सचिन पायलट के दिवंगत पिता राजेश पायलट ने भी ऐसी ही गलती की थी और पद के लिए वो कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस के विरोध में आ गए थे। बाद में राजेश पायलट को पार्टी से बगावत करने के बावजूद कुछ हासिल नहीं हुआ
ये कोई नई बात नहीं कि इससे पहले राजस्थान में कांग्रेस के सामने दो दो मुख्यमंत्रियों के चेहरे का संकट खड़ा हुआ हो। आपको इतिहास में ले चलें तो 1952 में जब पहली बार यहां चुनाव हुए थे और तब ऐसे ही कार्यकर्ताओं के दो गुट बंटे थे। कांग्रेस में उस समय भी दो मुख्यमंत्री चेहरे थे जहां एक तरफ जयनारायण व्यास थे तो दूसरी ओर टीकाराम पालीवाल। इसी तरह कांग्रेस में मुख्यमंत्री चुनने का संकट लगभग हर बार खड़ा हुआ। अब सवाल है कि क्या आखिर किसे राजस्थान का मुख्यमंत्री बनना चाहिए। अगर इसका उत्तर किसी के पास होता तो शायद अब तक कांग्रेस के कार्यकर्ता इतना झमेला ही नहीं करते। 3 राज्यों में चुनाव जीतकर कांग्रेस बड़ी मुश्किल से अपने पैरों पर फिर से खड़ी हुई है। जिसका पूरा श्रेय राहुल गांधी और उनकी टीम को जाता है। सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही राहुल की टीम का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
लोगों ने कांग्रेस को बदलाव के लिए वोट दिया है और इशारा भी साफ है कि बदलाव मतलब पूर्ण बदलाव। इस बदलाव के इशारे में सचिन पायलट पूरी तरह से फिट बैठते हैं यानि उन्हें सीएम बनाकर कांग्रेस 2023 की भी तैयारी अभी से शुरू कर सकती है
कांग्रेस ने अपनी इस बड़ी जीत से तो जो सीखा वो होगा वो सीखा होगा मगर उन्हें राजस्थान में तो जरूर बीजेपी की हार से भी कुछ सीखना चाहिए। राजस्थान में चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा ने वसुंधरा राजे को सीएम पद का दावेदार चुन लिया था बावजूद इसके कि जनता यहां वसुंधरा का विरोध कर रही थी। वसुंधरा दो बार यहां मुख्यमंत्री रह चुकि हैं। ऐसे में राजस्थान की जनता उनका विकल्प तलाश रही थी और उन्हें वो नहीं मिला। लोगों ने कांग्रेस को बदलाव के लिए वोट दिया है और इशारा भी साफ है कि बदलाव मतलब पूर्ण बदलाव। इस बदलाव के इशारे में सचिन पायलट पूरी तरह से फिट बैठते हैं यानि उन्हें सीएम बनाकर कांग्रेस 2023 की भी तैयारी अभी से शुरू कर सकती है। कई दशकों बाद भले ही वो कांग्रेस के रूप में ही सही राजस्थान को एकदम नया मुख्यमंत्री मिलेगा और क्या पता कि राजस्थान में एक बार कांग्रेस एक बार बीजेपी का ट्रेंड भी बदल जाए। अशोक गहलोत के पास तजुर्बा है और वो सरकार चलाना जानते हैं।
पायलट भी इतने साल से राजस्थान में ही है तो वो भी यहां के हालातों से भलि भांति परिचित होंगे ही। खैर एक बार सचिन पायलट के दिवंगत पिता राजेश पायलट ने भी ऐसी ही गलती की थी और पद के लिए वो कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ मिलकर कांग्रेस के विरोध में आ गए थे। बाद में राजेश पायलट को पार्टी से बगावत करने के बावजूद कुछ हासिल नहीं हुआ तो वो वापस पार्टी में ही लौट आए थे। ऐसा शायद सचिन के साथ भी हो सकता है यदि उनके समर्थकों ने अपने विरोध को कम नहीं किया तो। पायलट का मुख्यमंत्री पद के लिए अड़े रहना उन्हें इतना भारी पड़ सकता है कि शायद भविष्य में उन्हें राजनीतिक कॅरिअर बचाने के लिए किसी छोटे मोटे से पद से ही संतुष्ट रहना पड़े क्योंकि अभी तक वो सिर्फ एक प्रदेश में ही राजनीति करने का अनुभव रखते हैं जबकि अशोक गहलोत का तजुर्बा पंजाब और गुजरात में भी काम आ चुका है। पायलट भले ही मुख्यमंत्री ना भी बन पाए तो वो अपने चहेतों को गहलोत सरकार में मंत्री तो बनवा ही सकते हैं। इससे पार्टी में अंदरूणी कलह भी थोड़ी बहुत कम हो जाएगी और पायलट को मनोवैज्ञानिक तौर पर ही सही एक पैठ बनाने का मौका मिल जाएगा।