श्याम बेनेगल ने एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री से की थी अपने करियर की शुरुआत

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हिंदी सिनेमा में श्याम बेनेगल एक बड़ी शख्सियत हैं, जिन्होंने अपनी बेहतरीन निर्देशन शैली के दम पर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बनाई। फिल्म इंडस्ट्री में नसीरुद्दीन शाह, शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, ओम पुरी, अमरीश पुरी, ईला अरुण जैसे कई मंझे हुए कलाकार श्याम बेनेगल की ही देन माने जाते हैं। बेनेगल आज अपना 89वां जन्मदिन मना रहे हैं। उनका जन्म 14 दिसंबर, 1934 को सिकंदराबाद के त्रिमूलगिरी में हुआ था। इस खास अवसर पर जानते हैं उनकी ज़िंदगी के बारे में कुछ दिलचस्प बातें…

विज्ञापन इंडस्ट्री से करियर की शुरुआत की

श्याम बेनेगल ने अपने करियर की शुरुआत एडवरटाइजिंग इंडस्ट्री से की। उन्होंने मुंबई के लिंटास विज्ञापन एजेंसी में एक कॉपीराइटर के रूप में काम किया। अपने विज्ञापन करियर में बेनेगल ने करीब 900 से अधिक डॉक्यूमेंट्री और विज्ञापन फिल्मों का निर्देशन किया था। उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII), पुणे में पढ़ाया और दो बार इस संस्थान के अध्यक्ष भी रहे।

फिल्म ‘अंकुर’ से फिल्म इंडस्ट्री में रखा कदम

आखिरकार श्याम बेनेगल ने वर्ष 1973 में फिल्म ‘अंकुर’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। अपनी पहली ही फिल्म से वह फिल्म इंडस्ट्री में शोहरत पाने में कामयाब रहे। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘निशांत’ (1975), ‘मंथन’ (1976) और ‘भूमिका’ (1977) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें अमरीश पुरी, शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, स्मिता पाटिल, कुलभूषण खरबंदा जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों ने काम किया था।

बेनेगल की वो फिल्म जिससे जुड़े लाखों किसान

बात उस दौर की थी जब देश में कांग्रेस के शासन के दौरान देश में इमरजेंसी लगा दी गई थी। विवादित माहौल के बीच श्याम बेनेगल ने अपनी आगामी फिल्म की स्क्रिप्ट पूरी की, जो श्वेत क्रांति पर आधारित थी। फिल्म के प्री प्रोडक्शन का काम पूरा हो चुका था। बस कमी थी तो प्रोड्यूसर की। कोई भी इस फिल्म में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था।

ऐसे में बेनेगल दुग्ध क्रांति के जनक कहे जाने वाले वर्गीज कुरियन से मिले और अपनी परेशानी साझा की। कुरियन ने उन्हें अमूल से जुड़े 5 लाख किसानो की मदद लेने का सुझाव दिया। और फिर क्या था श्याम बेनेगल की यह फिल्म देश की पहली ऐसी फिल्म साबित हुई, जिसमें देश के किसानों का पैसा लगा। फिल्म के निर्माण के लिए किसानों ने 2-2 रुपये का सहयोग दिया तब जाकर फिल्म का निर्माण हो सका।

फिल्म का नाम रखा गया ‘मंथन’, जो किसानों और पशुपालकों के संघर्ष की कहानी बयां करती है। फिल्म में स्मिता पाटिल, ओम पुरी, गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने काम किया था। बेनेगल के निर्देशक में बनी इस फिल्म ने दो राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किए।

सत्यजीर रे से हुए खासे प्रभावित

श्याम बेनेगल फिल्म डायरेक्टर सत्यजीत रे से काफी प्रभावित हुए। ये कहना गलत नहीं होगा कि सत्यजीत रे की फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ की निर्देशन शैली को देखकर ही उनमें निर्देशन की दुनिया में आने का चस्का चढ़ा। यही वजह है कि सत्यजीत रे के बाद हिंदी सिनेमा में श्याम बेनेगल ने उनकी विरासत को संभाला। बेनेगल की फिल्में सामाजिक और राजनीतिक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं।

छोटे पर्दे पर किया बड़ा काम

फिल्मों से दूरी बनाने के बाद श्याम बेनेगल ने ‘यात्रा’, ‘कथा सागर’ दूरदर्शन के लिए ‘भारत एक खोज’, भारत सरकार के एक टेलीविजन मीडिया आउटलेट सहित कई टेलीविजन धारावाहिकों का निर्माण किया।उन्होंने वर्ष 1991 में फिल्म ‘अंतरनाद’ से सिने पर्दे पर वापसी कीं।

बेनेगल ने 26 वर्षों के भीतर 21 फीचर फिल्मों, 1,500 विज्ञापन फिल्मों और 45 डॉक्यूमेंट्रीज का निर्देशन किया। भारतीय सिनेमा में श्याम बेनेगल के उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए सरकार ने वर्ष 1976 में उन्हें ‘पद्म श्री’ और साल 1991 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। वर्ष 2005 में बेनेगल को ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से नवाजा गया।

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