प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वकील व राजनेता सर तेज बहादुर सप्रू की आज 148वीं जयंती है। सप्रू भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के प्रमुख सदस्य थे। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले की उदारवादी नीतियों को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तेज बहादुर सप्रू ने आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का भी मुकदमा लड़ा। वह आजादी के समय लिबरल पार्टी के नेता थे। सप्रू ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ तो थे, लेकिन वह अंग्रेजी सरकार के प्रति नरम रूख भी रखते थे। वह महात्मा गांधी के नेतृत्व के खिलाफ थे, हालांकि उन्होंने कई मामलों में गांधीजी का समर्थन भी किया। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जिंदगी के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
तेज बहादुर सप्रू का जीवन परिचय
स्वतंत्रता सेनानी तेज बहादुर सप्रू का जन्म 8 दिसंबर, 1875 को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के अलीगढ़ में हुआ था। उन्होंने आगरा कॉलेज से कानून की डिग्री हासिल की थी। सप्रू ने अपने करियर की शुरुआत इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकील के रूप में कीं। यहीं पर पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे जूनियर राष्ट्रवादी नेता ने भी काम किया था।
देश की आजादी में सप्रू का योगदान
तेज बहादुर सप्रू ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ थे, लेकिन वह अंग्रेजी सरकार के प्रति नरम रूख भी रखते थे। वह ब्रिटिश सरकार से लड़ाई के बजाय, उनके साथ बातचीत के माध्यम से अधिकार मांगने के पक्षकार रहे। उन्होंने अंग्रेज सरकार से स्वशासन की मांग तो की, लेकिन दूसरी ओर स्वतंत्रता की मांग का पुरजोर समर्थन नहीं किया। वह वर्ष 1907 में कांग्रेस की नरम विचारधारा का हिस्सा बने।
सप्रू ‘द लीडर’ नामक समाचार पत्र से जुड़े हुए थे। उन्होंने अपना राजनीतिक करियर वर्ष 1913 से शुरू किया और वह संयुक्त प्रांत की विधान परिषद के सदस्य चुने गए। यही नहीं वह वर्ष 1920 से 1923 तक वायसराय की परिषद में कानूनी सदस्य नियुक्त हुए। सप्रू ने एनी बेसेंट के होमरूल लीग आंदोलन में भाग लिया था। उन्हें लॉर्ड रीडिंग की कार्यकारी समिति में लॉ मेंबर नियुक्त किया गया और उन्होंने यहां पर दो साल काम किया।
उन्होंने ब्रिटिश सेक्रेटरी ऑफ स्टेट का भारतीय मामलों में दखल देने का विरोध किया और तर्क दिया कि ये दखल सारे सुधारों को नष्ट कर देगा। वह गांधी के नेतृत्व की आलोचना करते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने गांधी-इरविन समझौता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसके बाद ही कांग्रेस दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग ले पाई थी।
‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में ब्रिटिश सरकार से भिड़े
वर्ष 1942 में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान जब गांधीजी सहित कांग्रेस के सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए तो तेज बहादुर सप्रू गांधीजी को रिहा करवाने के लिए ब्रिटिश सरकार से भिड़ गए। हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे पर जब गांधी की जिन्ना के साथ वार्ता होनी थी तो उन्होंने गांधी को पत्र लिखकर कहा, ‘मुझे कोई शक नहीं है कि ये मसला आपके हाथों में महफूज़ है और मैं इस मुलाक़ात के सफल होने की दुआ करता हूं।’ सप्रू उन प्रमुख वकीलों में से एक थे, जिन्होंने आजाद हिन्द फौज के सेनानियों का मुकदमा लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
तेज बहादुर सप्रू का निधन
स्वतंत्रता सेनानी तेज बहादुर सप्रू ने 20 जनवरी, 1949 को इलाहाबाद में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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