भारतीय हिंदी सिनेमा को ‘बंद दरवाजा’, ‘पुरानी हवेली’ , ‘गेस्ट हाउस’, ‘सामरी’ और ‘वीराना’ जैसी एक से बढ़कर एक हॉरर फिल्म देने वाले और फेमस रामसे ब्रदर्स में से एक डायरेक्टर श्याम रामसे ने 67 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। वह पिछले कुछ समय से मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल में भर्ती थे और निमोनिया की समस्या से जूझ रहे थे। 18 सितंबर बुधवार को उनका अंतिम संस्कार मुंबई के विले पार्ले श्मशान घाट में किया गया। श्याम अपने पीछे परिवार में दो बेटियां साशा और नम्रता को छोड़ गए हैं। आइए हम आपको बताते हैं हॉरर डायरेक्टर श्याम रामसे के बारे में कुछ बेहद ख़ास बातें..
एडिटिंग और डायरेक्शन का काम करते थे श्याम
श्याम रामसे का जन्म 17 मई, 1952 को मुंबई शहर में हुआ था। वह बॉलीवुड में मशहूर रामसे ब्रदर्स, जोकि 7 भाई थे उनमें से एक थे। 80 के दशक में अपने क्रिएटिव माइंड के साथ बॉलीवुड को एक अलग लेवल के हॉरर से रुबरु कराने वाले रामसे ब्रदर्स ने कई हिट फिल्मों का निर्माण भी किया। श्याम फिल्मों का निर्देशन करने के अलावा फिल्मों की एडिटिंग का काम भी संभाला करते थे। उनके द्वारा एडिट की गई फिल्मों में ‘वीराना’, ‘खेल मोहब्बत का’, ‘टेलीफोन’, ‘पुराना मंदिर’, ‘घुंघरू की आवाज’, ‘दहशत’, ‘सबूत’ और ‘गेस्ट हाउस’ शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर फिल्में उन्होंने ही निर्देशित भी की।
सभी सात भाईयों के जिम्मे था अलग-अलग काम
हॉरर फिल्म बनाने वाले रामसे ब्रदर्स के सातों भाई फिल्म में अलग-अलग प्रोजेक्ट पर काम करते थे। फिल्ममेकिंग का हर डिपार्टमेंट एक भाई के जिम्मे था। रामसे ब्रदर्स में से एक कुमार फिल्म की कहानी लिखा करते थे। गंगू कैमरा-सिनेमेटोग्राफी का काम करते थे। केशू प्रोडक्शन देखते थे और किरण साउंड डिपार्टमेंट संभालते थे। तुलसी और श्याम मिलकर फिल्में डायरेक्ट किया करते थे। इनके एक भाई अर्जुन इनकी शूट की हुई फिल्मों की एडिटिंग करते थे।
विभाजन के वक़्त कराची से आया था रामसे परिवार
आज़ादी से पहले रामसे ब्रदर्स के पिता फतेहचंद रामसिंघानी की पाकिस्तान के कराची में एक बिजली-बत्ती का सामान बेचने की दुकान हुआ करती थी। काम ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के कारण उनके परिवार को मुंबई शिफ्ट होना पड़ा। यहां आकर फतेहचंद ने मुंबई के लैमिंगटन रोड पर अप्सरा सिनेमा के सामने इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स की दुकान खोलीं। लेकिन उनका बिजनेस जम नहीं पाया। इसके बाद फतेहचंद ने फिल्म प्रोडक्शन में हाथ आजमाया।
साल 1954 में आई ‘शहीद-ए-आज़म भगत सिंह’ बतौर प्रोड्यूसर उनकी पहली फिल्म थी। इसके बाद पृथ्वीराज कपूर और सुरैया को लेकर फिल्म ‘रुस्तम सोहराब’ बनाई जोकि सफ़ल रही। इसके बाद उनकी तीसरी फिल्म फ्लॉप रही और उन्होंने इससे निराश होकर फिल्म बनाने का काम छोड़ने का निर्णय लिया। हालांकि, बाप की नाकामयाबी के बाद बेटों ने जद्दोजहद कर अलग तरह के कॉन्सेप्ट की फिल्में बनाने की निर्णय किया। लेकिन पिता फतेहचंद से परमिशन नहीं मिल रही थी।
रामसे ब्रदर्स ने अपने पापा से बड़ी मिन्नतों के बाद परमिशन लेकर दर्शकों की दिलचस्पी को देखकर हॉरर फिल्में बनाना शुरु की जो हिट साबित हुई। उनका यह फार्मूला काम कर गया। रामसे ब्रदर्स आमतौर पर मुंबई के आस-पास ही अपनी फिल्मों की शूटिंग करते थे।
इस दौरान उनका पूरा परिवार इस फिल्ममेकिंग प्रोसेस में शामिल होता था। सातों रामसे ब्रदर्स फिल्में बनाने में लग रहते और उनकी पत्नियां सेट पर कास्ट और क्रू के लिए खाना पकाती थी। इसीलिए उनकी फिल्में कम से कम बजट में बन जाती थीं। रामसे ब्रदर्स अपनी फिल्मों के लिए नए एक्टर्स सिलेक्ट करते थे, ताकि उन्हें कम से कम मेहनताने में राज़ी किया जा सके।
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उल्लेखनीय है कि श्याम रामसे की दो बेटियां शाशा और नम्रता रामसे उनकी फिल्मों में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर का काम करती थीं। अब वो भी हॉरर फिल्में और सीरीज़ डायरेक्ट करती हैं। बता दें कि साल 2017 में उनकी यूट्यूब वेब सीरीज़ ‘फिर से रामसे’ रिलीज़ हुई थी।