वाह रे! इंसान, इतना गुस्सा कि पीट पीटकर बार डाला बेजुबां बाघिन को, कब साचेंगे हम…

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जानवर की यह प्रवृति होती है कि वह खुद को बचाने के लिए हमला करता है और बात यदि बाघ की हो तो उसकी फितरत में वार करना शामिल है। लेकिन इसमें एक बात गौर करने वाली यह है कि जानवर को मुख्य रूप से दो ही बातें समझ आती है एक तो अपने लिए भोजन की तलाश करना और दूसरा यदि कोई सामने आ जाए तो बचाव के रूप में हमला करना। वहीं दूसरी ओर इंसानी प्रवृत्ति की बात की जाए तो उसे भगवान ने सोचने समझने की शक्ति दी है। वह अच्छे और बुरे में फर्क करना जानता है लेकिन इसके बावजूद भी इंसान हैवानियत करेे तो फिर इसे क्या कहा जाए? दरअसल जानवरों को लेकर अधिकांश लोगों में दिल नहीं होता। वे इन्हें ऐसा जीव मानते हैं जिसे कभी भी मारा जा सकता है क्योंकि यह पलटकर शिकायत नहीं कर सकता और ना ही मारने वाले को कोर्ट तक घसीट सकता है।

लेकिन अपनी ताकत एक बेजुबां पर दिखाना कहां तक सही है। हम यह बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि एक बार फिर इंसान ने जानवर पर हमला किया और इस हद तक मारा कि वह जान गवां चुका है। हम बात कर रहे हैं एक बाघिन की जिसे पीलीभीत गांव के लोगों ने झुंड में घेरकर डंडों से पीट पीटकर मार डाला।

पहले आपको पूरा मामला बताते हैं, पूरनपुर तहसील के घुंघचाई क्षेत्र में टाइगर रिजर्व के दियोरिया रेंज जंगल से सटी मटेहना कॉलोनी निवासी किसान श्याम मोहन बुधवार को अपने खेत पर छुट्टा पशुओं से फसल की सुरक्षा के लिए बाड़ लगा रहा था। इसी दौरान झाड़ियों में पहले से छिपी बैठी बाघिन ने उस पर हमला कर दिया। वही चीखा तो दूसरे किसान उसे बचाने दौड़े।

खेत में बाघ के आने की सूचना फैल गई। ग्रामीण लाठी, डंडों और धारदार हथियारों के साथ वहां पहुंच गए। आस पास इतने लोगों को देख बाघिन हमलावर हो गई क्योंकि वह अपनी जान बचाना चाहती थी। इस कारण करीब नौ लोग घायल हो गए। ऐसे में ग्रामीणों का बाघिन के प्रति गुस्सा और भी बढ़ गया और भीड़ ने बाघिन पर लाठियां बरसाना शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने इस कदर बाघिन पर गुस्सा उतारा कि बाघिन इंसानी वार के आगे हार गई और उसकी मौत हो गई।

बाघिन की कितनी गलती रही यह शायद चर्चा का विषय नहीं है। मुद्दे की बात यह है कि इंसान इतना हैवान क्यों हो गया? जानवर का दर्द समझना उसने क्यों छोड़ दिया? क्यों वह अपने गुस्से के आगे बेजुबां की अनकही बातों को नहीं समझ पाया? बाघिन ने हमला किया पलटकर आपने भी अपनी जान बचाई यहां तक तो ठीक था लेकिन उसका कत्ल कर देना कहां तक सही है?

एक चौंकाने वाली बात यह है कि खबरें आ रही है कि सात-आठ साल की बाघिन प्रेगनेंट थी। यह बात जानकर तो उसकी मौत और भी दुख दे रही है। एक मां को इतनी बेरहमी से पीटा कि एक नया जीवन पेट में ही मर गया। जब लाठियां मां के शरीर पर पड़ रही होंगी तो वह अजन्मा इस खुखांर इंसानी जानवर से कितना डर गया होगा?

अब इस घटना के दूसरे पक्ष पर भी कुछ सवाल उठते हैं। बताया जा रहा है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व ने घायल बाघिन की खबर सुनकर डॉक्टर्स की टीम भेजने की बात कही थी। लेकिन देर रात तक कोई टीम नहीं पहुंची, नतीजन बाघिन समय पर इलाज ना मिल पाने के कारण अपना जीवन हार गई। डॉक्टर्स आ जाते तो शायद वह बच जाती। अब सवाल यह कि डॉक्टर्स को आने में इतना समय क्यों लग गया? या व्यवस्थाएं ही इतनी लचर हो गई हैं कि जानवर की जान की कीमत कुछ नहीं है?

दूसरा सवाल टाइगर रिजर्व से जुड़े लोग इस पूरे घटनाक्रम के दौरान कहां सो रहे थे? या वे भी ग्रामीणों की इसमें मदद कर रहे थे?

टाइगर रिजर्व डे से चार दिन पहले हुई यह दर्दनाक घटना हर पहलु पर सवाल उठाती है। यह प्रशासन और ग्रामीणों को कितना सोचने पर मजबूर करेगी यह तो नहीं कहा जा सकता। हां, इतना जरूर है कि हमारे यहां हर रोज एक जानवर की आत्म रोती है क्योंकि वह इंसानी जानवर के आगे बेबस है…।

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