पहली समुद्री पायलट बनकर दी लड़कियों को नई राह, राष्ट्रपति से हो चुकी हैं सम्मानित

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8 मार्च, 2019 को रेशमा निलोफर नाहा उस वक्त चर्चा में आ गईं जब उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार, 2018 से राष्ट्रपति द्वारा 44 महिलाओं के साथ सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की ओर से उन महिलाओं व संस्थानों को प्रदान किया जाता है, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण एवं सामाजिक कल्याण के लिए कार्य किया।

ऐसे में भारत की पहली महिला समुद्री पायलट रेशमा निलोफर नाहा भी एक थी, जिसने समुद्री पायलट के तौर पर पुरुषों के एकाधिकार को समाप्त कर आने वाली महिला पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई और महिला सशक्तिकरण को प्रेरित करने का कार्य भी किया है।

नाहा का मरीन पायलट बनने का सफर
मूलतः रेशमा चेन्नई की रहने वाली हैं। उन्होंने बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची से बीई मरीन टेक्नोलॉजी की डिग्री ली है।

उन्होंने हुगली नदी, जोकि पोतवाहन के लिए विश्व में सर्वाधिक कठिन नदी है, में 7 वर्ष के प्रशिक्षण के पश्चात् वर्ष 2011 में कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट द्वारा भर्ती किया गया है। रेशमा ने सभी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी शक्ति, अनुकूलनशीलता और दृढ़ निश्चय का परिचय दिया है।

रेशमा विश्व में ऐसी कुछ एक महिला समुद्री पायलटों में से एक है जो नदी में जहाज का संचालन करती है। आज के समय में भी महिलाओं द्वारा जहाजों का संचालन करना बहुत कम स्तर पर किया जाता है, लेकिन रेशमा नाहा इससे भी आगे निकल चुकी हैं और समुद्री पायलट के रूप में अर्हता प्राप्त कर चुकी हैं तथा समुद्री जहाज के कैप्टन के सलाहकार के रूप में कार्य करती हैं और पत्तनों से जहाजों के आवागमन का संचालन करती है।

समुद्री पायलट के काम में अपेक्षित ज्ञान, कौशल और अभ्यास के अलावा अत्यधिक सावधानी, धैर्य और एकाग्रता की जरूरत होती है। नाहा को दृढ़ निश्चय और व्यावसायिक उत्कृष्टता के कारण अपने क्षेत्र में सफलता और मान्यता प्राप्त हुई है।

उन्होंने सभी प्रकार की कठिनाइयों और बाधाओं का मुकाबला करते हुए कितने ही अद्भूत, कठिन और श्रमसाध्य कार्य में उपलब्धि हासिल की है। यही नहीं अब वे इस क्षेत्र में आने वाली लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं।

समुद्री सफर से अब तक पुरुषों के एकाधिकार को तोड़ कर अब नाहा ने लड़कियों के लिए भी इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर खोल दिया है। नाहा लड़कियों की आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई है और उन्हें उड़ने तथा अपने सपनों को साकार करने की हिम्मत देती रहेगी।

रेशमा कहती हैं, ‘‘पहली मरीन पायलट होने से खुशी भी होती है और ये काफी चुनौती भरा भी लगता है। मैं यहां कई सालों से प्रशिक्षण ले रही हूं और अपने काम से वाकिफ भी हूं लेकिन जब पूरा जहाज आपके भरोसे आगे बढ़ता है तो जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है।’’

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