इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। जिसे रोज-ए-आशुरा भी कहा जाता है। इमाम हुसैन अल्लाह के रसूल पैगबंर मोहम्मद के नाती थे। आपको बता दें कि यह कोई पर्व या त्योहार नहीं बल्कि यह मातम का दिन है। मुहर्रम हिजरी संवत का पहला महीना होता है। इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरु हो जाता है। जिसमे शिया समुदाय के लोग 10 दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं।
मुहर्रम से पहले जानें शिया समुदाय-
आपको बता दें कि मुहर्रम इस्लाम के शिया समुदाय के द्दारा ही मनाया जाता है। इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमान खलीफा चुनने का रिवाज होता है। पैगंबर मोहम्मद के बाद चार खलीफा चुने गए। जिन लोगों ने हजरत अली को अपना खलीफा चुना वे शिया कहलाते हैं।
क्यों मनाते हैं मुहर्रम
मोहम्मद साहब के मरने के बाद कर्बला जिसे अब सीरिया के नाम से जाना जाता है, के गर्वनर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया और वहां की जनता में खौफ फैलाने के लिए उन पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। यजीद के सामने हजरत मुहम्मद के वारिस इमाम हुसैन और उनके कुछ साथी रास्ते का रोड़ा थे जिन्होंने यजीद को खलीफा मानने से इंकार कर दिया और जमकर विरोध किया। इमाम हुसैन सभी की सलामती के लिए मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में यजीद ने उन पर हमला कर दिया। दोनों के बीच की यह लड़ाई 2 से 6 तारीख तक चली। हुसैन के पास महज 72 लोग थे वहीं यजीद के पास हजारों की तादाद में सैनिक थे। इस लड़ाई में मुहर्रम की 10 ताऱीख को हुसैन और उसके सभी साथी शहीद हो गए। तभी से मुहर्रम की 10 ताऱीख को रोज-ए-आशुरा के रुप में मनाया जाता है।
यहां हम आपको मुहर्रम से जुड़ी कुछ शायरी और संदेश बता रहें है जिन्हें आप अपने दोस्तों और करीबियों को भेज सकते हैं।
1.”कर्बला की शहादत इस्लाम बना गयी,
खून तो बहा था लेकिन कुर्बानी हौसलों की उड़ान दिखा गयी।”
2.”सलाम या हुसैन
अपनी तकदीर जगाते हैं मातम से
खून की राह बिछाते हैं तेरे मातम से
अपने इज़हार-ए-अकीदत का सलीका ये है
हम नया साल मनाते हैं तेरे मातम से”।
3.“यूँ ही नहीं जहाँ में चर्चा हुसैन का,
कुछ देख के हुआ था जमाना हुसैन का,
सर दे के जो जहाँ की हुकूमत खरीद ली,
महँगा पड़ा याजिद को सौदा हुसैन का।”
4.”हर जर्रे को नजफ का नगीना बना दिया,
हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया।”
5.“वो जिसने अपने नाना का वादा वफ़ा कर दिया..
घर का घर सुपर्द-ए-खुदा कर दिया..
नोश कर लिया जिसने शहादत का जाम..
उस हुसैन इब्ने-अली पर लाखों सलाम”।
6. “कौन भूलेगा वो सजदा हुसैन का,
खंजरों तले भी सर झुका ना था हुसैन का…
मिट गयी नसल ए याजिद करबला की ख़ाक में,
क़यामत तक रहेगा ज़माना हुसैन का।”
7.”क्या जलवा कर्बला में दिखाया हुसैन ने,
सजदे में जा कर सर कटाया हुसैन ने,
नेजे पे सिर था और जुबां पर अय्यातें,
कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।”
8.”जन्नत की आरजू में कहां जा रहे है लोग,
जन्नत तो कर्बला में खरीदी हुसैन ने,
दुनिया-ओ-आखरत में रहना हो चैन सुकून से तो जीना अली से सीखे और मरना हुसैन से।”
9.“करबला को करबला के शहंशाह पर नाज है,
उस नवासे पर मोहम्मद को नाज़ है,
यूँ तो लाखों सर झुके सजदे में लेकिन
हुसैन ने वो सजदा किया जिस पर खुदा को नाज़ है”।
10.”क्या हक अदा करेगा ज़माना हुसैन का
अब तक ज़मीन पर कर्ज़ है सजदा हुसैन का
झोली फैलाकर मांग लो मुमीनो
हर दुआ कबूल करेगा दिल हुसैन का”।