मोदी vs ममता: बंगाल में लोकसभा चुनावों के बाद आखिर चल क्या रहा है?

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23 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बंगाल अभी भी सुर्खियों में बना हुआ है। चुनाव परिणामों ने भाजपा में बंगाल के लिए एक अलग ही जोश भरा है। बंगाल फिलहाल एक उबलते बर्तन जैसा है जहां नरेंद्र मोदी के दल और ममता बनर्जी के बीच हिंसक राजनीतिक संघर्ष जारी है।

भारतीय जनता पार्टी ने ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस पर एक गहरा वार किया जब लोकसभा में उन्होंने 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की।

तब से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा शांत होने का नाम नहीं ले रही हैं कयास लगाए जा रहे हैं कि केन्द्र राष्ट्रपति शासन लगवा सकता है।

राज्यपाल और पूर्व भाजपा नेता केसरी नाथ त्रिपाठी के अलावा किसी ने नहीं कहा कि अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ती है तो केंद्र को संविधान के अनुच्छेद 356 को लागू करने की आवश्यकता हो सकती है।

हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल की टिप्पणी पर खेद जताया और कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना ही असल में संवैधानिक खतरा है।

क्या बनर्जी राज्य की राजनीति पर अपनी पकड़ खो रही है? या फिर जैसा कि ममता कहती हैं कि समाचार चैनल केंद्र समर्थक हैं और बीजेपी शासित राज्यों में ऐसे मामलों की अनदेखी करते हुए बंगाल की हिंसा की छिटपुट घटनाओं को हवा दे रहे हैं?

संदेशखली टकराव

उत्तर और 24 परगना में टीएमसी और बीजेपी के बीच लड़ाई से राज्य और केंद्र के बीच नए सिरे से टकराव शुरू हो गया। बशीरहाट निर्वाचन क्षेत्र में ये टकराव सबसे ज्यादा देखने को मिला जहां सत्तारूढ़ दल के नुसरत जहान ने बीजेपी के सैय्यतन बसु को बड़े अंतर से हराया। बशीरहाट के संदेशखली और कांकिनारा इलाकों में पिछले हफ्ते हुई झड़पों में दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं की जान गई।

भाजपा ने दावा किया कि उसके पांच कार्यकर्ता मारे गए जबकि कई अन्य लापता हैं। टीएमसी ने कहा है कि उसके आठ कार्यकर्ता मारे गए और कई गंभीर रूप से घायल हुए।

उसके बाद, तनाव केवल बढ़ा है। भाजपा ने बंद का ऐलान कर सड़कों पर प्रदर्शन किया और राज्य भर में विरोध प्रदर्शन किया। इसने मारे गए कार्यकर्ताओं के लिए अंतिम संस्कार जुलूस निकालने का प्रयास किया, जिसे पुलिस को रोकना पड़ा। पार्टी के अधिकांश शीर्ष नेता स्थिति का जायजा लेने के लिए बशीरहाट में इकट्ठा हुए और विभिन्न सार्वजनिक प्लेटफार्मों पर कानून व्यवस्था की चिंता को जाहिर किया।

मुकुल रॉय और बाबुल सुप्रियो जैसे नेताओं ने दावा किया कि भाजपा कार्यकर्ताओं पर इस तरह के ज़बरदस्त हमलों के लिए मुख्यमंत्री सीधे तौर पर जिम्मेदार थी। उन्होंने दावा किया कि टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा कथित तौर पर संदेशखली में भगवा पार्टी के झंडे को हटाने का प्रयास किया गया जिसके बाद झड़पें शुरू हुई।

टीएमसी ने अपने बचाव में कहा कि भाजपा कार्यकर्ता ही थे जिन्होंने पार्टी के झंडे को उखाड़ने और स्थानीय टीएमसी नेताओं की बैठक को बाधित करने की कोशिश की। उस समय तनाव पहले से ही बढ़ रहा था जब एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की कथित तौर पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा पिटाई की गई थी। राज्य सरकार ने दंगा पुलिस को इलाके में भेजा ताकि इस अव्यवस्था को कंट्रोल किया जा सके।

केंद्र-राज्य युद्ध

इस समय तक केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले पर “गहरी चिंता” व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को एक सलाह दी थी और राज्य में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए कहा। पश्चिम बंगाल सरकार ने जवाब दिया कि स्थिति “नियंत्रण में” थी और राज्य में कानून प्रवर्तन एजेंसियां अलर्ट पर थीं और अपना काम कर रही हैं।

इस बीच, राज्यपाल त्रिपाठी ने गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें “पश्चिम बंगाल में तनावपूर्ण स्थिति” के बारे में जानकारी दी।

जब एक इंटरव्यू में राज्यपाल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन से इनकार नहीं किया, तो दोनों पक्षों के बीच शब्दों की जंग और बढ़ गई।

