हर चीज का रहस्य जानना चाहते थे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन

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मानव इतिहास के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति, 20वीं सदी के महान वैज्ञानिक और ना जाने क्या-क्या उनके सम्मान में कहा जा सकता है, जी हां, हम बात कर रहे हैं अल्बर्ट आइंस्टीन की, जिनके मन में हर चीज को लेकर जिज्ञासा इस कद्र कूट-कूट कर भरी थी मानो उनको हर सवाल के जवाब आज ही चाहिए। 14 मार्च के दिन ही अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ रोचक बातें…

अल्बर्ट आइंस्टीन ने समय, अंतरिक्ष और गुरुत्वाकर्षण को लेकर कई सिद्धांत दिए। आप यह सोच रहे होंगे कि अल्बर्ट आइंस्टीन तो बचपन से ही ऐसे थे लेकिन ऐसा नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि आइंस्टीन इतने कमजोर थे कि उन्हें मंदबुद्धि तक का टैग मिला। हालांकि वह समान्य बच्चों से काफी अलग थे। इसके अलावा बचपन से ही वो एक अलग दुनिया में रमते थे जहां इस दुनिया को लेकर ना जाने कितने ही सवाल थे। उनकी हर बात के साथ जुड़ा होता था “आखिर ऐसा क्यों होता है”?

बचपन में लगता था गणित से डर

वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के कुछ किस्से ऐसे हैं जिन्हें सुनकर आज भी किसी को यकीन नहीं होता है। एक बार एक लड़के ने आइंस्टीन से पूछा कि, ‘आज पूरी दुनिया में आपका इतना बड़ा नाम है लेकिन मुझे यह जानना है कि आखिर महान बनने के लिए क्या करना होता है?

आइंस्टीन ने इतने लंबे सवाल का जवाब सिर्फ एक शब्द में दिया- लगन। जी हां, आइंस्टीन ने बताया जब मैं तुम्हारी उम्र में था तो मुझे गणित से बहुत डर लगता था। मैं कई बार गणित में फेल हुआ था। सभी मेरा मजाक उड़ाते थे। फिर एक दिन मैंने सोचा कि मुझमें कोई कमी नहीं है। फिर भी मैं गणित से क्यों डरता हूं? बस, उस दिन के बाद से मैं गणित के सवालों से जूझने लगा और बार-बार असफल होने के बावजूद कभी भी हार नहीं मानी। आइंस्टीन के जीवन की कुछ और खास बातें भी हैं, आइए जानते हैं।

स्पीच

आइंस्टीन ने आम बच्चों के बजाय बोलना बहुत लेट शुरू किया। उनकी जीवनी लिखने वाले लेखक का कहना है कि आइंस्टीन ने कम से कम तीन साल की उम्र तक बोलना शुरू नहीं किया था। स्टैनफोर्ड के एक प्रोफेसर थॉमस सोवेल ने असाधारण रूप से इतनी उम्र के बाद भी ना बोलने को “आइंस्टीन सिंड्रोम” कहा।

THE COMPASS

जब अल्बर्ट आइंस्टीन पांच साल के थे, तब उनके पिता ने उन्हें एक साधारण सा पॉकेट कम्पास दिया। आइंस्टीन उसे देखकर काफी खुश हुए। लेकिन उसमें लगी सुई हर बार एक ही दिशा में जाकर क्यों रूक जाती थी। इस सवाल ने आइंस्टीन को कई सालों तक परेशान किया और माना जाता है कि साइंस के साथ उनके आकर्षण की शुरुआत यहीं से हुई।

वायलीन

आइंस्टीन की माँ, पॉलीन, एक शानदार पियानोवादक थी और वह चाहती थी कि उसका बेटा भी संगीत से प्यार करे, इसलिए आइंस्टीन को वायलिन सिखाना शुरू किया। सबसे पहले, आइंस्टीन को वायलिन बजाने से बहुत नफरत थी लेकिन जब आइंस्टीन 13 साल के हुए, तो उन्होंने मोजार्ट का म्यूजिक सुना और उनका मन बदल गया। इसके बाद आइंस्टीन ने अपने जीवन के आखिरी कुछ सालों तक वायलिन बजाना जारी रखा।

PRESIDENT EINSTEIN?

9 नवंबर, 1952 को ज़ायोनी नेता और इज़राइल के पहले राष्ट्रपति चैम वीज़मैन की मौत के कुछ दिनों बाद, आइंस्टीन से पूछा गया था कि क्या वह इज़राइल के दूसरे राष्ट्रपति का पद स्वीकार करेंगे। आइंस्टीन ने उस समय 73 साल की उम्र में इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इनकार करते हुए आइंस्टीन ने कहा कि उनके पास लोगों के साथ उचित व्यवहार करने के लिए अनुभव और योग्यता की कमी है।

NO SOCKS

आइंस्टीन के आकर्षण का एक हिस्सा उनका अव्यवस्थित तरीके से रहना ही था। अपने बिखरे बालों के अलावा, आइंस्टीन की एक अजीबोगरीब आदत थी मोजे कभी नहीं पहनना। आइंस्टीन मोज़े पहनना इसलिए पसंद नहीं करते थे क्योंकि उनके मोजे अक्सर फट जाते थे।

SMOKING

आइंस्टीन को धूम्रपान करना बहुत पसंद था। 1950 में, मॉन्ट्रियल पाइप स्मोकर्स क्लब में उन्होंने आजीवन सदस्यता स्वीकार करने के बाद कहा कि “धूम्रपान करना उन्हें कुछ हद तक शांत और उद्देश्यपूर्ण निर्णय लेने में योगदान देता है।”

INVENTOR

थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के आने के दो दशक बाद अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने पूर्व छात्र लियो स्ज़ीलार्ड के साथ मिलकर एक रेफ्रिजरेटर बनाया, जो कंप्रेस्ड गैसों पर चलता था। फ्रिज से निकलने वाली जहरीली गैसों से मारे गए एक बर्लिन परिवार के बारे में पढ़ने के बाद उन्हें यह डिवाइस बनाने का फैसला लिया। आइंस्टीन-स्ज़ीलार्ड रेफ्रिजरेटर 1930 में पेटेंट कराया गया था, लेकिन जल्द ही फ़्रीऑन कंप्रेशर्स वाले फ्रीज मार्केट में चल गए।

LETTER

आइंस्टीन ने खुद कभी परमाणु बम नहीं बनाया था या मैनहट्टन प्रोजेक्ट पर भी काम नहीं किया। लेकिन आइंस्टीन के उस समय के यू.एस. राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट को लिखे लैटर में यूरेनियम से बम के सिद्धांत के बारे में बताया था। आइंस्टीन ने बाद में इस पर अफसोस जताते हुए कहा था कि “मुझे पता था कि जर्मन परमाणु बम विकसित करने में सफल नहीं होंगे, मैंने कुछ भी नहीं किया।”

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