इलाहबाद से लड़ेंगी किन्नर मां भवानी, यूं रहा है महामंडलेश्वर बनने का सफर

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उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल इलाहाबाद लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव खेलते हुए किन्नर अखाड़ा की भवानी मां को प्रत्याशी बनाया है। किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां को आम आदमी पार्टी में शामिल करने के बाद संजय सिंह का कहना था, ‘जिस किन्नर समाज की हर राजनीतिक पार्टी ने उपेक्षा की। हम उनके साथ हैं। मोदी सरकार तो एक बिल भी लाई थी, जिसमें वो किन्नरों को भिखारी की कैटेगरी में रखना चाहती थी। अब किन्नर समाज की भवानी मां इलाहाबाद लोकसभा सीट से लड़ाई जीतेंगी।’

वहीं, आम आदमी पार्टी ज्वॉइन करने के बाद मां भवानी का कहना है,’मैं किसी को हराने नहीं आई हूं. मैं जीतने आई हूं. हमारा मुद्दा बेरोजगारी, नोटबंदी और जो वादे किए गए थे, वो सब हैं।’ राजनीति में मां भवानी कितनी सफल हो पाती हैं यह तो आने वाले दिनों में पता चल पाएगा, फिलहाल हम आपको मां भवानी की जर्नी बताते हैं।

संघर्षपूर्ण रही है भवानी की कहानी

आज किन्नर अखाड़े की प्रमुख बन चुकी भवानी की यहां तक पहुंचने की यात्रा आसान नहीं रही है। उन्होंने अपनी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। भवानी दिल्ली की रहने वाली हैं। उनका जन्म एक गरीब परिवार में चांदिकापुरी इलाके में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल ​मिलती थी। जब भवानी दस साल की हुईं तो उन्हें पता चला कि वे किन्नर हैं। इस बात ने उनकी जिंदगी बदल दी। एक इंटरव्यू में भवानी ने बताया कि वे अपनी स्थिति को समझने की कोशिश कर ही रही थीं कि 11 साल की उम्र में एक करीबी ने उनका रेप कर दिया। मानसिक रूप से इस बात ने उन्हें काफी परेशान कर दिया।

जब वह 13 साल की हुईं तो उनके परिवार और दोस्तों को उनकी असली पहचान के बारे में मालूम हुआ कि वह एक किन्नर हैं। इसके बाद से भवानी का जीवन कभी पहले जैसा नहीं रहा। उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। उनके घरवाले भी उनसे शर्मिंदगी महसूस करते थे। एक साल बाद भवानी ने घर छोड़ दिया और फिर कभी वापस लौटकर नहीं गईं। भवानी किन्नर समाज के पास चली गई थीं। जहां उनकी पहली गुरु नूरी बनी।

उनके संघर्षपूर्ण सफर ने उन्हें इस्लाम धर्म की ओर मोड़ा और कुछ समय बाद वह मक्का पहुंच गईं। इस दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर शबनम रख लिया। इसके कुछ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने जब तीसरे जेंडर को पहचान दी तो यहीं से उनके जीवन में अहम मोड़ आया। भवानी संभवत: एकमात्र हिंदू साध्वी होंगी, जिन्हें हाजी का पद मिलने वाला है।

2015 में उज्जैन कुंभ से पहले भवानी ने किन्नर अखाड़े की नींव रखी थी, लेकिन यह इतना आसान नहीं था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसे एक अलग 14वें अखाड़े का दर्जा देने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें शाही स्नान में शामिल होने का मौका नहीं मिल सका।

2017 में मिली उपाधि

दो साल पहले तक मां भवानी, शबनम बेगम के नाम से चर्चित थीं। मां भवानी ने 2010 में हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म कबूल लिया था, लेकिन 5 साल बाद उन्होंने दोबारा हिंदू धर्म अपनाया। साल 2016 में वो अखिल भारतीय हिंदू महासभा के किन्नर अखाड़े में धर्मगुरु बनीं। इसके बाद स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने साल 2017 में उन्हें उत्तर भारत के लिए महामंडलेश्वर की उपाधि दी थी।

लक्ष्मी नारायण हैं अखाड़े की महामंडलेश्वर

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किन्नर अखाड़े में फिलहाल सौ से ज्यादा किन्नर हैं। माना जा रहा है कि आने वाले समय में किन्नरों की संख्या अखाड़ों में और बढ़ जाएगी। किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हैं जो पहले से ही लिंग भेदभाव के खिलाफ काम कर रही हैं। इसके अलावा इस अखाड़े में उत्तर भारत की महामंडलेश्वर भवानी मां, अन्तर्राष्ट्रीय महामंडलेश्वर डॉक्टर राज राजेश्वरी, जयपुर की मंडलेश्वर पुष्पा माई, दिल्ली की महामंडलेश्वर कामिनी कोहली और पश्चिम बंगाल की मंडलेश्वर गायत्री माई, महाराष्ट्र नासिक की मंडलेश्वर संजना माई समेत देशभर के किन्नर कुंभ में जुट रहे हैं। 2014 में जब सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर दिया तभी किन्नर अखाड़े के बारे में चर्चा शुरू हो गयी थी। 2015 में हुए उज्जैन कुंभ में किन्नर अखाड़े का गठन किया गया। इसी साल अक्टूबर में इसका रजिस्ट्रेशन भी किया गया।

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