घर के अंदर अधिक समय गुजराने वाले बच्चों में बढ़ रही है यह बीमारी, पढ़े डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट

Views : 3057  |  0 minutes read

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने देखने संबंधी समस्याओं पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए चेतावनी जारी की है कि बच्चों द्वारा अधिक समय घर के अंदर गुजराने से मायोपिया जैसी आंखों संबंधी तकलीफें बढ़ रही है। एब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के करीब 2.2 अरब लोग नेत्र रोगों से पीड़ित हैं। यही नहीं इस रिपोर्ट में दुनियाभर के आंखों की बीमारियों और उनसे निपटने के उपायों के बारे में चर्चा की गई है। आंखों के रोग लोगों में तेजी से बढ़ रहे हैं। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बदलती जीवनशैली और आंखों की देखभाल करने के संसाधनों की कमी से आंखों की बीमारी बढ़ने में सहायक हैं।

ज्यादातर मामले प्रेस्बोपिया के

इस रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के 2.2 अरब से अधिक लोगों में दृष्टि दोष हैं। इन लोगों में से करीब एक अरब लोग ऐसे नेत्र रोग से ग्रस्त हैं, जिनका इलाज संभव है। इन एक अरब (करीब 82.6 करोड़) लोगों में ज्यादातर मामले प्रेस्बोपिया के हैं। यह नेत्र रोग उम्र बढ़ने के साथ बढ़ता है। इसमें रोगी व्यक्ति को पास की वस्तुएं धुंधली दिखने लगती हैं।

बाकी करीब 12 करोड़ मामले रिफ्रेक्टिव दोष के हैं। इसमें लेंस किसी वस्तु से टकराकर आने वाली प्रकाश की किरणों को पूरी तरह से मोड़ नहीं पाता, जिससे धुंधलापन दिखाई देता है।

ग्रामीण आबादी में दृष्टि दोष के मामले ज्यादा

डब्ल्यूएचओ की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों, निम्न आय वाले देश और अधिक उम्र के लोग नेत्र रोगों से ज्यादा पीड़ित हैं। साथ ही शहरी आबादी में दृष्टि दोष के मामले कम पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में दिल्ली की शहरी आबादी में (60-69 वर्ष के बीच) 20 प्रतिशत लोगों में दृष्टि दोष पाया गया। वहीं उत्तरी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे मामले एक तिहाई कम हैं। यहां 28 फीसद लोगों में दृष्टि दोष पाया गया।

यह आंकड़े उत्तरी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से एक तिहाई कम हैं। यहां 28 प्रतिशत लोगों में दृष्टि दोष पाया गया।

दुनियाभर के 1.19 करोड़ लोग ग्लूकोमा से पीड़ित हैं

इसके मुताबिक दुनियाभर के 1.19 करोड़ लोग ग्लूकोमा, ट्रेकोमा और डायबिटिक रेटिनोपैथी से पीड़ित हैं। इन नेत्र रोगों का समय पर इलाज कराया जाए तो इन पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इन लोगों को इन बीमारियों से निजात दिलाने के अनुमानित खर्च 5.8 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है। हालांकि, निम्न मध्यम आय वर्ग वाले देशों में मोतियाबिंद को लेकर सुधार दिखा है। मोतियाबिंद का इलाज सर्जरी से किया जा रहा है।

वहीं भारत में भी मोतियाबिंद पर नियंत्रण सर्जरी के माध्यम से वर्ष 1981 से 2012 के बीच नौ गुना बढ़ी है। यहां प्रति दस लाख की आबादी में 6000 सर्जरी हुई हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया कि यह ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस’ के प्रयासों से संभव हुआ, जिसे 1976 में लॉन्च किया गया था और 2016-17 में 65 लाख लोगों की मोतियाबिंद की सर्जरी की गई थी।

COMMENT