विज्ञान और तकनीक के युग में जहां मानव की पहुंच अंतरिक्ष में बढ़ती जा रही है तो इससे कुछ विकसित देशों को अपनी सुरक्षा भी सताने लगी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वैशिक परिदृश्य में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और उससे उत्पन्न खतरे को कारण मानते हुए पिछले दिनों एक कार्यकारी आदेश पर दस्तखत करते हुए पेंटागन को ‘स्पेस फोर्स’ बनाने का आदेश दिया है। उनका कहना है कि अमेरिकियों की सुरक्षा के लिए अमेरिका की केवल अंतरिक्ष में उपस्थिति काफी नहीं है, वहां उसका दबदबा होना भी जरूरी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मुताबिक ‘स्पेस फोर्स’ अमेरिकी रक्षा विभाग की एक नई यानी छठवीं ब्रांच होगी।
हालांकि अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्धा को किसी युद्ध की चेतावनी मानना जल्दबाजी होगा किंतु मौजूदा हालातों को देखते हुए कुछ भी संभव है। ऐसे में अंतरिक्ष में विश्व युद्ध होने की आशंका के मद्देनजर अमेरिका की तैयारियां अभी से ही जोरों पर हैं। इस खबर ने एक बार फिर अंतरिक्ष में विभिन्न देशों की सैन्य शक्ति को चर्चा में ला दिया है।
भारत भी अंतरिक्ष में तीव्र गति से अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है और मौजूदा समय में अंतरिक्ष में सबसे अधिक सेटेलाइट भेजने वाले देशों में भारत सातवें स्थान पर है। ऐसे में भारत का अंतरिक्ष में अगला मिशन मानव को अंतरिक्ष में भेजना और 2021 तक इस साकार रूप दे सकता है।
जीपीएस क्या है
अंतरिक्ष में उपग्रह को भेजने के पीछे व उनके इस्तेमाल विभिन्न देशों द्वारा अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किये जाते हैं, जैसे जीपीएस (ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम) उपग्रह आम लोगों और सैन्य बलों के लिए होता है। इसके अलावा व्यावसायिक और प्रशासनिक जरूरतों के लिए भी उपग्रह भेजे जाते हैं।
जीपीएस यानि ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम एक ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है जोकि किसी भी चीज की लोकेशन (उपस्थिति कहां है) का पता करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस सिस्टम को सबसे पहले अमेरिका के सुरक्षा विभाग ने 1960 में बनाया था। उस समय यह सिस्टम केवल यूएसए आर्मी के इस्तेमाल के लिए बनाया गया लेकिन बाद में 27 अप्रैल, 1995 से यह सभी के लिए बनाया गया और आज हमें यह सुविधा मोबाइल में भी देखने को मिलती है। इस तकनीक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल नेविगेशन या रास्ता ढूंढने में किया जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में बनेगी स्पेस फोर्स छठी शाखा
यूएसए में सुरक्षा से संबंधित सेना की पांच शाखाएं हैं- वायु सेना, थल सेना, कोस्ट गार्ड, मरीन कॉर्प्स और नौसेना। स्पेस फोर्स अमेरिकी सेना की छठी शाखा होगी, जो कानूनी अनुमतियों के बाद स्वतंत्र विभाग के तौर पर सेना में शामिल होगी। यह 2020 तक औपचारिक रूप से सेना का अंग बन सकती है।
दुनिया के वे देश जिनके पास है मिलिट्री स्पेस कमांड
चीन – पीपुल्स लिबरेशन आर्मी स्ट्रेटजिक सपोर्ट फोर्स
फ्रांस- फ्रेंच ज्वाइंट स्पेस कमांड
रूस- रूसी एयरोस्पेस फोर्सेज, रूसी स्पेस फोर्सेज
इंग्लैंड- रॉयल एयर फोर्स, आरएएफ एयर कमांड
अमेरिका- एयर फोर्स, अमेरिकी एयर फोर्स स्पेस कमांड
क्या है अंतरिक्ष सेना
अंतरिक्ष सेना या स्पेस फोर्स से सीधा तात्पर्य यह है कि अंतरिक्ष में भी सैनिक गतिविधियों का संचालन करना, जैसे हर देश अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए जल, थल और वायु में अपने सैनिक रखते हैं। उसी प्रकार एक ऐसी शाखा होती है, जो अंतरिक्ष में युद्ध करने में सक्षम होगी।
हालांकि अभी तक तो ऐसा कोई विभाग नहीं बना है परंतु अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप काफी समय से ऐसी सेना तैयार करने के विचार में थे, जिसका कद बिलकुल वायु या थल सेना जितना हो। फिलहाल संयुक्त राज्य अमेरिका में अंतरिक्ष के सभी मामले वायु सेना के अंतर्गत आते हैं।
अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने की तैयारी में है भारत
वैसे तो अंतरिक्ष में चुनिंदा देश ही अपने नागरिकों के भेज पाएं है जिनमें अमेरिका, रूस और चीन अंतरिक्ष में स्वदेशी मिशन के तहत अपने नागरिक भेज चुके हैं। अंतरिक्ष में कई उपलब्धियां अपने नाम दर्ज करा चुका भारत भी अंतरिक्ष में अपने पहले मानव मिशन के सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दिसंबर 2021 में अंतरिक्ष में अपना पहला मानव मिशन भेजेगा। 9023 करोड़ रुपये से बनाए गए मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र से तीन वैज्ञानिकों की टीम को धरती से अंतरिक्ष में भेजा जाएगा। इन्हें पहले प्रशिक्षित किया जाएगा। उसके बाद उनकी एडवांस ट्रेनिंग उन देशों में होगी जो पहले अंतरिक्ष में इंसान भेज चुके हैं।
क्यों चिंतित है वैज्ञानिक या अन्य देश
अमेरिका की एक गैर लाभकारी संगठन ‘यूनियन ऑफ कंर्सन्ड साइंटिस्ट’ ने अंतरिक्ष में अमेरिका के बढ़ती दखलांदाजी पर अपनी चिंता जाहिर की हैं। इस संस्था के मुताबिक अंतरिक्ष में अभी तक सैन्य गतिविधियां बहुत कम हैं और एकजुटता व आपसी सुलह से काम होता है। अगर ऐसे फैसले प्रभावी होते हैं तो अंतरिक्ष में मौजूदा शांति प्रभावित हो सकती हैं।
वैसे तो मानवहित में हथियारों का होना ही विनाशकारी है। जिसके परिणाम हम द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान देख चुके हैं। मानव महत्त्वाकांक्षा के चलते व्यक्ति कब गलत निर्णय ले लेता है उसे पता ही नहीं चलता है। ऐसे में अब स्पेस फोर्स मानव के लिए कितनी हितकारी या विनाशकारी होगी यह तो भविष्य ही बतायेगा।