ पिछले दिनों जहां राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मित्रता की ओर हाथ बढ़ाया था, परंतु जॉन बोल्टन की नीति उनके विपरीत थी। बोल्टन के विचारों में अमेरिका को बिना देरी किए उत्तरी कोरिया पर आक्रमण करना चाहिए, ताकि वह भविष्य में खतरा न बन सके। वहीं ट्रंप-किम जोंग उन के बीच होने वाली मुलाकात रद्द होने के पीछे भी जॉन बोल्टन की नीति ही जिम्मेदारी थी, क्योंकि उन्होंने उत्तरी कोरिया के सामने कई कठिन शर्तें रख दी थी।
हाल में ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु समझौते पर तकरार जारी है। इस पर जॉन बोल्टन एक ही नीति है, यदि वह न माने तो उस पर बम बरसा देने चाहिए। बोल्टन की इसी नीति की वजह से डोनाल्ड ट्रंप ने अपने विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन को हटा दिया था।
जब बराक ओबामा ने वर्ष 2015 में ईरान के साथ परमाणु समझौता करना चाहा तो बोल्टन ने इसका काफी विरोध किया था। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख में लिखा कि अब वक्त आ गया है हमें कार्यवाही कर देनी चाहिए।
जब जॉर्ज बुश ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र में एंबेसडर बनाकर भेजा तो उन्होंने अपने एक भाषण में यहां तक कह दिया कि दुनिया को UN की आवश्यकता नहीं है, दुनिया को समय आने पर ताकतवर देश दिशा दिखा सकते हैं और अमेरिका सबसे ताकतवर है।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि जॉन बोल्टन की नीति वैश्विक शांति के लिए काफी हद तक घातक है। यह माना जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप काफी आक्रामक है, लेकिन जॉन बोल्टन उनसे कहीं आगे हैं।