फलों या सब्जियों पर मोम (वैक्स) की परत के बारे में आपने बहुत सुना होगा। इन पर मोम की परत कई लोगों को चिंता में डाल देती है। कई इसे सेहत के लिए नुकसानदायक मानते हैं तो कई जानना चाहते हैं कि आखिर फलों पर मोम की परत क्यों चढ़ाई जाती है?
हाल में केंद्रीय खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान के स्टाफ को मोम की परत वाले सेबों के कारण मुसीबत का सामना करना पड़ा और उन्होंने फल विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई की।
विशेषज्ञों की माने तो सारे फलों पर कुदरती मोम की परत होती है, जब इन फलों को तोड़ा जाता है और इनकी पैकेजिंग की जाती है तब रगड़ से यह परत उतर जाती है। सेब आदि फलों के साथ भी ऐसा ही है। सेब की पैदावार भारत में सितंबर—अक्टूबर में होती है। इनकी पैकेजिंग के दौरान इन पर खजूर के पत्तों से निकलने वाले कैरानौबा मोम की परत चढ़ा दी जाती है।
सौ वर्ष पुरानी है फलों पर मोम की परत चढ़ाने की तकनीक
फलों को तोड़ते समय रगड़ से प्राकृतिक मोम की परत उतर जाती है। इससे फलों की गुणवत्ता बनाए रखने में मुश्किल होती है। साथ ही ज्यादा दिनों तक इन्हें सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इन नुकसानों को देखते हुए दुनियाभर की सरकारों ने फलों पर मोम की परत चढ़ाने की अनुमति दी ताकि इन्हें ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखा जा सके। यह प्रक्रिया करीब 100 साल पुरानी है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के अनुसार नेचुरल वैक्स का फल सब्जियों को सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। कुदरती मोम सब्जियों, दालों, खनिजों, चर्बी और फलों से प्राप्त होता है। इसके उपयोग से सेब का रस नहीं सूखता और उसकी चमक बरकरार रहती है।
देश के विभिन्न राज्यों में इस्तेमाल होती है फलों पर मोम की परत
भारत में भी इस तकनीका का इस्तेमाल काफी समय से किया जा रहा है। इससे फलों को अधिक समय तक चमकदार व रसीले रखे जाते हैं। इस तकनीक का हिमाचल प्रदेश के सेब पैदा करने वाले किसान करीब डेढ़ दशक से कर रहे हैं। इससे सेब बिना फ्रिज के लंबे समय तक ताजे बने रहते हैं। पंजाब राज्य में किन्नू पर भी खाने योग्य मोम की परत चढ़ाई जाती है। मोम की परत चढ़ने पर इन फलों को दूर-दराज के इलाकों में भेजा जा सकता है। नींबू, अंगूर, केला, खीरा, टमाटर, तरबूज, संतरा और आड़ू जैसे फलों व सब्जियों पर मोम की परतें चढ़ाई जाती हैं।
नेचुरल मोम नहीं है सेहत के लिए नुकसानदायक
हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार फल, दाल, मधुमक्खी के छत्ते और सब्जियों से प्राप्त होने वाला मोम हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक नहीं है। क्योंकि यह मोम पेट में घुलता नहीं है और मल के रास्ते बाहर निकल जाता है। लेकिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते वर्तमान में घटिया क्वालिटी के मोम का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे किडनी आदि में संक्रमण हो जाता है। नसें कमजोर हो सकती है। इससे बच्चों में डायरिया का खतरा बढ़ जाता है।
इस तरह से कर सकते हैं फलों पर चढ़े मोम की जांच
सेब या किसी अन्य फल की परत को चाकू से धीरे-धीरे खुरचिए। इससे मोम की परत उतरने लग जाएगी। सेब जितना ज्यादा चमकदार होगा, उस पर मोम की परत उतनी ही ज्यादा मोटी होगी। यही नहीं सेब को गर्म पानी में डालने से मोम पिघल जाएगा। इसे अच्छे से धोकर इस्तेमाल किया जा सकता है। फलों के छिलके को उतारकर भी फलों का सेवन करना फायदेमंद हो सकता है।