राजस्थान : वो पायलट जिसने अपने कंधों पर कांग्रेस की विजयी उड़ान भरी

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वह विमान उड़ाने का शौक रखता है, उसको ड्राइव करना बेहद पसंद है और राजस्थान में पिछड़ी कांग्रेस को 2013 की हार के बाद जीत की चौघट पर आखिरकार ले ही आता है। हालांकि अगर कांग्रेस आलाकमान अधिक अनुभवी और पुराने नेता अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री नियुक्त करने का फैसला लेते हैं तो सचिन पायलट मुख्यमंत्री नहीं बन सकते हैं, लेकिन इस चुनाव ने मीडिया का ध्यान पायलट की ओर एक उग्र राजनेता की छवि के तौर पर जरूर खींचा है।

दिल्ली के नामचीन सेंट स्टीफन कॉलेज से निकले 41 वर्षीय स्टीफनियन जिन्होंने व्हार्टन से एमबीए भी किया। साल 2014 में शपथ ली थी जब लोकसभा चुनाव में पार्टी हार गई थी कि वह साफा तब तक नहीं पहनेंगे जब तक कांग्रेस वापस सत्ता में नहीं लौटती है। और अब ऐसा लगता है कि ‘साफा’ आज उनके सिर सजने का इंतजार कर रहा है।

बीते मंगलवार को 101-72 के मार्जिन के साथ दिखने वाले रुझानों में कांग्रेस की बीजेपी के खिलाफ जीत उतनी जबरदस्त नहीं है जितनी कांग्रेस चाहती थी, लेकिन पायलट को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि भाजपा की वसुंधरा राजे को हराकर राजस्थान में उनकी पार्टी वापस सत्ता में आई है।

2013 में, जब कांग्रेस ने अपनी सबसे बुरी हार का सामना किया, भाजपा ने 163 सीटें जीती थी और कांग्रेस सिर्फ 21 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य का गठबंधन दो बार सांसद और पूर्व नेता राजेश पायलट के बेटे को सौंप दिया।

पायलट, जिन्होंने विभिन्न पदों पर यूपीए सरकार में मंत्री के रूप में काम किया उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और राष्ट्रीय राजनीति से राज्य स्तर की चुनौतियों पर अपना ध्यान केंद्रित कर लिया।

अपने राजनीतिक करियर में एक नई यात्रा शुरू करने के बाद, उन्होंने राजस्थान की धरातल को जमीनी स्तर पर परखा और पार्टी को मजबूत करने और इसकी वापसी सुनिश्चित करने के लिए पांच लाख किलोमीटर से अधिक की यात्राएं की।

पायलट, जिन्होंने 54,000 से अधिक के मार्जिन के साथ अपनी जीत टोंक से हासिल की है उन्होंने अपने शहरी और ग्रामीण दोनों अवतार दिखाए और सफलतापूर्वक कई कसौटी पर खरा उतरने की परिपक्वता दिखाई। जमीनी लेवल पर कनेक्शन के साथ टेक सेवी युवाओं तक पहुंच बनाने में पायलट बखूबी कामयाब हुए।

पायलट 2004 में अपने पिता के निर्वाचन क्षेत्र दौसा से सांसद चुने गए और संसद जाने वाले सबसे कम उम्र के सदस्य बने। वह 2009 में अजमेर से फिर से चुने गए। पायलट ने 2009 में संचार और आईटी राज्य मंत्री का पज संभाला और 2012 में कॉर्पोरेट मामलों के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पद पर भी रहे। पायलट का मानना ​​है कि अजमेर में किशनगढ़ हवाई अड्डा एमपी के रूप में उनकी उपलब्धियों में से एक है।

7 सितंबर, 1977 को पैदा हुए, पायलट ने सेंट स्टीफन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में बैचलर्स ऑनर्स की डिग्री हासिल की जिसके बाद वो बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो और फिर जनरल मोटर्स कॉर्पोरेशन के साथ काम करने जा रहे थे। उन्होंने व्हार्टन बिजनेस स्कूल (पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय) से एमबीए किया जहां उन्होंने मल्टीनेशनल मैनेजमेंट और फाइनेंस में विशेषज्ञता हासिल की।

नेशनल कान्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला की बेटी सारा से शादी की और दो बेटों के पिता हैं। पायलट को 2008 में विश्व आर्थिक मंच द्वारा ग्लोबल यंग लीडर्स में से एक के रूप में चुना गय। 1995 में अमेरिका से अपना निजी पायलट लाइसेंस (पीपीएल) हासिल करने वाले पायलट एक शानदार पायलट होने के साथ-साथ कई राष्ट्रीय शूटिंग चैम्पियनशिप में दिल्ली का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। उन्हें क्षेत्रीय सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में सम्मानित पद दिया गया है।

अब आज अगर कांग्रेस विधायक दल अपनी बैठक में पायलट को अपना नेता चुनता है तो पायलट एक नई जिम्मेदारी के साथ लोगों के बीच आएंगे। यदि नहीं, तो एक और कार्यकाल, किसी अन्य पद पर चुनौती की तरह उनका इंतजार कर ही रहा है।

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