ममता बनर्जी ने जल्द ही बीजेपी पर आरोप लगाया कि ये राज्य सरकार को गिराने के लिए उनका गेम प्लान है जो झूठी जानकारी फैला रहे हैं। ममता का मानना है कि केंद्र उसकी आवाज दबाने के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है क्योंकि वे देश की एकमात्र ऐसी शख्स हैं जो उनके खिलाफ आवाज उठाती हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र राज्य में अशांति पैदा करके बंगाल को दूसरे गुजरात में बदलना चाहती है।

बंगाल के भाजपा नेताओं जिनमें राज्य के राष्ट्रीय महासचिव प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल हैं उन्होंने कहा कि वे नहीं चाहते थे कि केंद्र राष्ट्रपति शासन लगाए लेकिन विजय जुलूस आयोजित करने के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करना चाहते हैं। विजयवर्गीय ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था और उनकी पार्टी उस आदेश का विरोध करेगी।

यह स्पष्ट है कि राज्य में महत्वपूर्ण सीटें पाने वाली बीजेपी अपनी ताकत को और मजबूत करना चाहती है जबकि टीएमसी भगवा पार्टी को मात देने के बजाय कहीं ना कहीं नुकसान झेल रही हैं।

टीएमसी सहानुभूति रखने वाली गार्गी चटर्जी ने एक समाचार चैनल को बताया कि बंगाल में हिंसा को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जा रहा है। चुनाव आयोग ने राज्य में 60,000 से अधिक बूथों में सिर्फ आठ बूथों में फिर से मतदान की मांग की। अगर मामले इतने बदतर होते जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है तो चुनाव आयोग इस पर ध्यान दिया होगा। उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य में गुंडों को खरीदने और जमीन पर टीएमसी कार्यकर्ताओं का मुकाबला करने के लिए अपनी धन शक्ति का उपयोग कर रही थी।

हालाँकि, भाजपा का कॉन्फिडेंस फिलहाल एक अलग ही लेवल पर है। ध्यान देने वाली बात है कि 11 जून को पश्चिम बंगाल के सभी सरकारी संस्थानों में जूनियर डॉक्टरों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए क्योंकि उनमें से एक डॉक्टर को इलाज के दौरान मर गए मरीज के रिश्तेदारों द्वारा पीटा गया था।

राजनीतिक रूप से स्थिति से लाभ लेते हुए भाजपा ने हड़ताल कर रहे डॉक्टरों के साथ शोक व्यक्त करने के लिए अपने नेताओं का एक दल भेजा। जैसा कि होना था सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी तबके ने बंगाल सरकार के खिलाफ एक आक्रामक अभियान चलाया और कहा कि सरकार मुसलमानों को बचाने की कोशिश कर रही है।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जो डॉक्टर अब गंभीर स्थिति में है वह हिंदू है और कथित हमलावर मुसलमान थे।

हालांकि राज्य सरकार ने अस्पताल में सुरक्षा तैनात करके और पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष और तृणमूल विधायक निर्मल माजी को डॉक्टरों को काम फिर से शुरू करने के लिए राजी करने के लिए भेजा ताकि माहौल शांत किया जा सके लेकिन फिर भी बीजेपी के कार्यकर्ता वहां पहुंच गए। माजी ने यह भी कहा कि डॉक्टरों की मांगों को जल्द से जल्द हल किया जाएगा।

बंगाल भाजपा इकाई वर्तमान में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ है क्योंकि इस कदम से पार्टी के लिए बढ़ती सहानुभूति टूट सकती है। राज्य में अनुच्छेद 356 को लागू करने से पहले केंद्र भी इस पर विचार करेगी।

हालाँकि अगले विधानसभा चुनाव को अभी दो साल बाकी हैं। 2021 में चुनाव होने हैं और ऐसे में TMC और भाजपा के बीच की झड़पें आने वाले दिनों में और अधिक होने की उम्मीद है।

टीएमसी इस राजनीतिक युद्ध को एक ध्रुवीकृत बंगाली बनाम गैर-बंगाली बहस में तब्दील कर रही है। जिसमें भगवा पार्टी गैर बंगाली लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही है। बनर्जी ने 11 जून को बंगाली पुनर्जागरण के प्रतीक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की अपवित्र मूर्ति को फिर से स्थापित किया।

इसके विपरीत, भाजपा कई मुद्दों पर अपने अभियान का निर्माण कर रही है। यह पारंपरिक रूप से ‘उच्च’ जाति हिन्दू का उपयोग करने की कोशिश कर रही है ताकि गरीबों के एक बड़े हिस्से का समर्थन हासिल किया जा सके। जिन मुद्दों को वे उठा रहे हैं उनमें टीएमसी सरकार के खिलाफ आरोपों का एक बड़ा कॉकटेल शामिल है जिसमें अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं।

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