2007 और उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार के समय के दौरान बसपा संस्थापक कांशी राम और बसपा के चुनाव चिन्ह ‘हाथी’ की मूर्तियों सहित कई दलित स्मारकों के निर्माण में पैसों की हेरा फेरी के आरोपों को तथाकथित “स्मारक घोटाला” कहा जाता है।
यूपी सतर्कता विभाग ने 2014 में एक शिकायत दर्ज की थी जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। जिसमें आरोप लगाया गया था कि सरकारी खजाने को 111,44,35,066 रुपये का नुकसान हुआ और सरकारी कर्मचारियों और निजी व्यक्तियों को गैरकानूनी लाभ हुआ।
मायावती सरकार ने लखनऊ, नोएडा और राज्य के कुछ अन्य स्थानों पर 2,600 करोड़ रुपये की लागत से स्मारक, प्रतिमाएं और पार्क बनाए थे।
यूपी लोकायुक्त की एक रिपोर्ट के आधार पर सतर्कता FIR दर्ज की गई थी, जिसने मई 2013 में आरोप लगाया था कि स्मारक के निर्माण में सार्वजनिक धन के 1,400 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
रिपोर्ट में मायावती के करीबी सहयोगियों और पूर्व मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा और उनके पार्टी के 12 विधायकों सहित 199 लोगों पर गलत काम का आरोप लगा था। आरोपों में कहा गया कि स्मारक के लिए बलुआ पत्थर की खरीद में गड़बड़ी की गई थी।
मार्च 2012 में सीएम बनने के तुरंत बाद अखिलेश यादव ने लोकायुक्त को मिर्जापुर से गुलाबी बलुआ पत्थर की खरीद में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए कहा था। लोकायुक्त एन के मेहरोत्रा ने अखिलेश को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए सिद्दीकी और कुशवाहा सहित 19 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात) के तहत एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की थी।
हालांकि, मेहरोत्रा ने संवाददाताओं को बताया कि कथित घोटाले में मायावती की व्यक्तिगत भागीदारी का कोई सबूत नहीं था। पिछले साल सितंबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी विजिलेंस जांच पर स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी।
ED द्वारा अब मायावती को इस घोटाले को लेकर घेरा जा रहा है। फिलहाल सामने आ रहा है कि मायावती सरकार के कार्यकाल में कथित 14 अरब के स्मारक घोटाले में ईडी ने बीएसपी चीफ के करीबियों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। ये कार्यवाही लोकसभा चुनावों को ओर इशारा करती हैं। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने बीजेपी को हराने के लिए गठबंधन किया है।