कई भाषाओं के जानकार थे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आज़ादी में भी दिया था योगदान

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देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का ज़िंदगी अपने आप में सादगी, साफ़गोई की एक बेमिसाल झलक थी। आज 28 फ़रवरी को डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 60वीं पुण्यतिथि है। देश के सामने कई मिसालें रखने वाले राजेंद्र प्रसाद का ​जीवन सियासत, कार्यपालिका, स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हमारे लिए आज भी मायने रखता है। राष्ट्रपति के रूप में उनके काम करने की शैली को देश में आज भी एक अच्छा उदाहरण माना जाता है। इस खास अवसर पर जानिए महान शख़्सियत डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन के बारे में कुछ प्रेरणादायी बातें…

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18 साल की उम्र में कॉलेज एंट्रेस में किया टॉप

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिले के ज़िरादेई गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा छपरा (‍बिहार) के ज़िला सरकारी स्कूल से पूरी की। शुरू से ही होनहार रहे डॉ. राजेंद्र को महज 18 साल की उम्र में पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया था। उन्होंने यूनिवर्सिटी एंट्रेस परीक्षा में टॉप कर एडमिशन लिया। कॉलेज पूरा करने के बाद राजेन्द्र प्रसाद कोलकाता के फेमस प्रेसीडेंसी कॉलेज पहुंचे और वहां से डॉक्टरेट पूरी की।

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मात्र 13 साल की उम्र में हो गई थी शादी

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को हिंदी, अंग्रेजी के अलावा उर्दू, बंगाली और फारसी भाषाओं में भी महारथ हासिल थी। उन्होंने अपना कॅरियर वकील के रूप में शुरू किया और फिर आगे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाईं। राजेन्द्र प्रसाद की शादी मात्र 13 साल की उम्र में हो गई थी। उनकी पत्नी का नाम राजवंशीदेवी था।

देश के पहले राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल

डॉ. राजेंद्र प्रसाद को हमारे देश का पहला राष्ट्रपति बनने का भी गौरव हासिल है। वहीं, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने का भी मौका मिला। दोनों ही पदों पर उनके कार्यकाल काफ़ी सराहनीय रहे थे। राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक संभालीं। इसके अलावा उन्होंने कुछ समय के लिए केंद्रीय मंत्री के रूप में भी काम किया था।

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डॉ. राजेंद्र का काम करने का अंदाज था सबसे अलग

देश के पहले राष्ट्रपति के अलावा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपने काम करने के अंदाज़ के लिए भी जाना जाता है। उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान ‘बिहार का लाल’ और ‘देशरत्न’ जैसे नामों से संबोधित किया गया। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं होने दिया, वहीं किसी भी सरकार को अपने काम में दखल नहीं देने की इजाज़त नहीं दी।

ऐसा कहा जाता है कि उनके काम करने के अंदाज में एक अलग तरह की निष्पक्षता थी। डॉ. राजेंद्र के कार्यकाल के दौरान एक किस्सा बहुत चर्चा में रहा। जब वो अपनी बहन भगवती देवी के निधन के बाद उनके दाह संस्कार में जाने के बजाय उसी दिन होने वाले भारतीय गणराज्य के स्थापना समारोह में पहुंच गए थे। देश के राष्ट्रपति पद पर राजेंद्र प्रसाद ने 12 साल तक सेवाएं दीं। वे 28 फ़रवरी, 1963 को इस दुनिया से हमेशा के लिए अलविदा कह गए।

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