बच्चे बढ़ा रहे सियासत की परम्परा

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मध्य प्रदेश में भाजपा हो या कांग्रेस, राजनीति में सफल नेताओं के पीछे पुत्री-पुत्र की सक्रिय भूमिका रही है। निर्वाचन क्षेत्र में सियासत के सारे सूत्र ये ही संभाल रहे हैं। इनका लोहा संगठन भी मान चुका है तभी तो दोनों दलों ने कुछ को चुनावी रण में उतारा तो कुछ संगठन में ऊंचे ओहदे पर पहुंचे। कुछ आज विधायक हैं तो कुछ टिकट की दौड़ में शामिल हैं। मप्र में ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जिनके चुनाव क्षेत्र की कमान उनके पुत्र या पुत्री संभालते हैं। अपने बच्चों को आगे लाने के पीछे दो मुख्य कारण हैं। एक आगे चलकर निर्वाचन क्षेत्र पर स्वाभाविक दावा बनेगा, जो भविष्य के लिए मददगार साबित होगा। दूसरा, राज्य और केंद्र स्तर की राजनीति करने के लिए समय चाहिए होता है, इसके लिए निर्वाचन क्षेत्र की चिंता से मुक्त होना जरूरी है। हालांकि, इसका अंदरूनी तौर पर विरोध भी होता है, क्योंकि दूसरे कार्यकर्ताओं को मौका नहीं मिल पाता।

आइए ऐसे ही युवा पीढ़ी पर डालें नजर

कार्तिकेय सिंह चौहान- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भाजपा को चौथी बार प्रदेश में सत्ता दिलाने का दारोमदार है। ऐसे में चुनाव के समय बुदनी (निर्वाचन क्षेत्र) में ज्यादा समय देना संभव नहीं होगा, इसलिए पुत्र कार्तिकेय ने कमान संभाल ली है। वह काफी समय से बुदनी विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं।

आकाश विजयवर्गीय- भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने पश्चिम बंगाल का प्रभार देकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे में निर्वाचन क्षेत्र डॉ. आंबेडकर नगर (महू) की पूरी जिम्मेदारी बेटे आकाश संभालते हैं। इनके चुनाव लड़ने की चर्चा है।

अभिषेक भार्गव- सात बार लगातार चुनाव जीत चुके पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव के विधानसभा क्षेत्र रेहली की पूरी जिम्मेदारी इन्हीं के पास है। 2013 के चुनाव में भार्गव आचार संहिता लागू होने के बाद एक दिन भी प्रचार के लिए क्षेत्र में नहीं गए। चुनाव के पूरे सूत्र अभिषेक के हाथों में रहे।

सिद्धार्थ मलैया- वित्तमंत्री जयंत मलैया के पुत्र। दमोह में सक्रिय। स्थानीय स्तर पर सत्ता और संगठन की जमावट करने की जिम्मेदारी। एक तरह पिता का पूरा काम क्षेत्र में देखते हैं।

मुदित शेजवार- सात बार के विधायक वन मंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार के विधानसभा क्षेत्र सांची का पूरा दारोमदार पुत्र मुदित पर है। टिकट के दावेदार भी हैं।

विक्रांत भूरिया- रतलाम से सांसद कांतिलाल भूरिया के 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूरी कमान बेटे विक्रांत ने संभाली। लगातार जनसंपर्क अभियान चलाया और उपचुनाव में बड़े अंतर से पिता को जीत दिलाकर लोकसभा भेजा। पूरे झाबुआ, आलीराजपुर, रतलाम क्षेत्र में सक्रिय और विधानसभा चुनाव के लिए टिकट के दावेदार भी हैं।

सुकर्ण मिश्रा- जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के पुत्र। दतिया विधानसभा क्षेत्र के उन 36 गांवों में खासतौर पर सक्रिय हैं, जो शिवपुरी से अलग होकर दतिया में शामिल हुए थे। क्षेत्र में विकास का कोई काम करना हो या फिर स्थानीय स्तर पर कोई समीकरण बनाना हो तो सुकर्ण की ही अहम भूमिका होती है।

अजीत बोरासी- उज्जैन के पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू के पुत्र। पार्टी ने अजीत को युवा कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। पिता की पूरी सियासत संभालते हैं। विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं। एक बार फिर टिकट की दौड़ में शामिल।

देवेंद्र सिंह तोमर- केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र। पिता की सियासत के सूत्र संभाल रहे हैं।

मौसम बिसेन (हरिनखेड़े)- कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पुत्री। क्षेत्र में सक्रिय और पिता के ज्यादातर समय दौरों पर होने के चलते पूरा कामकाज देखने का जिम्मा।

दीपक जोशी पिंटू- पूर्व मंत्री महेश जोशी के पुत्र। युवा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष, इंदौर में सक्रिय हैं।

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