फ़ेसबुक या इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल करते हुए क्या आपने कभी महसूस किया है कि हर कोई आपसे बेहतर जीवन जी रहा है? ऐसे सोशल मीडिया इंटरएक्शन मेजर डिप्रेशन डिसोर्डर (एमडीडी) से जुड़े हुए हैं। शोधकर्ताओं ने इसके लिए 500 से अधिक लोगों पर स्टडी की। ये 500 वो लोग थे जो फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम या स्नैपचैट का सक्रिय रूप से उपयोग करते हैं।
टेक्सास स्टेट यूनिवर्सिटी की टीम द्वारा यह शोध किया गया और इन 500 लोगों में एमडीडी (इंटरएक्शन मेजर डिप्रेशन डिसोर्डर) से जुड़े पांच प्रमुख सोशल मीडिया कारकों की पहचान की।
जो लोग दूसरों से खुद की तुलना करते हैं और दूसरों की लाइफस्टाइल को खुद से अच्छा या बुरा बताते हैं वे यह संकेत देते थे कि वे बेवजह की तस्वीरों में टैग किए जाने से अधिक परेशान होते हैं। और उन लोगों के साथ खुद की तस्वीरें पोस्ट करने की संभावना कम होती है जो अन्य लोगों से मिलते हैं।
जर्नल ऑफ एप्लाइड बायोबायोवाल रिसर्च में रिपोर्ट किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन लोगों के अकाउंट पर 300 से अधिक फोलोअर्स थे उनमें इस डिप्रेशन का खतरा कम था। नकारात्मक सोशल मीडिया व्यवहार में भाग लेना एमडीडी होने की एक उच्च संभावना के साथ भी जुड़ा हुआ है।
टेक्सास स्टेट यूनिवर्सिटी के क्रिस्टा हावर्ड ने कहा कि हालांकि अध्ययन में सोशल मीडिया के व्यवहार पर प्रकाश डाला गया है जो प्रमुख रूप से डिप्रेशन से जुड़ा है। यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया का उपयोग सामाजिक समर्थन को बढ़ावा देने सहित कई सकारात्मक लाभ प्रदान कर सकता है।
अध्ययन व्यक्तियों के बीच जागरूकता विकसित करना है कि वे वर्तमान में सोशल मीडिया का उपयोग कैसे करते हैं और डिप्रेशन जैसे खतरे से दूर रहने के लिए वे सोशल मीडिया के उपयोग में क्या बदलाव कर सकते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के डिप्रेशन से दूर रहने का सबसे बढ़िया तरीका यही है कि सोशल मीडिया पर अपना वक्त कम करें।