प्रेस तो खूब थी बस “कॉन्फ्रेंस” गायब था!

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कहा जाता रहा है कि नरेन्द्र मोदी जो भी करते हैं एक अलग तरीके से करते हैं। उनकी ऐसी ही एक और अलग चीज के बारे में काफी चर्चा हो रही है और वो है पांच सालों में उनकी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस। उम्मीद थी कि सीधे सवाल जवाब होंगे। सवाल हुए भी लेकिन नरेन्द्र मोदी सवालों से बचते दिखाई दिए। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ही सवाल लेते दिखे।

पत्रकारों के सवाल लेने से पहले नरेन्द्र मोदी लगभग पंद्रह मिनट तक बोलते रहे। उसमें उन्होंने अपने चुनाव अभियान के बारे में बात की। विरोधियों को निशाना बनाया और कहा कि हम इस बार भी बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रहे हैं।

अपनी तरफ से सारी बातें बोलने के बाद जब बात सवालों की आई तो उन्होंने अध्यक्ष अमित शाह की ओर हाथ कर दिया। पत्रकारों के बार बार मोदी से सवाल करने के बाद भी अमित शाह का कहना था कि हर सवाल का जवाब प्रधानमंत्री दें ये जरूरी नहीं।

नरेन्द्र मोदी पर हमेशा ये आरोप लगते आए हैं कि वे सवालों से बचते हैं। इंटरव्यू देते हैं लेकिन उनमें पत्रकारों द्वारा सवाल कम बातचीत ज्यादा की जाती है। ऐसे में प्रधानमंत्री को विरोध का सामना करना पड़ता है कि वे प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से डरते हैं। अब जब पांच सालों की पहली प्रेस वार्ता भाजपा ने जारी कि तो नरेन्द्र मोदी के पास मौका था कि वे इसको काउंटर कर सकें लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सवाल के नाम पर उन्होंने अमित शाह की तरफ इशारा कर दिया।

भाजपा का मुख्यालय अपने आप में डिजिटल क्रांति का जीता जागता सबूत है। लेकिन फिर भी पत्रकारों के लिए माइक की व्यवस्था नहीं की गई। भाजपा मुख्यालय से पहले की प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये दिक्कत नहीं देखी गई। जो भी वीडियो आप टीवी और इंटरनेट पर देखेंगे आपको पत्रकारों की आवाज सुनाई नहीं देगी। इक्के दुक्के को छोड़ दें तो पत्रकार क्या सवाल पूछ रहे हैं वो आपको सुनाई नहीं देंगे।

ऐसे में ये सवाल तो सवाल ही रह जाता है क्या सच में ये नरेन्द्र मोदी की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी? कहने को कहा जा सकता है कि ये प्रधानंमत्री की नहीं बल्कि भाजपा की प्रेस वार्ता थी। लेकिन फिर ऐसे में मैसेज यही जाता है कि नरेन्द्र मोदी सवालों से बचते ही हैं।

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