बीसवीं शताब्दी के ‘तानसेन’माने जाते थे उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, पंडित नेहरू से रहे अच्छे संबंध

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शास्त्रीय म्यूजिक इतिहास की हम सभी को एक अनोखी देन है। कई संगीतकार हुए जो इसको पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने चले गए और आज भी लोगों के दिलों में ये जिंदा है। जिसकी हम बात कर रहे हैं वो शख्सियत भी शास्त्रीय संगीत से ही जुड़े हैं। पटियाला घराने के उस्ताद बड़े गुलाम अली खां की प्रतिभा को कम शब्दों में बयां करना मुश्किल जाहिर होता है। उनकी तिलीस्म आवाज की कायल तो दुनिया आज भी है। वाराणसी की गलियां आज भी उनकी ठुमरी से गूंज उठती हैं। उस्ताद गुलाम अली खान की 25 अप्रैल को 55वीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

पिता और चाचा भी थे संगीत की बड़ी शख्सियत

उस्ताद बड़े गुलाम अली खान का जन्म 2 अप्रैल, 1902 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत स्थित कसूर नामक शहर में हुआ था। वे पटियाला घराने के एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे। अक्सर 20वीं शताब्दी के ‘तानसेन’ के रूप में उन्हें जाना जाता है। उस्ताद बड़े गुलाम अली खान भारत के महान शास्त्रीय गायकों में से एक थे। उनके पिता अली बख्श खां भी काफी फेमस हुआ करते थे और सारंगी वादक और गायक हुआ करते थे। ट्रेनिंग मिली उन्हें अपने चाचा काले खां से जो खुद भी गायक और संगीतज्ञ थे।

बात सन् 1947 की है जब उस्ताद बड़े गुलाम अली खां बंटवारे की आग में लाहौर चले गए, लेकिन उसके बाद वह भारत वापस आ गए और यहीं बस रहे। वर्ष 1957 में उनको भारत की नागरिकता दे दी गईं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ही थे, जिन्होंने उन्हें भारत की नागरिकता देने की बात कही थी। कहा जाता है कि नेहरू और गुलाम अली के बीच काफी अच्छे संबंध थे। उस्ताद गुलाम अली बड़ी महफिलों के किंग माने जाते हैं और अपने बारे में वो कहा करते थे कि एक घंटे तो उन्हें गला गर्म करने में लगता है।

‘संगीत अकादमी’ और ‘पद्म भूषण’ से हुए सम्मानित

अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली गायकों में से एक गुलाम अली ने सबसे अच्छे और सबसे बुरे अनुभवों से भरा जीवन जीया, लेकिन उस समय के दौरान उन्होंने कभी भी संगीत को कम नहीं होने दिया। उनकी आवाज़ में ऐसा टैलेंट था कि हर किसी को मोह लेता था। शब्दों के खेल ने उनके गायन को काफी सजाया। हालाँकि, उनका संगीत कॅरियर कुछ सालों तक चला लेकिन वह अपने लिए एक विशेष जगह बनाने में सफल रहे, जिसने उन्हें इंडस्ट्री के बाकी खिलाड़ियों से अलग खड़ा कर दिया। वर्ष 1962 में उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ और ‘पद्म भूषण’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।

​अपने बेटे को साथ लेकर सैंकडों कार्यक्रमों में प्रस्तुति दी

उस्ताद बड़े गुलाम अली खान का विवाह अली जिवाई से हुआ था, जिनकी मृत्यु वर्ष 1932 में हुई थी। इन दोनों का एक बेटा वर्ष 1930 में पैदा हुआ, जिसका नाम मुनव्वर अली खान था जो खुद भी एक अच्छे शास्त्रीय गायक थे। मुनव्वर अपने पिता गुलाम अली के साथ वर्ष 1968 में उनकी मृत्यु तक सभी संगीत कार्यक्रमों में शामिल हुए। पिता को खोने के बाद उन्होंने सोलो परफॉर्मेंस देना जारी रखा, जो वर्ष 1989 में उनकी मृत्यु पर समाप्त हो गया।

गुलाम अली के पोते रज़ा अली खान भी एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक हैं, जिन्होंने अपने संगीत वंश के जादू और परंपरा को जीवित रखा है। उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने 25 अप्रैल, 1968 को हैदराबाद के बशीरबाग पैलेस में एक लंबी बीमारी से पीड़ित होने के बाद अंतिम सांस ली।

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