क्या होता है फ्लोर टेस्ट, जिससे गुजरना पड़ेगा महाराष्ट्र की सरकार को

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क्या होता है फ्लोर टेस्ट

महाराष्ट्र की राजनीति में उठा पटक जारी है। जहां बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, वहीं एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का दावा है कि बहुमत उनके पास है। ऐसे में पेचीदा हुए इस मामले को सुलझाने के लिए एक मात्र विकल्प फ्लोर टेस्ट ही बचा है। सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री अजित पवार का पक्ष भी सुना। कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र और राज्य सरकार से भी जवाब मांगा है। महाराष्ट्र में पहले किसी पार्टी की सरकार नहीं बन पाई तो राष्ट्रपति शासन लगा, लेकिन 23 नवंबर को बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के लिए यह पहला मौका नहीं है, जब वह इस तरह के मामलों का सामना कर रही हो। इससे पूर्व भी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कनार्टक, गोवा और झारखंड में सरकार बनाने के मामले भी सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी जा चुकी हैं।

क्या है फ्लोर टेस्ट

महाराष्ट्र में नवनिर्वाचित सरकार का फ्लोर टेस्ट या शक्ति परीक्षण है जो राज्यपाल राज्य में सरकार बनाने वाली पार्टी को बहुमत साबित करने को कहता है। राज्यपाल ऐसा तब कहता है जब उसे पता हो कि सरकार बनाने वाली पार्टी के पास पर्याप्त बहुमत नहीं हो।

इस प्रक्रिया में विधायक स्पीकर या प्रोटेम स्पीकर के सामने अपनी पार्टी के लिए मतदान करते हैं। अगर एक से ज्‍यादा दल सरकार बनाने का दावा करते हैं, लेकिन बहुमत स्पष्ट न हो तो ऐसी स्थिति में राज्‍यपाल किसी एक को बहुमत स‍ाबित करने को कहता है। प्रोटेम स्पीकर ही इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी रखता है। साथ ही वह फ्लोर टेस्ट से संबंधित सभी फैसले भी लेता है।

इन राज्यों में हुआ हो चुका है फ्लोर टेस्ट

जब यूपी में जगदंबिका बनी सीएम

वर्ष 1998 में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करके कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल को यूपी मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी। तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने आदेश दिया कि बहुमत परीक्षण करवाया जाए। बहुमत परीक्षण के माध्यम से कल्याण सिंह को 225 वोट मिले जबकि जगदंबिका पाल को 196 वोट ही मिल सके।

जब सोरेन ने बहुमत नहीं होने के बावजूद ली शपथ

वर्ष 2005 में झारखंड में सरकार गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था। यहां पर एनडीए के अर्जुन मुंडा के बहुमत के दावे के बावजूद जेएमएम के प्रमुख शिबू सोरेन को राज्यपाल ने शपथ दिला दी। बाद में सु्प्रीम कोट ने हस्तक्षेप कर फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया।

हरीश रावत के खिलाफ याचिका खारिज

उत्तराखंड में हरीश रावत ने जब वर्ष 2016 में सरकार बनाई तो उन्हें बहुमत साबित करने के लिए कहा गया। सुप्रीम कोर्ट से फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। हरीश रावत ने फिजिकल डिविजन के जरिए सदन में अपना बहुमत साबित किया।

गोवा में मार्च 2017 में खारिज हुई फ्लोर टेस्ट की मांग

वर्ष 2017 में गोवा विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी और बहुमत का दावा करने के बावजूद मनोहर पर्रिक्कर ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुख्यमंत्री बने पर्रिक्कर ने 21 विधायकों के समर्थन का दावा किया था। उनके खिलाफ फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की गई। इस पर पर्रिक्कर से बहुमत साबित होने तक कोई भी नीतिगत फैसला न लेने का आदेश दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट की मांग यह कहते हुए खारिज कर दी कि जब कोई पार्टी बहुमत साबित करने की स्थिति में नहीं होती है, तभी इसका सहारा लिया जाता है।

येदियुरप्पा को कर्नाटक मुख्यमंत्री पद से देना पड़ा इस्तीफा

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जुलाई, 2017 में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में एक बार फिर उभरी। इस पर राज्यपाल ने बीजेपी के येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने चुनाव के बाद गठबंधन कर लिया। कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन ने मामले को सुप्रीम कोर्ट में लेकर गई। कोर्ट ने 3 दिन में फ्लोर टेस्ट कराने को कहा। सदन में बहुमत न मिलता देख येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा।

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