अंतरिक्ष की दुनिया में भारत ने आज तक जो उपलब्धियां हासिल की हैं, उसकी चर्चाएं सड़क से लेकर संसद तक होती रही हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जिस तरह कामयाबी हासिल कर रहा है, उसका श्रेय मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक सतीश धवन को भी जाता है, जिन्होंने इसरो की नींव खड़ी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं।
महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई के बाद इसरो की बागडोर सतीश के कंधों पर आई थीं। भले ही इसरो की नींव साराभाई ने रखी हो, मगर इस संगठन को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले सतीश धवन ही थे। धवन आज भले ही हमारे बीच नहीं है, मगर उनके अतुल्य योगदान के कारण वे युगों-युगों तक भारतीय अंतरिक्ष इतिहास में अमर रहेंगे। आज 25 सितंबर को महान गणितज्ञ व अंतरिक्ष वैज्ञानिक सतीश धवन की 103वीं जयंती है। इस ख़ास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुने किस्से…
सतीश धवन ने अमरीका से किया स्नातक
सतीश धवन का जन्म 25 सितंबर, 1920 को जम्मू-कश्मीर राज्य के श्रीनगर की खुबसूरत वादियों में हुआ था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अलग-अलग विषयों में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर किया और फिर अभियांत्रिकी यानी इंजीनियरिंग मे स्नातक की पढ़ाई के लिए अमरीका का रुख किया। वहां सतीश ने मिनेसोटा यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. की डिग्री ली।
उसके बाद धवन एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कैलिफ़ोर्निया इन्स्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलोजी चले गए। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1954 में एरोनॉटिक्स और मैथमेटिक्स में प्रमुख एयरोस्पेस वैज्ञानिक प्रोफेसर हंस डब्ल्यू लिपमैन के मार्गदर्शन में पीएचडी की और फिर उन्होंने फ्लूएड डायनामिक्स के क्षेत्र में रिसर्चर के रूप में करियर शुरू कर दिया था।
वैज्ञानिक के साथ-साथ बेहतर टीचर भी थे धवन
सतीश धवन एक वैज्ञानिक होने के साथ-साथ अच्छे अध्यापक भी थे। विदेश से लौटने के बाद वर्ष 1951 में सतीश ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी का पदभार संभाला। यहां रहते हुए सतीश ने कई सकारात्मक बदलाव किए। कुछ समय बाद ही उन्हें आईआईएससी में एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग विभाग में शामिल कर लिया गया।
सतीश को संस्थान में पहला सुपरसोनिक विंड टनेल स्थापित करने का श्रेय है। यही वजह है कि उन्हें ‘फादर ऑफ एक्सपेरीमेंटल फ्लूइड डायनैमिक्स’ कहा जाता है। काम के प्रति सतीश के समर्पण, लगन को देखते हुए उन्हें वर्ष 1962 में आईआईएससी के निदेशक का पदभार सौंपा गया। आपको हैरानी होगी मगर सतीश धवन सबसे लंबे समय तक इस पद पर कार्यरत रहने वाले निदेशक के साथ ही कम उम्र के वैज्ञानिक थे।
इंदिरा गांधी के प्रस्ताव पर संभाली इसरो की बागडोर
आईआईएससी के निदेशक पद पर रहते हुए सतीश धवन आगे की रिसर्च के लिए कैल्टेक चले गए। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार सत्ता पर काबिज थी। 30 दिसंबर, 1971 को विक्रम साराभाई के आकस्मिक निधन के बाद इसरो की जिम्मेदारी उठाने के लिए इंदिरा गांधी ने धवन से भारत लौटने का अनुरोध किया। तब उन्होंने अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्य पदभार संभाला। वर्ष 1972 में सतीश धवन इसरो के अध्यक्ष के बनाए गए।
इसरो का अध्यक्ष बनते वक्त रखी थी ये दो शर्त
सतीश धवन ने अंतरिक्ष कार्यक्रम का पदभार संभालने के लिए भारत सरकार के समक्ष दो शर्तें रखी थी। पहली यह कि अंतरिक्ष कार्यक्रम का मुख्यालय बेंगलुरु में बनाया जाए, दूसरी इस पद पर आसीन रहते उन्हें आईआईएससी के निदेशक के पद का कार्यभार भी संभालने की अनुमति दी जाए।
इसरो को नई ऊंचाई पर ले गए सतीश धवन
इसरो के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहते हुए सतीश धवन अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष, अंतरिक्ष विभाग और भारत सरकार के सचिव भी रहे। उनके नेतृत्व में ISRO ने शानदार उपलब्धियां हासिल की। विक्रम साराभाई चाहते थे कि भारत उपग्रहों के निर्माण एवं प्रक्षेपण में सक्षम हो। साराभाई के इस सपने को सतीश ने न सिर्फ साकार किया, बल्कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को दुनिया से रुबरू कराया। उनके नेतृत्व में संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी में कामयाबी हासिल हुई, जिसके साथ ही भारत दुनिया के चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल हो गया।
बाउंड्री लेयर रिसर्च की दिशा में किया बेहतरीन काम
प्रोफेसर डॉ. सतीश धवन ने अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख रहने के दौरान ही बाउंड्री लेयर रिसर्च (परिसीमा परत अनुसंधान) की दिशा में बेहतरीन काम किया, जिसका जिक्र दर्पन स्लिचटिंग की पुस्तक ‘बाउंड्री लेयर थ्योरी’ में वर्णित किया गया है। साल 2002 में 3 जनवरी के दिन सतीश धवन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और हमेशा के लिए हम से दूर चले गए।
अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके असाधारण योगदान को सम्मानित करते हुए आंध्र प्रदेश में स्थित ‘भारतीय उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र’ का नाम बदलकर ‘प्रोफेसर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र’ रखा गया। महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बाद धवन को ऐसे वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता है, जिसने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को बेहतरीन दिशा दीं।
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