सत्तर के दशक में ‘तेरे मेरे सपने’, ‘फागुन’, ‘अभिमान’, ‘मिली’, ‘चुपके चुपके’, ‘शर्मीली’ जैसी हिंदी फिल्मों में सुपरहिट संगीत देने वाले सचिन देव बर्मन यानि एसडी बर्मन की आज 1 अक्टूबर को 116वीं जयंती है। बर्मन दा ने अपने समय में ऐसी सरल और सहज धुनें तैयार की जो संगीत प्रेमियों के दिल में सीधी उतर जाती थी। उनकी गायकी कमाल की थी और आज भी उनके गानों के लाखों दीवाने हैं। भारतीय सिनेमा को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में बर्मन दा का भी काफ़ी योगदान रहा। इस मौके पर जानिए एस. डी. बर्मन साहब के बारे में कुछ दिलचस्प बातें…
राजपरिवार से ताल्लुक रखते थे बर्मन दा
एसडी बर्मन का जन्म साल 1906 में त्रिपुरा रियासत के कॉमिला (अब बांग्लादेश) में हुआ था। बर्मन दा का पूरा नाम सचिन देव बर्मन है। उनके पिता त्रिपुरा के महाराजा ईशानचंद्र देव बर्मन के दूसरे पुत्र थे। इस प्रकार यह महान संगीतकार राजपरिवार से ताल्लुक रखता था।
कलकत्ता रेडियो स्टेशन से शुरु हुआ कॅरियर
एसडी बर्मन ने स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की। उन्होंने संगीत की दुनिया में सितारवादन के साथ कदम रखा था। कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद बर्मन ने सन् 1932 में कलकत्ता रेडियो स्टेशन के लिए बतौर गायक अपने कॅरियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने बांग्ला फिल्मों और फ़िर हिंदी फिल्मों की ओर रुख किया। बर्मन दा ने अपने कॅरियर में 80 से भी ज्यादा फिल्मों में संगीत दिया।
बर्मन दा ने हिंदी फिल्मों में कई सुपरहिट यादगार नगमे दिए हैं। जिसमें फिल्म ‘गाइड’ के दो गाने ‘अल्ला मेघ दे.. पानी दे’, ‘वहां कौन है तेरा मुसाफ़िर जाएगा कहां’, फिल्म ‘प्रेम पुजारी’ का ‘प्रेम के पुजारी हम हैं’ फिल्म ‘सुजाता’ में ‘सुन मेरे बंधु रे.. सुन मेरे मितवा’ जैसे दिलकश गीत शामिल हैं। सचिन देव बर्मन ने फिल्म ‘बंदिनी’, ‘अमर प्रेम’, ‘तलाश’, ‘अभिमान’, ‘मिली’, ‘ज्वैल थीफ’, ‘टैक्सी ड्राइवर’, ‘प्यासा’, ‘सुजाता’ और ‘गाइड’ जैसी फिल्मों में गानों को अपनी आवाज़ देकर उन्हें सदा के लिए अमर बना दिया। उन्होंने देव आनंद, गुरुदत्त, ऋषिकेश मुखर्जी, विमल राय जैसे स्टार्स की कई फिल्मों में बेहतरीन संगीत दिया।
सुरीली आवाज सुन रेलवे टीसी ने लॉकअप से निकाला
बचपन में एक बार एसडी बर्मन अपने दोस्तों के साथ ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करने हुए रेलवे के टीसी के हाथों पकड़े गए। टीसी ने बेटिकट पकड़े गए सभी बच्चों को स्टेशन मास्टर के सामने पेश कर दिया था। स्टेशन मास्टर ने इन बच्चों को सबक सिखाने के लिए सभी को स्टेशन पर बने लॉकअप में बंद करवाने का आदेश दिया। फ़िर क्या था.. एसडी बर्मन और उनके दोस्त लॉकअप में बंद हो चुके थे। 14 साल के बर्मन दा को लॉकअप में नींद नहीं आ रही थी, जबकि उनके दोस्त गहरी नींद ले चुके थे।
दुविधा में फ़ंसे एसडी बर्मन रात के करीब 2 बजे भगवान को याद करते हुए एक भजन गाने लगे, स्टेशन मास्टर का घर लॉकअप के पीछे ही था। वह गहरी नींद में सो चुका था, लेकिन उसकी बहन जाग रही थी। जब बहन के कानों में बर्मन दा के भजन की आवाज़ पहुंची तो वो हैरान रह गई।
एक ओर एसडी बर्मन अपने मुंह से सुरीली धुन छेड़ते हुए भजन में खोए हुए थे और दूसरी तरफ़ स्टेशन मास्टर की बहन ने अपने भाई को सोते से जगाया। उन्होंने अपने भाई से कहा कि देखो ये मधुर आवाज़ कहां से आ रही है। कोई बहुत सुर में कितना सुंदर भजन गा रहा है। आवाज़ सुन दोनों भाई-बहन स्टेशन आए और वहां लॉकअप में बंद सचिन देव बर्मन को भजन गाते हुए देखा। इस सुरीली आवाज ने दोनों को दीवाना बना दिया था। स्टेशन मास्टर ने रात में ही लॉकअप खुलवाया और बर्मन दा के साथ के सभी बच्चों को अपने घर ले गए। उनकी बहन ने रात में बच्चों को खाना बनाकर खिलाया और सुबह सम्मान के साथ विदा किया।
बेटे राहुल देव बर्मन ने बढ़ाई विरासत
एसडी बर्मन साहब सन् 1933 से 1975 तक बंगाली और हिंदी फिल्मों में सक्रिय रूप से बतौर संगीतकार काम करते रहे। साल 1938 में बर्मन दा ने गायिका मीरा से विवाह किया था। इन दोनों की शादी के करीब एक साल बाद बेटे राहुल देव बर्मन यानि आरडी बर्मन उर्फ़ पंचम दा का जन्म हुआ था। एसडी बर्मन को वर्ष 1974 में लकवे का आघात लगा। 31 अक्टूबर, 1975 को महान संगीतकार ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। बर्मन दा के बेटे आरडी बर्मन ने संगीत की दुनिया में बड़ा नाम कमाया और अपने पिता की विरासत को ससम्मान आगे बढ़ाया।
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