वसंत देसाई भारतीय संगीत की दुनिया का एक जाना पहचाना नाम है। 9 जून को वसंत साहब की 111वीं बर्थ एनिवर्सरी है। वसंत देसाई के गीत ‘हमको मन की शक्ति देना’ और ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ ना सिर्फ हिंदुस्तान, बल्कि पाकिस्तान की हर स्कूल एसेंबली में आज भी गाए जाते हैं। संगीतकार वसंत कुमार देसाई का जन्म 9 जून, 1912 में गोवा के कुदाल क्षेत्र में हुआ था। देसाई का बचपन से ही रुझान संगीत की दुनिया में था। एक वजह यह भी रही कि वसंत जहां से थे, वहां का संगीत काफी प्रबल था। यहां के धार्मिक व पौराणिक नाटकों में संगीत होता था। ऐसा कहा जा सकता है कि उनकी असल संगीत यात्रा यहीं से शुरू हुईं। इस खास अवसर पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…
संगीत नहीं, अभिनय से की अपने करियर की शुरुआत
संगीत के प्रति अपने जुनून के साथ वसंत देसाई महाराष्ट्र के कोल्हापुर आ गए। उन्होंने करियर के शुरुआती दौर में वी. शांताराम के साथ काम शुरू किया, लेकिन बतौर संगीतकार नहीं, एक ऑफिस ब्वॉय के तौर पर। यहीं से उनकी किस्मत पलटी और उन्हें फिल्मों में अभिनय का मौका मिला। उन्होंने वर्ष 1930 में ‘प्रभात फ़िल्म्स’ की एक मूक फ़िल्म ‘खूनी खंजर’ से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की।
संगीतकार के तौर पर वसंत देसाई की पहली फिल्म मराठी थी। यह वर्ष 1932 में में रिलीज हुई फिल्म ‘अयोध्या का राजा’ थी, जिसमें उन्होंने ‘जय जय राजाधिराज’ गाने को आवाज दीं। देसाई को असल पहचान वर्ष 1934 में रिलीज हुई फ़िल्म ‘अमृत मंथन’ के गाने ‘बरसन लगी…’ से मिलीं। बसंत ने अपने करियर में पार्श्वगायन व संगीतकार में से संगीतकार बनना चुना था।
कई बड़े उस्तादों से सीखी संगीत की बारीकियां
संगीतकार के रूप में अपना करियर संवारने के लिए वसंत देसाई ने उस्ताद आलम ख़ान और उस्ताद इनायत ख़ान जैसी ख्याति प्राप्त शख्सियतों से संगीत की बारीकियां सीखीं। वसंत ने वर्ष 1942 में आई फ़िल्म ‘शोभा’ के जरिए बतौर संगीतकार करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने वी. शांताराम के साथ काम करना शुरू कर दिया और एक के बाद एक कई हिट संगीत हिंदी सिनेमा और श्रोताओं को दिये।
पाकिस्तान के कई स्कूलों में आज भी गूंजती हैं धुन
फ़िल्म ‘आंखें बारह हाथ’ में वसंत देसाई की एक प्रार्थना ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ देश ही नहीं बल्कि, पाकिस्तान के कई स्कूलों की प्रार्थना बनी, जो आज भी कायम है। फिल्म ‘गुड्डी’ की प्रार्थना ‘हमको मन की शक्ति देना’ भी कई दशकों तक स्कूल की प्रार्थना में शामिल रहीं। उन्होंने करीब 4 दशक तक संगीत की दुनिया में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। 22 दिसंबर, 1975 का वो दिन जब वे अपने घर की लिफ्ट में एक हादसे के शिकार हो गए। फौरन ही वसंत साहब को अस्पताल भी ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल: बचपन में घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए कॉन्सर्ट में जाते थे लक्ष्मीकांत