इंडियन रेलवे इन लड़कियों को धन्यवाद कहता हुआ नहीं थक रहा, आखिर क्यों ?

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भारत में रेलवे स्टेशन, सड़कें, सड़क के किनारे की दीवारें या फिर कोई भी सार्वजनिक जगह हों, आपको पीक थूकने के निशान वहां जरूर मिलेंगे। इन लाल धब्बों से कोई भी जगह आज के समय में बची नहीं है। हर साल प्रशासन इन्हें साफ करने के लिए करोड़ों खर्च करता है और भी कई प्रयास किए जाते हैं लेकिन फिर भी हालात जस के तस ही हैं।

लेकिन मुंबई के रामनारायण रुइया कॉलेज में पढ़ने वाली आठ लड़कियों ने जो कर दिखाया है उसके लिए हर कोई इन्हें धन्यवाद कह रहा है। जी हां, ऐश्वर्या राजकुमार, अंजलि वैद्य, कोमल पराब, मैथिली सावंत, मिताली पाटिल, निष्ठा पेंज, सानिका अम्बर और श्रुतिका सावंत की टीम ने मुंबई के रेलवे स्टेशनों या किसी भी सार्वजनिक जगहों से पान के दाग साफ करने का एक आसान तरीका खोज लिया है।

हम सभी जानते हैं कि लगभग हर स्टेशन पर निश्चित रूप से रंगीन दीवारें मिल ही जाती है जो कि रेलवे के लिए काफी समय से एक बड़ी समस्या है। टीम लीडर श्रुतिका का कहना है कि “हमने कई पान विक्रेताओं से मुलाकात की और पता लगाया कि किस वजह से गहरा लाल रंग आता है। इसके अलावा कई क्लीनर कंपनियों में भी गए और साफ करने के लिए काम में लेने वाले सभी केमिकल के बारे में जाना।

पान से परेशान नामक अभियान के तहत इस ग्रुप ने कई सूक्ष्म जीवों और एंजाइमों का उपयोग किया है जो प्राकृतिक रूप से पीक के रंग को रंगहीन कर देते हैं। छात्र आगे इन एंजाइमों की मदद से एक जेल बनाने के बारे में सोच रहे हैं जिसमें बहुत कम पानी इस्तेमाल किया जाता है।

वहीं यह जेल मुंबई में क्लीनर स्टाफ के काम को कम करेगा और साथ ही साथ पान की गंदगी को साफ करने के लिए आवश्यक पानी और एसिड के उपयोग में भारी कटौती करेगा।

गौरतलब है कि मुंबई में व्यस्त स्टेशनों पर ये दाग साफ करने के लिए हर महीने 10 लीटर एसिड का उपयोग किया जाता है। रेलवे अधिकारी इन दागों को साफ करने के लिए बजट से 60,000 लीटर पानी और करोड़ों रुपए तक खर्च करते हैं।

 आपको यह भी बता दें कि टीम एमआईटी, बोस्टन द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में 300 प्रविष्टियों के बीच एकमात्र इन लड़कियों के ग्रुप ने बाजी मारी है। उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण प्रोजेक्ट’ के तहत पुरस्कार मिला है।

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