हिंदी सिनेमा में ऋत्विक घटक को एक ऐसे निर्देशक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी फिल्मों के जरिये समाज की तल्ख सच्चाई बयां कीं। ऋत्विक घटक का जन्म 4 नवंबर, 1925 को अविभाजित भारत के ढ़ाका में हुआ था। ऋत्विक फिल्म निर्माता, निर्देशक होने के साथ ही पटकथा लेखक भी थे। भारतीय सिनेमा में ऋत्विक का दर्जा सत्यजीत रे और मृणाल सेन के बराबर हैं। आज 6 फ़रवरी को ऋत्विक घटक की 47वीं डेथ एनिवर्सरी है। इस अवसर पर जानिए उनका सिनेमाई सफ़र के बारे में…
पहला नाटक द डार्क लेक
वर्ष 1948 में ऋत्विक घटक ने अपना पहला नाटक ‘द डार्क लेक’ लिखा। वर्ष 1951 में घटक इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन से जुड़े। इस दौरान उन्होंने कई नाटकों का लेखन, निर्देशन और अभिनय भी किया। थिएटर की दुनिया में उन्होंने आखिरी नाटक वर्ष 1957 में ‘ज्वाला’ लिखा और निर्देशित किया।
फिल्म ‘मुसाफिर’ से शुरू हुआ बॉलीवुड सफर
बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि ऋत्विक घटक ने वर्ष 1957 में ही ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मुसाफिर’ से बॉलीवुड में कदम रख दिया था इस फिल्म की स्क्रिप्ट ऋत्विक ने ही लिखी थी। पहली ही फिल्म को मिली जबरदस्त सफलता ने उन्हें सिने पर्दे पर कुछ करने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, ऋत्विक ने वर्ष 1950 में ही फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख लिया था। निमाई घोष की फिल्म ‘चिन्नामूल’ के साथ उन्होंने एक्टिंग और सहायक निर्देशक के रूप में डेब्यू किया। इसके बाद उनकी फिल्म ‘नागरिक’ रिलीज हुई, जो भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुई।
मधुमती से पटकथा लेखक के रूप में मिली सफलता
वर्ष 1958 में रिलीज हुई फिल्म ‘मधुमती’ ऋत्विक के सिने करियर की पहली व्यावसायिक सफल फिल्म थी। जिसकी कहानी पुनर्जन्म पर आधारित थी। फिल्म का निर्देशन बिमल रॉय ने किया था।
भारतीय सिनेमा को दी बेहतरीन फिल्में
ऋत्विक घटक आठ फिल्मों का निर्देशन किया। उनकी सबसे प्रसिद्ध फ़िल्में, ‘मेघे ढाका तारा’ (1960), ‘कोमल गंधार’ (ई-फ्लैट) (1961) और ‘सुवर्णरिखा’ (1962),थी। उन्होंने तीनों फिल्मों में एक बुनियादी कहानी का इस्तेमाल किया। ऋत्विक की आखिरी फिल्म ‘युक्ति, बहस और कहानी’ (1974) थी, जिसमें उन्होंने मुख्य चरित्र नील्कंठो (नीलकंठ) की भूमिका निभाईं।
अत्यधिक शराब के सेवन और उसके फलस्वरूप होने वाले रोगों के कारण ऋत्विक घटक का स्वास्थ्य खराब हो गया, जिसकी वजह से उनके लिए फ़िल्में बनाना मुश्किल हो गया था। 6 फरवरी, 1976 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
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