रूसी कंपनी स्पूतनिक-वी ने भारत में शुरू किया कोरोना वैक्सीन का उत्पादन

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Sputnik V-Production-India

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच अब एक अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल, रूस की कोविड वैक्सीन स्पूतनिक-वी का भारत में उत्पादन शुरू कर दिया गया है। दो दवा कंपनियां आरडीआईएफ और पैनेसिया बायोटेक भारत में स्पूतनिक-वी के लिए वैक्सीन का उत्पादन कर रही है। स्वदेशी कंपनी पैनेसिया बायोटेक अब हर साल देश में 10 करोड़ डोज बना सकेंगी। मालूम हो कि रूस द्वारा विकसित स्पूतनिक-वी कोरोना रोधी वैक्सीन इसके वायरस के खिलाफ बड़ी कारगर मानी गई है। बता दें देश में अभी सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा निर्मित कोविशील्ड तथा भारत बायोटेक द्वारा तैयार की गई कोवाक्सिन के जरिए टीकाकरण किया जा रहा है। अब तीसरी वैक्सीन स्पूतनिक-वी के उत्पादन से वैक्सीनेशन प्रोग्राम को तेजी मिल सकेगी।

पहली खेप को गुणवत्ता की जांच के लिए रूस भेजा

रूस के निवेश कोष रशियन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट फंड यानि आरडीआईएफ और भारत की दवा कंपनी पैनेसिया बायोटेक ने सोमवार को भारत में स्पूतनिक-वी कोरोना वायरस टीके का उत्पादन शुरू करने की घोषणा की। पैनेसिया बायोटेक के हिमाचल प्रदेश के बद्दी स्थित फैक्ट्री में तैयार की गई कोरोना वायरस की स्पूतनिक-वी वैक्सीन की पहली खेप को रूस के गामालेया केंद्र भेजा जाएगा, जहां इसकी गुणवत्ता की जांच की जाएगी।

आरडीआईएफ और पैनेसिया बायोटेक ने अपने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि पूर्ण स्तर पर उत्पादन इन गर्मियों में ही शुरू होने की उम्मीद है। संयुक्त बयान में कहा गया है कि अप्रैल में आरडीआईएफ और पैनेसिया ने स्पूतनिक-वी टीके की सालाना 10 करोड़ खुराक का उत्पादन करने पर सहमति जताई थी।

देश में 14 मई से शुरू हुआ स्पूतनिक-वी टीके का इस्तेमाल

आरडीआईएफ के मुख्य कार्यकारी किरिल्ल डमित्रिव ने कहा कि पैनेसिया बायोटेक के साथ मिलकर भारत में स्पूतनिक-वी टीके के उत्पादन की शुरुआत देश को महामारी से लड़ने में मदद की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि स्पूतनिक-वी वैक्सीन का उत्पादन शुरू होने से भारत को कोरोना के संकट से निकालने के सरकार के प्रयासों को समर्थन मिलेगा। बाद में इस टीके का दूसरे देशों को निर्यात भी किया जा सकेगा, ताकि दुनिया के अन्य देशों में भी कोरोना महामारी के प्रसार को रोका जा सके। बता दें कि स्पूतनिक-वी को भारत में 12 अप्रैल, 2021 को आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति के साथ पंजीकृत किया गया था। इसके बाद 14 मई से वैक्सीनेशन प्रोग्राम में इसका इस्तेमाल भी शुरू कर दिया गया।

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