जयंती: सत्येंद्र नाथ बोस ने क्वांटम फिजिक्स को नई दिशा देने में निभाई थी अहम भूमिका

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महान भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस की 1 जनवरी को 129वीं जयंती है। उन्हें वर्ष 1920 के दशक में क्वांटम मैकेनिक्स में दिए महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ख़ासतौर पर जाना जाता है। सत्येंद्र नाथ ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ मिलकर ‘बोस-आइंस्टीन स्टेटिस्टिक्स’ और ‘बोस-आइंस्टाइन कंडनसेट’ सिद्धांत की आधारशिला रखी थी। बोस ने एक सब एटॉमिक पार्टिकल की खोज की थी, जिसका नाम उन्हें सम्मान देने के लिए ‘बोसॉन’ रखा गया। सत्येन्द्र नाथ रॉयल सोसाइटी के फेलो हैं। वर्ष 1954 में उन्हें भारत सरकार ने देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया था। इस खास मौके पर जानिए उनके जीवन के बारे में कुछ अनसुनी बातें…

सत्येंद्र नाथ बोस का जीवन परिचय

भौतिक वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को बंगाल राज्य के कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ था। उनके पिता का नाम सुरेंद्र नाथ बोस था, जो ईस्‍ट इंडिया रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में नौकरी करते थे। सत्येंद्र नाथ अपने पिता का इकलौता बेटा था, उनसे छोटी उनकी छह बहनें थीं। बोस की आरंभिक शिक्षा नदिया जिले के बाड़ा जगुलिया गांव में संपन्न हुई। बाद में उन्हें न्यू इंडियन स्कूल में भर्ती करवाया गया। जहां से उन्हें हिंदू स्कूल में पढ़ने का मौका मिला।

उन्होंने वर्ष 1909 में मैट्रिकुलेशन परीक्षा में पांचवां स्थान हासिल किया। इसके बाद बोस ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में साइंस कोर्स के लिए दाखिला लिया और इंटरमीडिएट पास की। इस कॉलेज में सत्येंद्र नाथ बोस को जगदीश चंद्र बोस, शारदा प्रसन्न दास और प्रफुल्‍ल चंद्र रे जैसे विद्वानों से पढ़ने का मौका मिला।

बतौर फिजिक्स लेक्चरर शुरू हुआ करियर

सत्येन्द्र नाथ बोस ने वर्ष 1915 में अप्‍लाइड मैथमेटिक्स से एमएससी में सर्वोच्च अंकों के साथ डिग्री हासिल की, जो एक रिकॉर्ड है। कॉलेज के प्रिंसिपल सर आशुतोष मुखर्जी ने उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें कॉलेज में फिजिक्स का लेक्चरर नियुक्त किया। बाद में उन्होंने वर्ष 1921 में ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के रीडर के रूप में कार्य किया। उन्होंने यहीं पर प्रयोगशाला विकसित की और कई प्रयोग किए।

बोस ने बिना प्लैंक के क्वांटम रेडिएशन लॉ का उपयोग करते हुए एक शोध लिखा, जो समान कणों वाले काउंटिंग स्टेट्स का एक नया तरीका था। इसे उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन के पास भेजा। आइंस्टीन इससे बहुत प्रभावित हुए और इसका जर्मन में अनुवाद करके उसे एक जर्मन साइंस जर्नल में छपने भेजा। इसके बाद सत्येंद्र नाथ बोस ने दो साल तक यूरोपीय प्रयोगशालाओं में एक्स-रे और क्रिस्टलोग्राफी पर काम किया। इस दौरान उन्हें लुई डी ब्रोगली, मैरी क्यूरी और आइंस्टीन के साथ काम किया था।

बोस और आइंस्टीन का सांख्यिकी सिद्धांत

सत्येन्द्र नाथ बोस ने क्वांटम फिजिक्स को एक नई दिशा देने में बड़ा योगदान दिया था। उनसे पहले वैज्ञानिकों द्वारा माना जाता रहा कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है, लेकिन जब इस बात का पता चला कि परमाणु के अंदर भी कई सूक्ष्म कण होते हैं जो कि वर्तमान में प्रतिपादित किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं। तब बोस ने एक नए नियम का प्रतिपादन किया जो ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी सिद्धांत’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

इस नियम के बाद से ही वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म कणों पर बहुत रिसर्च किया। जिसके बाद यह निष्कर्ष निकाला कि परमाणु के अंदर पाए जाने वाले सूक्ष्म परमाणु कण प्रमुखता दो प्रकार के होते हैं जिनमें से एक का नामकरण डॉ. सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया तथा दूसरे का एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ रखा गया। आज भौतिकी में कण दो प्रकार के होते हैं एक बोसॉन और दूसरे फर्मियान।

बोसॉन यानि फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और फर्मियान यानि क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन (चार्ज की मूल इकाई)। यह वर्तमान भौतिकी का आधार है। वर्ष 1937 में कवि रबींद्रनाथ टैगोर ने विज्ञान पर एक पुस्तक लिखी, जो सत्येंद्र नाथ बोस को समर्पित थी। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1954 में ‘पद्मविभूषण’ से सम्‍मानित किया था।

नोबेल अवॉर्ड न मिलना अफसोस की बात

सत्येन्द्र नाथ बोस ने अपने जीवन में उन महान वैज्ञानिकों के साथ काम किया, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पर अफ़सोस है कि उन्हें इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद भी नोबेल पुरस्कार नहीं मिला।

सत्येंद्र बोस का निजी जीवन और उनका निधन

सत्येंद्र नाथ बोस का विवाह वर्ष 1914 में 20 साल की उम्र में कलकत्ता के एक चिकित्सक की 11 वर्ष बेटी उषाबती से हुआ था। उन दोनों के नौ बच्चे हुए, जिनमें से दो बचपन में ही मर गए थे। उनके दो बेटे और पांच बेटियां हैं। सत्येंद्र बोस ने अपने प्रयोगों से भौतिक विज्ञान में एक नई आधारशिला रखी थी। इस महान वैज्ञानिक का निधन 4 फरवरी, 1974 को कोलकाता में हुआ।

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