सुप्रीम कोर्ट ने भू-राजस्व के रिकॉर्ड में पुजारियों के नाम जोड़े जाने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि एक पुजारी किसी भी मंदिर की जमीन या सम्पत्ति का मालिक नहीं हो सकता। वह सिर्फ एक सेवक की तरह काम करता है। मंदिर की सम्पत्ति का मालिक उसका देवता ही होता है।
भू-राजस्व रिकॉर्ड से पुजारियों के नाम हटाने का दिया आदेश
न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि पुजारी के पास मंदिर या मंदिर की सम्पत्ति केवल प्रबंधन के लिए ही होती है। पुजारी सिर्फ देवता की जगह पर उस मंदिर में काम करता है। चूंकि, देवता का नाम कानून में विधि सम्मत है, इसलिए भू-राजस्व के रिकॉर्ड में देवता के नाम ही मंदिर की सम्पत्ति रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही भू-राजस्व के रिकॉर्ड से पुजारियों के नाम हटाने के भी आदेश दिए हैं।
उस जमीन की सिर्फ देखभाल करता है पुजारी
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले के दौरान कहा कि पुजारी उस जमीन की सिर्फ देखभाल करता है। वह सिर्फ एक किराएदार जैसा है। जो भी पुजारी होगा व मंदिर के देवताओं की देखभाल के साथ उससे जुड़ी जमीन पर खेती का काम भी करेगा।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश का 1959 सर्कुलर बरकरार रखा
आपको जानकारी के लिए बता दें कि मध्य प्रदेश के वर्ष 1959 के सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसी मामले में सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस पुराने सर्कुलर को बरकरार रखा है। इस सर्कुलर में पुजारियों के नाम भू-राजस्व के रिकॉर्ड से हटाने के आदेश दिए गए थे, जिससे मंदिर की सम्पत्ति को अवैध रूप से बेचे जाने से बचाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले स्पष्ट कर दिया है कि भू-राजस्व में सम्पत्ति देवता के नाम ही रहेगी।
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