अकबर इलाहाबादी : उर्दू का ऐसा फनकार जिसकी शायरी ने कितने ही दिलों की गहराईयां नाप दी

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एक ऐसा शायर जिसके अल्फाजों में इश्क़ की रूमानी खुशबू थी तो राजनीति पर सीधे तंज कसने में वो किसी से पीछे नहीं थे। समाज में फैली रूढ़िवादिता और धार्मिक ढोंग के प्रति विद्रोहपन उनके स्वभाव का हिस्सा था। अगर किसी शायरी को पढ़ने के बाद आपकी धड़कनों को कुछ पल के लिए सुकून मिले तो समझ लीजिए वो उर्दू के महान फनकार और शायर ‘अकबर इलाहाबादी’ की लिखी हुई है। जी हां, आज इस अजीम शायर का जन्मदिन है।

पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था मन-

अकबर इलाहाबादी का असली नाम सैयद अकबर हुसैन था जिनका जन्म 1846 में इलाहाबाद के बारां गांव में हुआ था। शुरुआती दिनों से ही इनका पढ़ने-लिखने में बहुत कम मन लगता था। शादी को लेकर इनका नजरिया ऐसा था कि जब 15 साल के हुए तो 2-3 साल बड़ी लड़की से पहली शादी की। कुछ ही समय बाद दूसरी शादी भी बड़े आराम से कर ली।

आगे चलकर अकबर को अपनी दोनों बीवियों से 2-2 संतानें हुई। पढ़ाई-लिखाई से कोई वास्ता ना रखते हुए भी किसी तरह उन्होंने वकालत तक पढ़ाई कर ली और इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त हुए।

वकालत के बावजूद रूह में हमेशा बसती थी शायरी-

अकबर वकालत तो कर रहे थे लेकिन शायरी से उनका नाता अलग ही था। दिल से वो अपनी शायरी के जरिए हालातों को बयां करने के लिए हमेशा बेकरार रहते थे। घरेलू हालात, परिवार से करीबी, तन्हाई, अकेलेपन का गम ये सब उनकी शायरियों में दिखाई देता था। इसके अलावा मिलनसार शख्सियत होने के साथ वो अपनी रचनाओं में काफी हास्यास्पद और व्यंग्य भी खूब करते थे।

जवानी बेपरवाही में तो आगे की उम्र गुजरी तन्हाई में-

अकबर की शायरियों में जो हंसी के बोल थे उतनी ही उनकी निजी जिंदगी तन्हाई में गुजरी। अकबर के बेटे और पोते की बहुत कम उम्र में मौत होने के बाद उनकी शायरियों में अकेलेपन की महक आने लगी तभी उन्होंने लिखा-

‘आई होगी किसी को हिज्र में मौत, मुझ को तो नींद भी नहीं आती।’

अकबर ने अपनी शायरियों में जिंदगी के हर बेपरवाह किस्से को छूने की कोशिश की।

वहीं एक और काफी पसंद की गई रचना है जिसमें वो अपने हालातों को बयां करते हैं-

‘आंखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते, अरमान मेरे दिल के निकलने नहीं देते..

खातिर से तिरी याद को टलने नहीं देते..सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते।’

गम और अकेलेपन के अलावा अकबर की शायरियों में हंसी का भी खूब रस मिला। गमों की दुनिया में जाने से पहले उनकी रचना जिसमें पता चलता है कि हास्य का नाता उनकी शायरियों से कभी नहीं टूटा।

“शेख जी घर से न निकले और लिख कर दे दिया..आप बीए पास हैं तो बंदा बीवी पास है”

एक और-

“इन को क्या काम है मुरव्वत से अपनी रुख़ से ये मुँह न मोड़ेंगे

जान शायद फ़रिश्ते छोड़ भी दें डॉक्टर फ़ीस को न छोड़ेंगे”

वहीं अकबर का शायरियों के अलावा गांधी के नेतृत्व में छिड़े स्वाधीनता आंदोलन में भी अहम रोल रहा। ब्रिटिश सरकार में उन्हें खान बहादुर की उपाधि भी मिली।

(विशेष नोट :- हम यहां इलाहाबाद का बदला हुआ नाम “प्रयागराज” इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं क्योंकि अकबर इलाहाबादी की रूह आज भी अपने उसी इलाहाबाद में बसती है।)

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