देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का भारत के प्रति योगदान महज कुछ शब्दों में बताना मुश्किल है। नेहरू का ओहदा जितना बड़ा था उतने ही गुरेज से वो फैसले लेते थे। आजादी के बाद नेहरू ने देश का ढ़ांचा तैयार करने के लिए कई कानूनों को संसद में पारित करवाया।
आज हम बात करेंगे स्पेशल मैरिज एक्ट की जिसे तमाम रूढ़िवादियों के विरोध के बाद नेहरू ने भारतीय संसद में पारित करवाया था, 1954 में इसे कानून की शक्ल दी गई।
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954
इस एक्ट के तहत किसी भी धर्म से ताल्लुक रखने वाले आपस में शादी कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अगर कोई हिंदू लड़का या लड़की किसी दूसरे धर्म माने मुस्लिम या ईसाई लड़की या लड़के से शादी कर सकते हैं। इसके अलावा भारतीय नागरिक किसी विदेशी से भी शादी कर सकता है।
इस एक्ट के तहत शादी करने के लिए किसी पंडित,पादरी,मौलवी या रीति-रिवाजों की जरूरत नहीं होती है।
किसी भी दूसरे तरीके से शादी करने पर मिलने वाले सभी अधिकार स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी मिलते हैं। वहीं अगर हम उत्तराधिकारी की बात करें तो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत वारिस को उसका हक मिलता है।
इस एक्ट में कैसे होती है शादी ?
स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी करने के लिए आपको कुछ कागजी कार्रवाई करनी होती है। सबसे पहले ADM यानि जिला कलेक्टर के ऑफिस में जाकर शादी के लिए आवेदन करना होता है। उम्र से जुड़े कागजात के साथ शादी करने वाले दोनों लोगों का हलफनामा पेश करना होता है।
विभाग के अधिकारी फिर दोनों का फिजिकल वेरीफिकेशन करवाते हैं और दोनों को 30 दिन का समय दिया जाता है। 30 दिनों का समय इसलिए कि अगर कोई आपत्ति हो तो वह बता सकते हैं।
1 महीने बाद दोनों लड़की और लड़के एडीएम ऑफिस आते हैं, जहां मैरिज रजिस्टार गवाहों के सामने दोनों को शादी की शपथ दिलावाकर मैरिज सर्टिफिकेट देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान वहां दोनों पक्ष की तरफ से तीन गवाह मौजूद होने जरूरी है।
कुछ जरूरी शर्तें भी हैं
शादी करने वाली लड़की 18 साल की और लड़के की उम्र 21 साल होनी चाहिए।
दोनों की शादी के लिए सहमति होनी जरूरी है।
अगर किसी एक की पहले शादी हो चुकी है तो उसके पीछे की शादी के बारे में सबकुछ बताना होता है।
दोनों लोगों के बीच कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं होना चाहिए।