पुलवामा हमले के बाद भारत सरकार एक्शन के मूड में है। हमले के अगले दिन जहां कारोबार में पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया तो अब सरकार ने दबाव बढ़ाने का दावा करते हुए हुर्रियत कांफ्रेस के नेताओं की सुरक्षा हटा दी है। जिन अलगाववादी नेताओं की सिक्योरिटी हटाई गई है उनमें मीरवाइज उमर फारूख, अब्दुल गनी बट्ट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शब्बीर शाह हैं।
सरकार का काफी समय से यह मानना है कि जम्मू-कश्मीर में कुछ तत्व ऐसे हैं जिनकी आईएसआई और आतंकवादी संगठनों के साथ मिलीभगत है। ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर जम्मू कश्मीर में क्यों है अलगाववादी नेता और क्या है उनकी हुर्रियत कांफ्रेंस।
कौन होते हैं अलगाववादी ?
अलगाववादी एक ऐसा व्यक्ति होता है जो एक समूह, समाज, संस्कृति या धर्म को तोड़ने का समर्थन करता है। अलगाववाद शब्द की उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में Protestants शब्द से हुई जो चर्च ऑफ इंग्लैंड से अलग करने के लिए हुई थी लेकिन आज अलगाववाद हमारे देश में जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है।
कैसे बनी अलगाववादियों की ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस
वह संगठन जो जम्मू कश्मीर में अलगाववाद की विचारधारा को हवा देता है। जब 1987 के फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने एक साथ चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो घाटी में इस फैसले का पुरजोर विरोध देखा गया।
हालांकि चुनाव के बाद फारुख अब्दुल्ला ने राज्य में अपनी सरकार कायम की और मुख्यमंत्री बने। चुनाव में विरोध करने वाले संगठनों ने फिर मिलकर 13 जुलाई 1993 को ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस बनाई जिसका मुख्य उद्देश्य रखा गया कि घाटी में अलगाववादी आंदोलन को तेज करना।
क्या है मकसद ?
हुर्रियत कांफ्रेंस में सिर्फ वो ही लोग शामिल हुए जो यह मानते हैं कि कश्मीर की समस्या का हल वहां के लोगों के बीच जनमत संग्रह करवाकर उसे एक अलग पहचान मिले। हालांकि शुरूआत से ही हुर्रियत के नेताओं पर पाकिस्तान की तरफ नरम रूख अपनाने के भी आरोप लगते रहे हैं। हुर्रियत के नेताओं का मानना है कि हम यहां रहने वाली आवाम के मन की बात को सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं।
खुद हुर्रियत है बंटा हुआ !
कश्मीर के मसले का अभी तक कोई हल नहीं निकला है। वहीं हुर्रियत की अलग कश्मीर की मांग में भी कई विरोधाभास हैं। कुछ नेता यह मानते हैं कि कश्मीर को भारत से अलग कर एक नया देश बनाया जाए तो किसी का कहना है कि कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल किया जाना चाहिए। जबकि एक खेमे के लोग यह भी कहते हैं कि कश्मीर को पूरी स्वायत्ता दी जाए।
हुर्रियत का है अपना अलग संविधान
हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता अपने आप को एक सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक संगठन का हिस्सा बताते हैं। इनके संविधान क मुताबिक घाटी में शांतिपूर्ण संघर्ष को बढ़ावा देने के साथ-साथ यहां के आम लोग आजादी की हवा में सांस ले सकें। भारत, पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर के बीच एक वैकल्पिक हल निकालने की बात हुर्रियत नेता करते है।