उस्ताद विलायत ख़ां ने ऑल इंडिया रेडियो को चलाने के तरीके की लंबे समय तक की थी आलोचना

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Vilayat-Khan-Biography

भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अपनी एक बेमिसाल छाप छोड़ने वाले उस्ताद विलायत ख़ां अपने दौर के महान सितार वादक थे। उस्ताद विलायत खान की आज 95वीं बर्थ एनिवर्सरी है। खान का नाम बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रभावशाली संगीतकारों में गिना जाता है। उस्ताद विलायत ख़ॉं का जन्म 28 अगस्त, 1928 को अविभाजित भारत में बंगाल प्रांत के गौरीपुर गाँव (अब बांग्लादेश) में एक संगीत से जुड़े परिवार में हुआ था। इस खास अवसर पर जानिए ख्यातनाम सितार वादक विलायत खान के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

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संगीतकारों के परिवार में हुआ था पालन-पोषण

उस्ताद विलायत ख़ां का पालन-पोषण संगीतकारों के परिवार में हुआ था। उनके पिता उस्ताद इनायत हुसैन खान साहब अपने दौर के एक प्रसिद्ध सितारवादक थे। वहीं उनके दादा उस्ताद इमदाद हुसैन खान साहब प्रसिद्ध रुद्र वीणा वादक थे। बहुत कम उम्र में उस्ताद विलायत ख़ां पर पारिवारिक जिम्मेदारियां आ गईं, जब महज 13 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। इसके बाद परिवार की देखभाल का जिम्मा उनके कंधों पर आ गया।

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मामा ज़िंदा हुसैन खान से सीखी सितार की कला

1930 के दशक में उस्ताद विलायत ख़ां ने अपने मामा ज़िंदा हुसैन खान से सितार की कला सीखी थी। इस अवधि के दौरान ही उन्होंने ‘गायकी अंग’ विकसित किया, जो उनका ट्रेडमार्क बन गया। विलायत खान का पेशेवर करियर काफी अच्छा रहा। उन्होंने अपने जीवन में कई अंतरराष्ट्रीय दौरे किए। उस्ताद विलायत के पास कई रिकॉर्डिंग थीं। उन्होंने अपने करियर में कई फिल्मों के लिए संगीत दिया, जिसमें सत्यजीत रे की फिल्म ‘जलसागर’ भी शामिल है।

हालांकि, उस्ताद विलायत ख़ां का जीवन काफी विवादित रहा। इसमें से अधिकांश उनके सिद्धांतों के प्रति दृढ़ विश्वास का परिणाम था। वह भारत के कई सम्मानों को प्रदान करने के पीछे राजनीतिक तंत्र की लंबे समय से आलोचना कर रहे थे। उन्होंने ‘पद्मभूषण’ (भारत के शीर्ष नागरिक सम्मानों में से एक) लेने से इनकार कर दिया था। उस्ताद विलायत ने ऑल इंडिया रेडियो को चलाने के तरीके की लंबे समय तक आलोचना की। उनके पास एकमात्र उपाधि ‘आफताब-ए-सितार’ (सितार का सूर्य) थीं।

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फेफड़ों के कैंसर से हुआ था विलायत ख़ां का निधन

आज के कई प्रमुख संगीतकारों को उस्ताद विलायत ख़ां ने सितार सिखाया और उन्हें खूब प्रभावित भी किया। इनमें विलायत खान के दो बेटे उस्ताद शुजात और हिदायत खान और साथ ही पंडित अरविंद पारिख भी शामिल हैं। यहां तक कि विलायत खान के छोटे भाई उस्ताद इमरत खान (सितार और सुरबहार) को वह बचपन में पढ़ाया करते थे। विलायत के भतीजे रईस भी प्रसिद्ध सितारवादक हैं। 13 मार्च, 2004 को उस्ताद ​विलायत ख़ां की 75 साल की उम्र में मुंबई के जसलोक अस्पताल में फेफड़ों के कैंसर से मौत हुईं। इस तरह उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

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